प्रवीर भट्टाचार्य
15 अगस्त ,26 जनवरी को बिलासपुर में हर बार सुनाई देने वाली वह आवाज हमेशा के लिए खो गई है। बिलासपुर की एक पूरी पीढ़ी की यादें जिस आवाज के साथ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को महसूस करती थी, वह आवाज अब कभी सुनाई नहीं देगी। जी हां, बिलासपुर के जाने-माने कमेंटेटर और वॉलीबॉल के बेहतरीन खिलाड़ी एल के पांडे का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया। बिलासपुर के पुलिस मैदान में होने वाले 15 अगस्त और 26 जनवरी के मुख्य समारोह के दौरान एल के पांडे ही पार्श्व से आंखों देखा हाल का वर्णन किया करते थे। एक एक बारीकियों को शब्दों में बुन कर जिस तरह से वे प्रस्तुत किया करते थे, उसे लगातार सुनते सुनते बिलासपुर की एक पूरी पीढ़ी की यादों में राष्ट्रीय पर्व और उनकी आवाज इस तरह एकाकार हो चुकी थी, कि उस आवाज के बगैर दोनों पर्वों की कल्पना भी नहीं की जा सकती । लेकिन अब उनके चाहने वाले निराश होंगे । लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली तो उनके चाहने वालों का भी दिल टूट गया।
कुदुदंड संजय तरण पुष्कर के पास उनके निवास पर मातम पुरसी के लिए लोग पहुंचने लगे । एल के पांडे एक बेहतरीन वॉलीबॉल खिलाड़ी भी थे ।वे अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में श्रीलंका जाने वाली वालीबॉल टीम के सदस्य थे। साल 1972 में सीलोन में होने वाली वालीबॉल टीम की कप्तानी भी एलके पांडे ने ही की थी। 80 के दशक में वे मध्य प्रदेश टीम के पर्यवेक्षक भी रहे। आकाशवाणी से भी उनका लंबे वक्त तक जुड़ाव रहा। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ,अटल बिहारी बाजपेई और कई मशहूर हस्तियों के सामने भी उन्होंने एंकरिंग की। एल के पांडे हमेशा खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया करते थे। उनके मार्गदर्शन में ही कई खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे। मूलतः इलाहाबाद के एल के पांडे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और बीमारी की वजह से ही उनका निधन हो गया । उनकी आखरी इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार उनके गृह ग्राम इलाहाबाद से किया जाए इसीलिए बिलासपुर में श्रद्धांजलि समारोह के बाद उनके पार्थिव शरीर को उनके गृह ग्राम ले जाया गया है। जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। बिलासपुर में पुलिस ग्राउंड जाकर राष्ट्रीय पर्वों के परेड में शामिल होने वाले वालों के लिए एल के पांडे की आवाज अनजानी नहीं है । हर बार उन्हीं को सुनते सुनते उनकी आदत सी हो गई थी। उनका विकल्प मिलना आसान तो नहीं होगा, खासकर जब बिलासपुर के लोगों को उन्हें सुनने की आदत हो चुकी है, ऐसे में अब राष्ट्रीय पर्व का समारोह उनके बगैर कुछ अधूरा सा तो जरूर लगेगा।