रतनपुर

रतनपुरिहा भादो गम्मत की परंपरा अब विलुप्त होने के कगार पर….परंपरा को बचाने नई पीढ़ी नही ले रही रुचि

जुगनू तंबोली

रतनपुर – युवा पीढी का रुज्ञान कम होने से कृष्ण लीला की गौरवशाली रतनपुरिहा भादो गम्मत की परंपरा अब विलुप्त होने के कगार पर है । इसका आयोजन अब नगर के कुछ मोहल्ले में ही सिमट कर रह गया है। परंपरा को बढ़ाने नई पीढ़ी सामने नही आ रहे है। वहीं कलाकारों को प्रश्रय देने वाले लोग भी अब नहीं रहे। गौरतलब है कि रतनपुर में गणेश उत्सव पर भादो गम्मत की परंपरा करीब डेढ़ सौ साल पुरानी है। नगर के करैहापारा बाबूहाट, महामायापारा, बडीबाजार, भेडीमूडा सहित सभी मोहल्लों में इसका आयोजन होता था। गम्मत देखने आसपास के गावों से काफी तादात में लोग आया करते थे । भादो के महीने में सप्ताह भर नगर मेें उत्सव का माहौल रहता था। जिसमे कृष्ण की लीलाओ का मंचन स्थानीय कलाकारो के द्वारा किया जाता था। लेकिन अब भादो गम्मत केवल कुछ ही मोहल्लो मे सिमट के रह गया है । इसका मुख्य कारण यह भी है कि इस कला के प्रेमी लगातार कम होते चले गये और नये पीढ़ी के युवा वर्ग इस कला से नही जुड़ पाये। 

बीते कुछ साल से रतनपुरिहा भादो गम्मत का आयोजन  नगर में करैहापारा के बाबूहाट में ही हो पा रहा है। जो सिर्फ 3 दिनों में सिमट गया है, पर पुराने दिनों की यादें इस विधा से जुड़े लोगों के दिलों से अब भी नही मिटी है। इसमें आ रहे बदलाव पर भी वे चर्चा करने से नहीं चूकते। रतनपुरिहा भादो गम्मत भगवान श्री कृष्ण की लीला पर आधारित है। इसमे कृष्ण की नटखट बाल लीला , गोपियों के साथ रासलीला , पुतना वध, कंश वध का मंच पर प्रदर्शन होता है। जीवंत प्रस्तुति देख दर्शक भी अभिभूत हो जाते है।

आज इस परंपरागत लोक कला के संरक्षण और संवर्धन की जरूरत है। इसके लिए शासन की ओर से पहल की भी दरकार है। बहरहाल रतनपुरिहा भादो गम्मत की परंपरा को अब कुछ ही मोहल्लाओ के लोगो के द्वारा संरक्षण और संवर्धन करने की कोशिश की जा रही है, जिसे  शासन की तरफ से भी सरंक्षण की आवश्यकता है। अब  शासन की ओर से रतनपुरिहा भादोगम्मत को बचाने कोई पहल की जाती है या रतनपुरिहा भादो गम्मत पुराने लोगो के साथ सिर्फ यादो में ही रह जायेगी।

अनिल शर्मा, शिक्षक
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