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बिलासपुर के चांटीडीह में महाशिवरात्रि पर भरने वाले मेले का इतिहास 8 दशक से भी पुराना है। सोनी परिवार के मुखिया चार धाम की यात्रा पर गए थे । जिन्होंने लौटने के बाद यहां चार धाम की प्रतिकृति तैयार की और उन्हीं के प्रयास से अरपा के तट पर चांटीडीह मेले की शुरुआत हुई। मेले की ख्याति का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि ईसी मेले के नाम से इलाके का नाम मेला पारा पड़ गया लेकिन अब इसी प्राचीन मेले के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं ।
यहां 80 लाख की लागत से 2850 गैलन की क्षमता वाली विशालकाय पानी टंकी का निर्माण प्रस्तावित है । मौजूदा टंकी की क्षमता केवल 450 गैलन ही है। क्षमता के बढ़ जाने से पूरे इलाके की जरूरत पूरी हो सकती है। नदी तट होने की वजह से जलापूर्ति भी आसान होगी । इसीलिए सर्वे के बाद पानी टंकी निर्माण के लिए मेला पारा में ही स्थान चयन किया गया। एक प्रकार से पानी टंकी निर्माण से पूरे इलाके की बहुप्रतीक्षित मांग पूरी होगी लेकिन वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के निवासियों ने ही पानी टंकी बनने का विरोध शुरू कर दिया है।
उनका तर्क है की पानी टंकी बन जाने से यहां महाशिवरात्रि पर भरने वाले मेले के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा। हालांकि इसी इलाके में एक और पानी टंकी पहले से ही मौजूद है, लेकिन उसका आकार छोटा होने से मेले को उससे खास असर नहीं पड़ रहा। वहीं अब विशालकाय पानी टंकी बनने से मेला क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा, पानी टंकी के इर्द गिर्द समा जाएगा ,जिससे मेले का आकार बेहद छोटा हो सकता है । इसी बात को लेकर यहां के नागरिकों ने शुक्रवार को जमकर प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि पानी टंकी का निर्माण कहीं और किया जाए, क्योंकि वे मेला पारा में पानी टंकी नहीं बनने देंगे । मेला पारा का शिव मंदिर और यहां का मेला उनकी धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। विडंबना यह है कि एक तरफ नागरिक पानी के संकट पर हाय तौबा मचा रहे, वहीं जब प्रशासन द्वारा समस्या निराकरण का प्रयास किया जाता है तब भी वे बाधक बनते हैं। ऐसे में हालात बेहतर हो भी तो कैसे ? इस पर भी मंथन करने की जरूरत है।