
उदय सिंह
पूरा देश जिस वक्त जम्मू कश्मीर में पृथक वादी धारा 370 और 35a हटाने का जश्न मना रहा है उसी दौर में बिलासपुर के परिसीमन के खिलाफ विपक्ष ने मोर्चा खोल कर अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय दिया है । ऐसा आरोप कांग्रेस लगा रही है। दरअसल बिलासपुर को बी ग्रेट सिटी का दर्जा दिलाने और आसपास बसे ग्रामीण इलाकों में विकास की धारा पहुंचाने के मकसद के साथ बिलासपुर का परिसीमन नए सिरे से किया गया है। बिलासपुर के विधायक शैलेश पांडे ने अपने संकल्प को पूरा किया और उनके विचारों को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अमलीजामा पहनाया। जिसके बाद बिलासपुर और आसपास के 18 ग्रामीण इलाकों को बिलासपुर के नगरीय निकाय में शामिल कर लिया गया है, लेकिन अब भारतीय जनता पार्टी इस फैसले का विरोध कर रही है। उनका आरोप है कि इस फैसले से इन 18 ग्रामीण इलाकों का विकास रुक जाएगा और वहां के लोगों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। आरोप यह भी लग रहे हैं कि खुद बिलासपुर नगर निगम के पास संसाधनों का अभाव है लिहाजा संसाधन और कर्मचारियों की कमी का रोना रोने वाली बिलासपुर नगर निगम किस तरह आसपास के क्षेत्रों में विकास करेगी। इसी मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी का रुख हैरान करने वाला है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी लंबे अरसे से बिलासपुर नगर निगम सीमा विस्तार का समर्थन करती रही है। लेकिन सत्ता बदलते ही विपक्ष की भूमिका में मौजूद भारतीय जनता पार्टी की राय बदली बदली नजर आ रही है। इसी मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के नेता नीरज यादव ने एक नए विवाद को जन्म दिया है। उन्होंने इसे एक तरफा फैसला करार देते हुए कहां कि इससे बिलासपुर शहर को तो लाभ होगा किंतु ग्रामीण क्षेत्र विकास की दौड़ में पिछड़ जाएंगे और इसका दीर्घकालिक दुष्प्रभाव नजर आएगा। इसलिए उन्होंने सभी जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया है कि वे उन इलाकों में डोर टू डोर सर्वे कराए, जिन्हें परिसीमन में शामिल किया गया है और अगर परिसीमन के पक्ष में 55 फीसदी लोग वोट ना दें तो फिर इस अधिग्रहण के फैसले को निरस्त करते हुए यथास्थिति कायम रखी जाए। वहीं उन्होंने 55% से अधिक वोट मिलने पर फैसले को कायम रखने की बात कही है । नीरज यादव का सुझाव बहुत कुछ जम्मू कश्मीर विवाद की तरह ही नजर आ रहा है। हैरान करने वाली बात यह है कि उनका पत्र उसी दिन सामने आया जब जम्मू कश्मीर पर ऐतिहासिक फैसला लिया गया। आप भी जानिए कि नीरज यादव ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर क्या 5 सूत्री मांग रखी है। नीरज यादव चाहते हैं कि
शासन के द्वारा सुनिश्चित की जाए के नए शामिल क्षेत्र के जनता पँर वर्तमान स्थिति से और अतिरीक्त आर्थिक भार नही लिया जाएगा (10वर्षो के लिए)
निगम में शामिल होने वाले क्षेत्रों को विकास और नव योजनाओं में प्राथमिकता व अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी (10 वर्षो के लिए)
स्वास्थ सुविधा,सुरक्षा व्यवस्ता,स्वक्षता व सफाई, पेयजल आपूर्ति,लघु निर्माण व मरम्मत जैसे मूलभुत सुविधा के लिए निगम दफ्तर में आश्रित न हो कर स्थानीय स्तर पर सुविधा व समस्या निराकरण कराने की गारंटी दी जाए (आजीवन)
जो क्षेत्र शामिल किये जा रहे है उनमें वर्तमान में 1 पालिका अध्यक्ष, 2 पंचायत अध्यक्ष, 45 पार्षद,15 सरपंच व 300 से अधिक पंच के रूप में लगभग 363 जनप्रतिनिधी जनता को सेवा हेतु उपलब्ध है जिनकी संख्या आपके अधिग्रण के नियम से 30 ही रह जाएंगी जो तत्कालिक रूप से जनता और जनप्रतिनिधियो के लिए टेढ़ी खीर साबित होगी शामिल हो रहे क्षेत्रो में कुल न्यूनतम 150 जनप्रतिनिधियो की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए (10 वर्सो के लिए)
निगम में शामिल हो रहे निकाय व ग्राम पंचायत में निवासरत गरीब गैर पट्टाधारी/ कब्जाधरियो को अधिग्रण से पूर्व स्थाई पट्टा वितरण कर उनकी उपस्थिति सुनिश्चित की जाए।
दरअसल नगर निगम के अंतर्गत नगर पालिका और नगर पंचायत के शामिल होने से स्थानीय छोटे-छोटे नेताओं की राजनीति समाप्त हो जाएगी और उनके बड़े पदों तक पहुंचने की उम्मीद भी खत्म हो जाएगी। अपनी राजनीति खत्म होते देखकर नेता परेशान है। भले ही वे बहाना आम लोगों के हित की कर रहे हैं, लेकिन असल में स्वहित की वजह से ही इस तरह के विरोध किए जा रहे हैं। वैसे नीरज यादव इतने बड़े नाम नहीं है जिनके पत्र को लेकर कोई खास हलचल पैदा हो , माना जा रहा है कि आने वाले चुनाव को ध्यान में रखकर कई नेता राजनीति की जमीन तलाश रहे हैं इस प्रयास को भी उसी नजरिए से देखने की जरूरत है।