
रमेश राजपूत
रतनपुर– “यहां तक आते आते सूख जाती है कई नदियां मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा” दुश्यंत कुमार की पंक्तियाँ इन खानाबदोशों पर इस तालाबंदी में प्रासंगिक हो गई है जो प्रशासन के दावों की हकीकत भी बयान कर रही है। मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के अमलाई निवासी चालीस वर्षीय रहीस नाथ का ज्यादातर जीवन खाना बदोश है वे अपने परिवार के अन्य दस लोगों के साथ मेहनत मजदूरी करते छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के ग्राम पंचायत गतौरा पहूंचे थे की कोरोना के चलते तालाबंदी शुरू हो गई।
तालाबंदी के पांच दिन बाद जमा पूंजी भी खत्म हो गई और कहीं काम मिलने की उम्मीदें भी खत्म हो गई तो पैदल ही दस सदस्यीय परिवार के साथ सड़क नापते मध्यप्रदेश अपने घर की ओर चल पड़े हैं, यह तो इनके लिए अच्छा है कि अब तक इन्हें दिक्कतें नहीं हुई। रतनपुर के केरापार मे सुस्ताने ठहरे तो खाने के लिए भोजन का पैकेट और आगे के रास्ते के लिए समाज सेवी ललित अग्रवाल और जुगनू तंबोली की ओर से उपलब्ध कराए गए 15 किलो चावल और आलू भी मिल गए।
उम्मीद है इनका आगे का सफर भी आसान हो….प्रशासन को ऐसे सैकड़ो मजदूरों की फिक्र करने की जरूरत है जो मजबूरी में फंसे है, साथ ही सामाजिक संगठनों को भी प्रशासन के साथ खड़े होकर मदद करने की आवश्यकता है।