छत्तीसगढ़बिलासपुर

लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के प्रति कितनी आस्था, कितना विद्रोह ?

बिलासपुर सतविंदर सिंह अरोड़ा

गणतंत्र दिवस! पता नहीं इस शब्द को सुनते ही सबके मन में कैसी भावना उमड़ती है? जब हम उत्सव मानते हैं तो मूल भावना अर्थात अपने लोगों के द्वारा बनाये हुए नियमों के बंधनों को स्वीकार करते हैं. क्या वास्तव में हम संविधान का सम्मान करते हैं? जितना उत्साह हम इस पर्व को मनाने में दिखाते हैं क्या उतने ही प्रफुल्लित मन से हम उस पर्व के मूल अर्थात संविधान का पालन करने को तत्पर रहते हैं? देखने में तो यह आया है की हम हर पल यह प्रयास करते हैं की कैसे किसी नियम को तोड़ा जाये. छोटी छोटी चीजों जैसे ट्रैफिक, विद्यालय, महाविद्यालय, रात में डीजे की समयावधि आदि के नियम तो दिल खोलकर और बिना किसी अपराध बोध के तोड़ते हैं. शायद शान भी इसी में समझते हैं. फिर ये जो उत्साह देखने को मिलता है सड़कों पर, बड़े बड़े स्पीकर्स से कान फाड़ देने वाली आवाज में बजने वाले देशभक्ति गाने आदि धमाल वह क्या है? अगर हमें अपने ही संविधान को तोड़ने में मज़ा आता है तो फिर उसके लागू होने के दिवस पर इतना दिखावा क्यों? संविधान का सच्चा सम्मान तो तब है जब उसका पालन किया जाये.

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