अंतरराष्ट्रीय

युद्ध बलिदान मांगता है , बंद कीजिए विलाप

युद्ध में हानि होनी ही है, भले ही आपके पक्ष में साक्षात भगवान् कृष्ण या फिर पुरुषोत्तम श्रीराम ही क्यों न हों।”

सत्याग्रह

कांधार काण्ड की तरह, आज फिर से अभिनन्दन जी के नाम पर विलाप करना बंद करिए। आप दरअसल इतने भावुक हैं कि अक्सर भावुकता में आकर विरोधियों के हाथ का खिलौना बन जाते हैं।

कंधार काण्ड में क्या हुआ था?

हमारे यात्रियों की जान के बदले मसूद अजहर जैसे खूंखार आतंकवादियों की रिहाई मांगी जा रही थी। अटल सरकार रिहाई के मूड में कत्तई नहीं थी, लेकिन इन्हीं विपक्षियो ने हम-आप जैसे भावुकों का इस्तेमाल किया। यात्रियों के परिजनों की रोती हुई शक्लें लगातार टीवी पर दिखाई जाने लगीं। और फिर यह भी कहा गया अटल सरकार से कि, “आज आतंकवादियों को रिहा करके अपने यात्रियों को बचा लीजिये, आतंकवादियों को तो बाद में भी पकड़ा जा सकता है।”

और उसके बाद हुआ क्या? अटल सरकार अपने नागरिक यात्रियों की सुरक्षा के नाम पर झुक गई, और वही विपक्ष आजतक बीजेपी को उसी बात के लिए ताने मारती है कि “कंधार में क्यों आतंकवादियों को क्यों छोड़ दिया?” जबकि वे स्वयं उस समय दबाव डाल रहे थे आतंकियों को छोड़ने के लिए। ये आज घूम घूम कर निर्लज्जता से कहते हैं कि वही अटल सरकार, आतंकियों को हाथ जोड़कर, सकुशल विदा कर आई थी।

इतने दोगले नेता विश्व में कहीं भी नहीं हैं, यह तो तय है। लेकिन इनको ताकत हम ही देते हैं, इनके द्वारा इस्तेमाल होकर। ये इतनी शातिरता से चाल चलते हैं कि हम सब समझदार होते हुए उसमें फँस ही जाते हैं।

युद्ध कौन चाहता है?
क्या वह भारत जिसका इतिहास रहा है कि कभी दूसरे देशों पर स्वयं से आक्रमण ही नहीं किया?
या वो लोग, जो पिछले 1400 सालों से सिवाए आतंक के कुछ सीखे ही नहीं?

हम भारतीय युद्ध नहीं चाहते, लेकिन कोई हमारे 40-50 निर्दोष हँसते-खेलते हुए बस में जाते सैनिकों की “नृशंस हत्या” कर दे, और हम युद्ध की भयावहता से डर कर या भावुक होकर बैठ जाएँ?

इन्हीं अभिनन्दन जी से पूछियेगा आज से आठ दिन बाद, जब ये छूट कर आयेंगे, कि क्या आपको देश की कीमत पर छुड्वाया जाता तो आप खुश और गर्वित होते? यही अभिनन्दन जी थूक देंगे आपके ऊपर।

क्योंकि एक भारतीय सैनिक तो अपने तिरंगे को झुकने से बचाने के लिए ही प्राण त्याग देगा, जबकि यहाँ तो सीधे सीधे देश का सम्मान जुड़ा हुआ है।

भारत सरकार की ताकत बनिए, ताकि फिर से कंधार न दुहराया जा सके। युद्ध में बलिदान तो देने ही होंगे, अन्यथा हम रोज झुलसते हुए ही एक दिन ख़त्म हो जायेंगे।

अभिनन्दन जी को कुछ नहीं होगा। वह सकुशल वापस आयेंगे। हाँ, उनको इतनी यातना झेलनी पड़ सकती है, जितने से शरीर पर निशान न आये, और सैनिक इसके लिए ट्रेंड होते हैं। अन्यथा “कुलभूषण जाधव” जी यदि यातना से टूट गए होते, तो उनका किस्सा कबका ख़त्म हो चुका होता।

, “युद्ध में हानि होनी ही है, भले ही आपके पक्ष में साक्षात भगवान् कृष्ण या फिर पुरुषोत्तम श्रीराम ही क्यों न हों।”

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