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भाई बहन के अटूट स्नेह का पर्व रक्षाबंधन गुरुवार को हर्ष उल्लास और परंपरा पूर्वक मनाया गया। स्वतंत्रता दिवस होने के कारण रक्षाबंधन पर भी देश प्रेम का रंग हावी रहा। हर वर्ष की तरह सावन पूर्णिमा की तिथि पर बहनों ने रक्षा सूत्र से भाइयों की कलाइयां सजाई ।रेशम की डोरी के धागे भले ही कच्चे हो लेकिन इसके पीछे का स्नेह अटूट और बेहद मजबूत होता है ।इन्हीं भावनाओं के साथ सुबह से ही तैयारी कर रही बहनों ने भाइयों के हाथों में राखियां बांधी ।
।भारतीय हिंदू संस्कृति में सभी रिश्तो को महत्व देने के लिए कई पर्व मनाए जाते हैं ।भाई दूज के साथ रक्षाबंधन का पर्व भाई और बहन के अनूठे संबंध को और गहरा करने का पर्व है। भारत में रक्षाबंधन को लेकर पौराणिक और ऐतिहासिक परंपरा रही है। कहा जाता है की असुर देवता संग्राम में इंद्र को उनकी पत्नी इंद्राणी ने अभिमंत्रित रेशम का धागा बांधा था जिसकी शक्ति से वे विजयी हुए। भगवान श्री कृष्ण को द्रौपदी द्वारा उनके घायल उंगली में साड़ी की पट्टी बांधने को भी रक्षाबंधन से जोड़कर देखा जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में भी रक्षाबंधन को लेकर कई किस्से कहानी विख्यात है। मेवाड़ की रानी कर्मावती पर बहादुर शाह ने जब हमला किया तो उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की याचना की। जिसके बाद हुमायूं ने रानी कर्मावती की ओर से युद्ध कर कर्मावती के राज्य की रक्षा की। सिकंदर की पत्नी ने भी हिंदू राजा पुरू को राखी बांधकर अपना भाई बनाया था।
उसी परंपरा का पालन करते हुए इस गुरुवार को बहनों ने सुबह से उपवास रखकर स्नान और श्रृंगार किया। खुद सज धज कर बहनों ने थाल सजाई। जिसमें राखियों के साथ रोली हल्दी चावल दीपक मिठाई आदि रखा। भाइयों को टीका लगाकर उनकी आरती उतारी गई और उनकी दाहिनी कलाई पर राखी बांधी गई। भाइयों ने रक्षा का वचन देते हुए बहनों को उपहार प्रदान किए। छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में रक्षाबंधन को लेकर एक सा उत्साह नजर आया। तमाम आधुनिकताओं के बावजूद आज भी भारतीय परंपराओं पर अटूट विश्वास की झलक ऐसे ही पर्व पर नजर आती है। सभी भाई और बहनों को वर्षभर इसकी प्रतीक्षा होती है।
स्वतंत्रता दिवस के अलावा भी कई शुभ संजोग के बीच रक्षा बंधन का पर्व मनाया गया। सुबह 5:49 मिनट से लेकर शाम 6:00 बजे तक करीब 13 घंटे का मुहूर्त रक्षाबंधन के लिए मिला। 19 साल पश्चात रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस एक साथ मनाया गया।
इस बार रक्षाबंधन का पर्व भद्रा मुक्त होने से दिनभर बहने भाइयों को राखी बांधती रही। कई स्थानों पर भाई राखी बंधवाने बहनों के पास पहुंचे तो कई बहनें भाइयों के पास राखी बांधने पहुंची । भाई और बहन आपस में भले ही हर वक्त लड़ते झगड़ते क्यों न हो लेकिन उनके बीच स्नेह का एक अदृश्य डोर हमेशा बना रहता है, जिसे सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।
रक्षाबंधन पर हर वर्ष इसी डोर को थोड़ा थोड़ा और मजबूत किया जाता है। इस रक्षाबंधन पाए बहनों ने भाइयों की सुनी कलाइयां सजाई तो भाइयों ने आशीर्वाद में उन्हें आजीवन हर संकट में रक्षा का वचन दिया।
स्त्री पुरुष समानता के इस युग में सक्षम बहनों ने रक्षा सूत्र बांधकर भाइयों की मंगल कामना करते हुए उनकी रक्षा का भी वचन दिया।