
इस धरती और प्रकृति पर जितना अधिकार मनुष्य का है, उतना ही अधिकार दूसरे अन्य प्राणियों का भी है।
इसलिए अब यदि सनातन धर्म का मजाक उड़ाएं तब अपने विवेक और ज्ञान का इस्तेमाल जरूर करें
सत्याग्रह
पिछले कुछ समय से सनातन धर्म का मजाक उड़ाने वालों की संख्या बढ़ी है। इसका कारण उनकी शिक्षा व्यवस्था या उनके घर का संस्कार हो सकता है। कुछ मूढ़मति, सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी देवता को लेकर कुतर्क करते हैं। इसका कारण भी उनका अज्ञानी होना ही है।
धर्म और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं। हम प्रकृति का ही हिस्सा हैं। हम इसी प्रकृति में पैदा होते हैं, जीवन जीते हैं और वापस प्रकृति में समाहित हो जाते हैं।
चूंकि सनातन धर्म सबसे अधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला धर्म है इसलिए इस धर्म ने स्वयं को प्रकृति से जोड़ लिया है। मनुष्य या किसी भी प्राणी का जीवन प्रकृति के बगैर संभव नहीं है। इसलिए सनातन धर्म में उनकी महत्ता स्वीकार करते हुए उन्हें देवी, देवता माना गया है। यही कारण है कि हम जल को, अग्नि को, वायु को, पहाड़ों को, नदियों को और पेड़—पौधों को देवी देवता मानते हैं। इसका सीधा मतलत यह है कि यदि हम अपना अस्तित्व बचाए रखना चाहते हैं तब प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखना जरूरी है। आपको यह भी ज्ञात होगा कि जिस नदी, पहाड़, पेड़—पौधों को हम देवी देवता मानते हैं उनका महत्व औषधीय और अन्य रूपों में सबसे अधिक है।
दूसरी बात पशुओं को भी भगवान या उनके वाहनों के रूप में दर्शाने का कारण भी प्रकृति से सामंजस्य की भावना ही है। साथ ही इससे सह अस्तित्व की भावना का भी बोध कराना है। इस धरती और प्रकृति पर जितना अधिकार मनुष्य का है, उतना ही अधिकार दूसरे अन्य प्राणियों का भी है।
इसलिए अब यदि सनातन धर्म का मजाक उड़ाएं तब अपने विवेक और ज्ञान का इस्तेमाल जरूर करें।