
प्रबंध संपादक
तरक्की की रेस में अगर अव्वल आना है तो यह दौड़ बैसाखिओ के भरोसे नहीं दौड़ी जा सकती । दुनिया का ऐसा कोई मुल्क नहीं है, जहां बात समानता की, की जाती हो, लेकिन लगातार कोशिश यही होती है कि समाज के एक बड़े वर्ग को हमेशा बैसाखी का सहारा दिया जाए, ताकि वह खुद को कमजोर और नकारा समझे । उन्हें हमेशा कमतर होने का एहसास दिलाने के इसी प्रयास यानी आरक्षण का पुरजोर विरोध इन दिनों बिलासपुर में किया जा रहा है। दरअसल 15 अगस्त को प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ऐलान किया था कि अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण प्रतिशत में बढ़ोतरी करते हुए कुल आरक्षण 72% से अधिक किया जाए । उसी के साथ प्रदेश में एक नए बहस ने जन्म लिया है।
इसी के साथ निर्धन सामान्य वर्ग के लिए भी 10% अतिरिक्त आरक्षण है, यानी प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत 82 तक पहुंच चुका है, जबकि संविधान और सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी 50% से अधिक आरक्षण न देने के स्पष्ट निर्देश है। प्रदेश सरकार ने एक बड़े वर्ग को लुभाने के लिए संविधान और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी की है। इस फैसले के बाद से लगातार पूरे प्रदेश में विरोध के स्वर उठ रहे हैं। इसी कड़ी में एक बार फिर सामान्य वर्ग सुरक्षा आंदोलन के बैनर तले करीब 450 अनारक्षित वर्ग के युवा गुरुवार शाम को श्रीकांत वर्मा मार्ग स्थित मॉल के समीप इकट्ठा हुए और यहां प्रदेश की सरकार को सद्बुद्धि देने के लिए उन्होंने प्रार्थना की। हाथों में तिरंगा और आरक्षण विरोधी बैनर लिए इस आंदोलन में बड़ी संख्या में युवतियां भी शामिल हुई । बिलासपुर के अलावा रायपुर राजनांदगांव ,कवर्धा दुर्ग ,जांजगीर-चांपा ,अंबिकापुर, कोरबा, मुंगेली, लोरमी सिमगा से भी बड़ी संख्या में युवा सर्टिफिकेट जलाओ आंदोलन में शामिल होने पहुंचे थे। आरक्षण में बेतहाशा बढ़ोतरी किए जाने के विरोध में यहां सवर्ण युवाओं ने अपने मार्कशीट की प्रतिलिपि प्रतीक रूप में जलाकर अपना विरोध दर्ज कराया।
आंदोलन में शामिल युवाओं का कहना है कि इस तरह से आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाकर देश और प्रदेश की प्रतिभाओं का गला घोंटा जा रहा है । बेहतर होगा कि शासन 100% आरक्षण लागू कर दे ,ताकि अनारक्षित वर्ग किसी मुगालते में ना रहे और बचपन से ही कोचिंग क्लास और सरकारी नौकरियों की परीक्षाओं के मकड़जाल में न फंसे। उन्हें पता होना चाहिए कि उनके लिए इस देश में कोई संभावनाएं नहीं है। अगर प्रतिभा है तो, वे अपनी प्रतिभा का लाभ या तो दूसरे देशों को दे सकते हैं या फिर प्रतिभाओं का गला घोट कर छोटा-मोटा व्यापार करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं होगा । आंदोलन में शामिल युवाओं ने अपनी मांग दोहराते हुए कहा कि अगर देश को सचमुच तरक्की दिलानी है तो आरक्षण को पूरी तरह समाप्त करना होगा जो कि संविधान निर्माता बाबा अंबेडकर का भी सपना था लेकिन वोट बैंक की राजनीति की वजह से यह साहस कोई भी सरकार नहीं कर पा रही, जिसका खामियाजा देश का पढ़ा लिखा वर्ग उठा रहा है। संविधान में समानता की बात की जाती है लेकिन उसी संविधान के नाम पर युवाओं को आपस में बांटा जा रहा है। जाति की बात करने पर अपराध दर्ज होता है लेकिन उसी जाति के नाम पर आरक्षण दिया जाता है। इसी विरोधाभास का विरोध करते हुए बिलासपुर में जुटे युवाओं में आगामी रणनीति तय की और जल्द ही आरक्षण के विरोध में एक मैराथन आयोजित करने का फैसला किया। साथ ही राजधानी रायपुर में भी जल्द ही विशाल आंदोलन की रूपरेखा तय की गई। हालांकि प्रदेश सरकार के आरक्षण के इस फैसले को राजपत्र में प्रकाशित कर दिया गया है, लिहाजा इस आंदोलन के अब खास मायने नहीं रह गए हैं, लिहाजा आंदोलन कर्ता अब अदालत जाने की तैयारी कर रहे हैं। और वे भूपेश सरकार के इस फैसले के खिलाफ जल्द ही याचिका दायर करेंगे। गुरुवार को सामान्य वर्ग हित सुरक्षा आंदोलन में बड़ी संख्या में जुटे युवक-युवतियों की पीड़ा से सचमुच एहसास हुआ कि हमारे देश में एक दौड़ का आयोजन किया गया है। जिसमें भागने वाले कुछ प्रतिस्पर्धीओं पैरों में भारी वजन बांध कर रास्ते में तमाम रुकावटें खड़ी की गई है, वहीं कुछ लोगों को फिनिशिंग लाइन के करीब खड़ा कर दिया गया है ,ताकि वे हर हाल में रेस जीत सके। इससे भले ही देश का एक वर्ग यह रेस जीत जाए लेकिन अंततः देश यह रेस हार जाएगा ,इतना तय है।