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कांग्रेस के मंथन शिविर से बेआबरू होकर लौटे विधायक, मुख्य अतिथि के दखल से भी मामला नहीं संभला

कांग्रेस में खेमे बाजी का दौर खत्म होगा, लेकिन कम से कम बिलासपुर में तो ऐसा होता नहीं दिख रहा। इसका असर आगामी लोकसभा चुनाव पर पड़ना तय है

आकाश दत्त मिश्रा

लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस की तैयारियां एक बार फिर विधानसभा चुनाव की तरह विवादों की वजह से सुर्खियां बटोर रही है । सोमवार को बिलासपुर के एक होटल में कांग्रेस कमेटी लीगल सेल द्वारा लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र मंथन एवं मार्गदर्शन शिविर का आयोजन किया गया था। यहां लोकसभा चुनाव को लेकर कानूनी पहलू पर जानकारी देने राज्यसभा सांसद विवेक तंखा पहुंचे थे। मंच पर मौजूद बैनर में तो विधायक शैलेश पांडे की तस्वीर जरूर थी लेकिन पिछले कई बार की तरह इस बार भी उन्हें मंच पर नहीं बुलाया गया। विधानसभा चुनाव के दौरान ही टिकट बंटवारे को लेकर रिश्तो में जमी बर्फ पिघलने का नाम नहीं ले रही। इस कार्यक्रम में भी विधायक शैलेश पांडे के विरोधी गुट के हावी होने की वजह से मंच पर कुर्सियां खाली होने के बावजूद उन्हें मंच पर नहीं बुलाया गया। आखिर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विवेक तंखा को उन्हें बुलाने के लिए कहना पड़ा, तब भी बड़ी मुश्किल से उन्हें 2 मिनट का वक्त दिया गया। अपमानित शैलेश पांडे भी औपचारिकता के दो शब्द कहकर इस शिविर से चलते बने ।कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस की तैयारी से अधिक चर्चा इस घटना ने बटोरी । हालाँकि लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी के नामों की घोषणा बाकी है,लेकिन आम राय अनुसार कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री अटल श्रीवास्तव को ही मुख्य दावेदार माना जा रहा है। ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि अटल श्रीवास्तव का नाम लगभग फाइनल कर लिया गया है। इसीलिए लीगल सेल की इस बैठक में भी अटल श्रीवास्तव और उनके करीबी ही हावी दिखे। यहां पहुंचे राज्यसभा सांसद विवेक तंखा ने बिलासपुर और छत्तीसगढ़ से अपने पुराने दिनों के रिश्ते को याद करते हुए कहा कि उन्हें कभी लगा ही नहीं कि छत्तीसगढ़ उनका घर नहीं है। लोकसभा चुनाव के दौरान आने वाली कानूनी अड़चनों से किस तरह निपटा जाए और कैसे मतदाताओं, खासकर कांग्रेस को समर्थन करने वाले मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाकर उनसे वोटिंग कराई जाए, इस बात पर जोर दिया गया।

वक्ताओं ने बताया कि राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी अधिवक्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसीलिए सभी प्रमुख पार्टियों में देश के चुनिंदा वकील शामिल होते हैं। अधिकांश प्रवक्ता भी वकील ही हैं। चुनाव आयोग द्वारा बरती जा रही नियम कायदों की सख्ती के दौरान नियमों की जानकारी ना होने पर कई बार पार्टी और प्रत्याशी संकट में पड़ सकते हैं। ऐसे में पार्टी का विधि प्रकोष्ठ तारणहार बन सकता है । संकट किस तरह के हो सकते हैं और उनके समाधान पर भी यहां चर्चा की गई ।इस मौके पर विधि प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष के के शुक्ला ने भी अपनी बातें कहीं ।तखतपुर विधायक रश्मि सिंह के अलावा अटल श्रीवास्तव, विजय केसरवानी, नरेंद्र बोलर भी इस शिविर में मौजूद रहे। चुनाव को लेकर किए गए मंथन और मिले मार्ग दर्शन का लाभ कांग्रेस किस तरह उठा पाती है यह देखना होगा। लेकिन फिलहाल तो आपसी गुटबाजी रह-रहकर सतह पर आ जा रही है ,जो कांग्रेस के लिए चिंता का विषय हो सकती है। अजीत जोगी को पार्टी से बाहर करने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि अब कांग्रेस में खेमे बाजी का दौर खत्म होगा, लेकिन कम से कम बिलासपुर में तो ऐसा होता नहीं दिख रहा। इसका असर आगामी लोकसभा चुनाव पर पड़ना तय है।

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