
प्रवीर भट्टाचार्य
नगरी निकाय चुनाव के लिए महापौर और पार्षदों के आरक्षण की प्रक्रिया पूरी होते ही अब असली चुनावी घमासान शुरू होने वाला है । बिलासपुर नगर निगम का क्षेत्रफल अब विस्तार ले चुका है। इससे जहां वार्डों की संख्या 66 से बढ़कर 70 हो गई है वही महापौर का कार्यक्षेत्र पांच विधानसभाओं तक फैल चुका है। महापौर का कामकाज 5 विधायकों को प्रभावित कर सकता है, इसलिए वर्तमान में बिलासपुर महापौर के पद को विधायक से भी बढ़ कर देखा जा रहा है। इसलिए चौकानेवाले नाम भी सामने आ रहे हैं । माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश की तर्ज पर अंतिम समय में छत्तीसगढ़ में भी पार्षदों द्वारा ही महापौर का चयन करने का नियम लागू किया जाएगा ।अगर सूरते हाल कुछ वैसा हुआ तो फिर जाहिर है महापौर के सभी दावेदारों को भी पहले तो पार्षद का चुनाव जीतना होगा और आरक्षण के बाद ऐसे वार्ड तलाशने होंगे, जहां से उनकी जीत की प्रबल संभावना हो। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों से ही बड़े नामों की लगातार दावेदारी हो रही है, तो वही कई ऐसे नेता भी सामने आ रहे हैं जिनके लिए पार्षद का चुनाव जीतना भी मुश्किल साबित हो सकता है । अनुभव पर युवा को तरजीह देने की वकालत करते हुए भारतीय जनता पार्टी से शैलेंद्र यादव तो कांग्रेस से तैयब हुसैन जैसे पूर्व पार्षद भी दावेदारी ठोक रहे हैं। लेकिन इन्हीं के बीच कई छुपे रुस्तम भी है जो अंतिम वक्त पर अपने पत्ते खोल सकते है। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है तो इस बार प्रत्याशियों के चयन के दो केंद्र होंगे। निकाय चुनाव के प्रभारी और 20 साल तक विधायक रहे पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल के बंगले से जाहिर तौर पर अधिकांश नाम तय होंगे । लेकिन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक भी यही चाहेंगे कि उनके लोगों को अधिक से अधिक मौका मिले । अगर धरमलाल कौशिक की चलती है तो फिर महापौर प्रत्याशी के लिए भूपेंद्र सवन्नी और व्ही रामाराव के नाम सामने आ सकते हैं।
वहीं अगर महापौर चयन में अमर अग्रवाल की चली तो फिर गुलशन ऋषि, प्रवीण दुबे जैसे नाम उनकी तरफ से बढ़ाने की प्रबल संभावना है। वैसे भारतीय जनता पार्टी हमेशा चौंकाने वाले फैसले लेती है। इस बार भी उनकी ओर से अप्रत्याशित फैसला हो तो हैरान नहीं होना चाहिए ।कई जानकार तो यह भी दावा कर रहे हैं कि मुमकिन है अमर अग्रवाल खुद महापौर की दावेदारी करें। हालांकि ऐसी बातों पर बहुत कम लोगों को यकीन होगा।
वही 15 सालों बाद सत्ता में वापसी होने के बाद कांग्रेस और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उत्साह हिलोरे ले रही है । कांग्रेस पूरी तरह आश्वस्त है कि इस बार नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की ही जीत होगी । शुक्रवार को दंतेवाड़ा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत ने एक बार फिर कांग्रेस में ऊर्जा का संचार कर दिया है । कांग्रेस में भी महापौर के दावेदारों की कोई कमी नहीं है। पूर्व जिला अध्यक्ष विजय केसरवानी से लेकर मौजूदा अध्यक्ष नरेंद्र बोलर और विवेक बाजपेयी तक के नाम लिए जा रहे हैं। तैयब हुसैन का वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित होने के बाद वे भी महापौर के लिए दावेदारी कर रहे हैं। लेकिन लगता नहीं कि बिलासपुर से किसी मुस्लिम उम्मीदवार को उतारने की जोखिम फिलहाल कांग्रेस मोल लेगी । इसी वजह से नेता प्रतिपक्ष शेख नजीरूद्दीन की भी दावेदारी खारिज हो सकती है।
कांग्रेस से दर्जनभर नाम सामने आ रहे हैं ।जानकार दावा करते हैं कि मुख्यमंत्री की करीबी की वजह से नगरीय निकाय चुनाव में भी प्रदेश महामंत्री अटल श्रीवास्तव की चलेगी। इसलिए मुमकिन है कि अटल श्रीवास्तव स्वयं महापौर का चुनाव लड़े। लेकिन लोकसभा चुनाव में मिली हार और मौजूदा कद के चलते लगता नहीं अटल श्रीवास्तव यह जोखिम लेंगे। इसीलिए यह संभावना बन रही है कि अटल श्रीवास्तव अपनी जगह अपने भाई अजय श्रीवास्तव के नाम को आगे करें।
लंबे वक्त से अटल श्रीवास्तव का साया बनकर काम करने वाले अजय श्रीवास्तव की पहचान आधारशिला विद्या मंदिर और बिल्डर्स के तौर पर तो है ही लेकिन वे अटल श्रीवास्तव के भाई के तौर पर बेहतर पहचाने जाते हैं। इसलिए मुमकिन है कि अजय श्रीवास्तव को महापौर प्रत्याशी के तौर पर पेश किया जाए। जाहिर है अगर अजय श्रीवास्तव का नाम अटल श्रीवास्तव आगे करते हैं तो फिर उनके खेमे से विरोध में एक स्वर नहीं उठेगा। हालांकि विधायक शैलेश पांडे के खेमे से विरोध के स्वर उठ सकते हैं क्योंकि उनके खेमे से शैलेंद्र जयसवाल भी महापौर की दावेदारी कर रहे हैं , लेकिन अगर महापौर के लिए प्रत्यक्ष चुनाव नहीं हुए तो फिर जाहिर तौर पर अजय श्रीवास्तव को भी किसी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ना होगा। वैसे शहर में उनका कोई जनाधार नहीं है, लेकिन बड़े भाई का नाम और पार्टी सिंबॉल की वजह से उनकी राह आसान हो सकती है।
इस दौर में चुनाव बेहद खर्चीला हो चुका है और अजय श्रीवास्तव यह खर्च उठाने के काबिल भी हैं। इसलिए प्रबल संभावना है कि कांग्रेस से अजय श्रीवास्तव का नाम महापौर प्रत्याशी के तौर पर आगे बढ़ाया जाए और प्रदेश में जो स्थिति है उससे मुमकिन है कि वे बिलासपुर के अगले महापौर बन भी जाए। लेकिन फिलहाल यह बातें संभावनाओं के ही दायरे में है। वैसे स्थिति आने वाले कुछ हफ्तों में जरूर स्पष्ट होगी ।तब तक इसी तरह नए नए दावेदार सामने आएंगे और चर्चाओं का बाजार यूं ही गर्म रहेगा।