छत्तीसगढ़बिलासपुर

अवैध वसूली करते एसपी ने रंगे हाथों पकड़ा, टी आई के साथ दो आरक्षक निलंबित

अधिकारियों को भी चाहिए ऐसे भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों को चुन चुन कर विभाग से बाहर का रास्ता दिखाएं ताकि सफेद वर्दी पर लगा यह कलंक का दाग मिट सके

बिलासपुर मोहम्मद नासिर

एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। उसी तरह पुलिस महकमे के कुछ बेईमान लोगों की वजह से विभाग के दामन पर भी दाग लगता है। बिलासपुर में ट्रैफिक व्यवस्था का क्या हाल है यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। जगह-जगह जाम लगना, कहीं भी पार्किंग बनाकर वाहन खड़े कर देना, सिग्नल तोड़ना, आम बात है। लेकिन जिन ट्रैफिक के जवानों पर इन्हें व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी है उन्हें तो शायद यही लगता है कि विभाग में उनकी भर्ती केवल वाहन चालकों को रोक रोक कर जुर्माना वसूलना ही है। इस शहर में यह लगने लगा है कि सबसे बड़ा गुनाह कुछ है तो वह है वाहन चलाना। खास कर दो पहिया वाहन। यहां बड़े बड़े अपराधियों को पुलिस भले ना पकडे लेकिन जिस तरह हर चौक चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस के सिपाही फील्डिंग लगा कर बैठे रहते हैं जैसे उन्हें किसी शिकार की तलाश हो। कोई किसी भी जरूरी काम से क्यों न जा रहा हो उन्हें बेवजह पकड़कर नियमों का हवाला देते हुए सिर्फ अवैध वसूली की जाती है। इससे ट्रैफिक व्यवस्था सुधरने वाली नहीं है। और यह बात साबित हो चुकी है। अगर सिर्फ जुर्माना वसूलने से ट्रैफिक व्यवस्था बेहतर हो सकती तो बिलासपुर में कब की हो चुकी होती। कुछ ट्रैफिक कर्मियों ने तो जैसे यह मान ही लिया है कि वाहन चालकों से वसूली करना उनका जन्म सिद्ध अधिकार है। नियमों को ताक में रखकर यह लोग वसूली करते हैं। बाइक सवार को घेरकर सबसे पहले उसकी चाबी निकाल ली जाती है और सीधे चाबी किसी बड़े अधिकारी को सौंप दी जाती है। जब तक वाहन चालक इन की मुट्ठी नहीं गर्म करता, तब तक उसे चाबी नहीं मिलने वाली।

इतना ही नहीं वाहनों की जांच के नाम पर यह लोग सभ्य शहरी वाहन चालकों से जिस तरह ट्रीट करते हैं वह हैरान करने वाली है । बात बात पर गाली ,धमकी और मारने तक की घटनाएं आम है। जबकि एसपी ने साफ निर्देश दिया है कि जब तक साथ में कोई टू या थ्री स्टार अधिकारी ना हो कोई भी चालान ना काटें। केवल गलती करने वाले या नियम तोड़ने वाले वाहनों का नंबर नोट कर विभाग को सौपे। लेकिन ऐसा करने से जेब तो गर्म नहीं होगी। इसलिए एसपी के निर्देश को भी दरकिनार किया जाता है। कुछ दागदार टी आई और आरक्षक इस मामले में खासे बदनाम है। लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनाती। आखिर इनके पाप का घड़ा पूरा भर कर फूट गया ।हमेशा किसी ना किसी चौक चौराहे पर अवैध वसूली करने वाली इस तिकड़ी का भांडा उस वक्त फूट गया जब यह लोग सिरगिट्टी क्षेत्र में वाहन जांच के नाम पर एक कार को नो पार्किंग मैं बता कर उसके मालिक से 900 रूप्यर की मांग कर रहे थे। यहां पर ट्रैफिक टीआई प्रमोद किस्पोट्टा के साथ आरक्षक प्रदीप मिश्रा और जवाहर चौहान अलग अलग वाहनों से वसूली कर रहे थे। आपको बता दें कि यह वसूली विभाग के लिए नहीं की जा रही थी। यह तीनों खुद के लिए वसूली कर रहे थे क्योंकि बिना निर्देश, बिना रसीद के ही लोगों से वाहन चेकिंग के नाम पर यह तीनों अपनी जेब गर्म करने से मैं मशगूल थे। इसी दौरान कार चालक ने यह खबर किसी तरह एसपी तक पहुंचा दी। एसपी अभिषेक मीणा ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एडिशनल एस पी ओ पी शर्मा और ट्रैफिक डीएसपी कुजूर को मौके पर रवाना किया। दोनों ने वहां पहुंच कर पाया की शिकायत बिल्कुल सही है। अधिकारियों को सामने देख कर तीनों रिश्वतखोर पुलिसकर्मियों के पैरों तले जमीन खिसक गई।आसपास मौजूद लोगों और कार मालिक से बात करने पर पर्दाफाश हो गया। यहां ट्रैफिक कर्मचारियों की सामान्य ड्यूटी लगी थी लेकिन वे नियमो का अतिक्रमण कर वसूली कर रहे थे ।यानी बिना किसी अभियान के बिना किसी निर्देश के यह इसी तरह से कभी भी वाहन चालकों को बेवकूफ बनाकर चूना लगाते हैं। इसका खुलासा होने पर तीनों दोषियों को निलंबित कर दिया गया। यह भी साफ हो चुका है कि यह तीनों वाहन चालकों से बिना रसीद रुपयों की अवैध वसूली कर रहे थे।

इस बार तो कार चालक ने एसपी तक शिकायत पहुंचा दी और एसपी भी मौके पर जा पहुंचे जिससे इनकी अवैध कमाई पर से पर्दा हट गया। किसी जमाने में डाकू सड़क से गुजरने वालों को लूटा करते थे । आजकल यही काम ट्रैफिक विभाग में मौजूद कुछ इसी तरह के भ्रष्ट कर्मचारी कर रहे हैं ।जिनकी वजह से विभाग की छवि लूट मचाने वाले की बन चुकी है। लोग ट्रैफिक पुलिस को देखते ही समझ जाते हैं कि इनकी मुट्ठी गर्म किए बगैर आगे बढ़ना मुश्किल है। या तो वे उल्टे पांव लौट जाते हैं या फिर चंगुल में फसने के बाद कुछ ना कुछ देने के बाद ही मुक्ति पाते हैं ।बड़ा सवाल यह है कि क्या यही पुलिस का काम है और क्या इसी से ही ट्रैफिक व्यवस्था बेहतर हो सकती है ।आप भी समझ सकते हैं कुछ भ्रष्ट अफसरों को 100, 200 500 देने से भला ट्रैफिक व्यवस्था कैसे बेहतर होगी। हां इनसे इससे इनकी कमाई जरूर बेहतर हो रही है। अधिकारियों को भी चाहिए ऐसे भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों को चुन चुन कर विभाग से बाहर का रास्ता दिखाएं ताकि सफेद वर्दी पर लगा यह कलंक का दाग मिट सके।

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