
डेस्क
इंसान भावनाओं का पुतला है एक ही वक्त में कई भावनाएं दिलों से होकर चेहरे और आंखों के रास्ते बाहर छलक जाते हैं। ऐसा ही नजारा इस गुरुवार को भी दिखा । मौका था भाई बहन के स्नेह के पर्व रक्षाबंधन का। रक्षाबंधन पर भाई अपने बहनों के पास राखी बंधवाने जाते हैं या फिर बहने भाइयों के पास रक्षा सूत्र बांधने आती है। यह सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन समय चक्र के क्रूर पंजों में दबोचे गए कुछ भाई ऐसे भी हैं जो जेल की निष्ठुर दीवारों के पीछे अपने परिवार से बेहद दूर हैं। ऐसे भाइयों की कलाई सजाने की आस लिए हजारों की संख्या में बहने बिलासपुर केंद्रीय जेल पहुंची।
मानवीय भावनाओं को सम्मान देते हुए इस बार भी बिलासपुर केंद्रीय जेल द्वारा रक्षाबंधन में जेल में कैद बंदियों की कलाई सुनी ना रह जाए इस मकसद से विशेष आयोजन किया गया था। बिलासपुर केंद्रीय जेल में महिला और पुरुष बंदियों को मिलाकर संख्या करीब 31 सौ है ।इसलिए यहां रक्षाबंधन के पर्व पर 10 हज़ार से अधिक बहने और भाई अपनों से मिलने पहुंचे । यहां एक ही पल पर में खुशी और गम एक साथ चेहरे पर नजर आयी।अपनों से मिलने पर होठों पर हंसी खिल आई लेकिन आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। बिलासपुर के जेल में हर बार की तरह रक्षाबंधन को लेकर विशेष तैयारियां की गई थी। 10 हज़ार के करीब बहनों की उपस्थिति को ध्यान में रखकर समय सीमा और कुछ नियम कायदे तय किए गए थे। अपने भाइयों की कलाई सजाने के लिए बहने एक पाव के करीब लड्डू, राखी और अन्य कुछ सामग्रियां ही लेकर जेल के भीतर जा सकती थी।
भाई और बहन के मुलाकात का समय भी 15 मिनट तय किया गया था। व्यवस्थाएं बेकाबू ना हो इसलिए यहां बैरिकेटिग की गई और चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी के साथ सुरक्षा जवानों ने निगाह बानी की। इन व्यवस्थाओं की वजह से हजारों बहने जेल में निरुद्ध अपने भाइयों तक पहुंच पाई और रक्षाबंधन के महापर्व पर अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधने का अवसर हासिल किया
किसी कारण से जेल की चारदीवारी के पीछे पहुंच गए भाइयों से मिलने की आस लिए बहने यहां पौ फटते ही पहुंचने लगी थी । हाथों में रक्षा सूत्र और दिलो में मिलन की आस लिए बहनों को अपनी बारी का इंतजार था। एक-एक पल काटना भी मुश्किल था। कतार में लगी बहने अपनी पारी की प्रतीक्षा करती नजर आई ।भाई-बहन के स्नेह का यह धागा इतना अटूट है कि दूर दूर से बहने खींची चली आई दुनिया के लिए उनका भाई एक अपराधी हो सकता है लेकिन बहनों का स्नेह , इस वजह से तनिक भी कम होता नहीं दिखा।
सुरक्षा के मद्देनजर सौ सौ के समूह में बहनों को जेल परिसर में प्रवेश दिया गया, जहां प्रवेश करते ही भाई और बहन के दिलों में दबा भावनाओं का ज्वार फूट पड़ा। जेल में बंद भाई की कलाई में राखी बांधकर बहने उन्हें निहारती रही और दोनों के बीच बातचीत की जगह सिर्फ आँखों से आंसू बहते रहे। बिना कुछ कहे सुने ही इन आंसुओं ने ही पूरी कहानी बयां कर दी।
जेल की चारदीवारी इंसान को तोड़ देती है । क्रूर से क्रूर अपराधी भी अपनों से दूर होकर टूट जाता है ।यही टूटन यहां बंद कैदियों में भी नजर आई। परिजनों से मुलाकात बीच बीच में होती है लेकिन बगैर किसी दीवार के यही अवसर होता है जब आमने-सामने मुलाकात होती है और एक दूसरे के स्पर्श का एहसास मिलता है। इस खास अवसर के लिए जेल में बंद भाई भी वर्षभर प्रतीक्षा करते हैं। उनके लिए यह बहुत खास अवसर होता है। अपनी बहनों से मिलकर भाई भी बेहद भावुक होते नजर आए।
सुबह 7:30 बजे से लेकर शाम तक यहां बहनों के जेल में जाकर राखी बांधने का सिलसिला चलता रहा। वही महिला जेल में बंद महिला कैदियों से राखी बंधवाने उनके भाई भी बड़ी संख्या में पहुंचे थे। बहनों ने भाइयों की आरती उतारी, उनके मस्तक पर रोली और चंदन का टीका लगाया और उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा । साथ ही यह कामना भी की कि जल्द ही उनके भाई जेल की चारदीवारी से बाहर आ जाए। इस रक्षाबंधन पर करीब 10 हजार बहनों ने अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधी। जेल प्रबंधन द्वारा की गई व्यवस्थाओं की ही वजह से यहां बिना किसी असुविधा के रक्षाबंधन का पर्व संपन्न किया जा सका।