
डेस्क
केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार ना हो तो फिर तालमेल का अभाव तो स्वाभाविक है। राजनीतिक द्वेष- विद्वेष की बातें भी अक्सर कही सुनी जाती है। जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी और केंद्र में कांग्रेस की, तब भी ऐसी शिकायतें सामने आती थी और अब जब हालात बिल्कुल उलट हैं तब भी यही शिकायतें सुनने को मिल रही है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नए नवेले अध्यक्ष मोहन मरकाम द्वारा पहले बड़े आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई , जिस पर अमल करते हुए शनिवार को बिलासपुर में भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने नेहरू चौक पर धरना प्रदर्शन किया।
कांग्रेसियों का आरोप है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार प्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। एक के बाद एक जनहित की योजनाओं को बंद किया जा रहा है या फिर उन्हें दी जा रही मदद में कटौती की जा रही है। यहां भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खिलाफत करते हुए कांग्रेसी वक्ताओं ने जोरदार तरीके से अपनी बातें रखी। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र की सरकार छत्तीसगढ़ की गरीब जनता, विद्यार्थी से उनका हक और निवाला छीन रही है । इतना ही नहीं महिलाओं को मिलने वाली सुविधाओं में भी कटौती की जा रही है ।उज्जवला योजना के नाम पर केरोसिन के कोटे में भारी कटौती करने का आरोप कांग्रेसी नेताओं ने लगाया । वही सेस के नाम पर पेट्रोल डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी की बात कही गई ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का विरोध करते हुए यह आरोप लगाया गया कि प्रदेश में चल रहे दाल भात केंद्रों के चावल कोटे पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिससे गरीबों को 5 रुपये में मिलने वाला भोजन अब नहीं मिल पा रहा। धान के समर्थन मूल्य में भारी बढ़ोतरी और बढ़ती महंगाई के लिए भी केंद्र की सरकार को यहां जी भर कर कोसा गया।
इस धरना प्रदर्शन में स्थानीय नेताओं के अलावा जांजगीर चांपा के पूर्व विधायक मोतीलाल देवांगन भी शामिल हुए जिन्होंने केंद्र की नीतियों को गरीब विरोधी और छत्तीसगढ़ विरोधी करार दिया
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए अब ऐसे अवसर बेहद कम मिलेंगे जब कांग्रेसी सड़क पर उतरकर किसी मुद्दे पर जन आंदोलन करें। जाहिर है केंद्र को घेरने की नियत से कांग्रेसियों ने एकजुटता दिखाने की कोशिश की लेकिन यहां भी गुटबाजी हावी नजर आई ।जब मीडिया ने बिलासपुर विधायक शैलेश पांडे से बातचीत करने की कोशिश की तो उनका विरोधी खेमा उखड़ गया और वे मीडिया कर्मियों से ही उलझते नजर आए। वैसे भी शैलेश पांडे अपनी ही पार्टी में बेगाने माने जाते हैं और उन्हें शायद अब इस तरह उपेक्षित होने की आदत पड़ गई होगी। इसलिए उन पर ऐसे व्यवहार का खास असर नहीं होता, लेकिन मोदी सरकार के विरोध में किए जाने वाले धरना प्रदर्शन में अपने ही विधायक का ऐसा विरोध आम आदमी की समझ में तो नहीं आता और ऐसे में स्थानीय कांग्रेसी नेताओं का ऐसा रुख अपना कर कौनसा मकसद सध पाएगा यह सवाल भी रह जाता है।