
भुवनेश्वर बंजारे
बिलासपुर – नगर निगम चुनाव में महापौर पद के लिए शिवसेना से प्रत्याशी रेवती यादव पूरी मजबूती से चुनावी मैदान में डटी हुई हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली रेवती यादव बिना भारी प्रचार और धनबल के, केवल जनता की समझदारी और अपने संकल्प के भरोसे चुनाव लड़ रही हैं। उनका कहना है कि इस बार जनता विकास, नारी सशक्तिकरण और मूल ओबीसी वर्ग के अधिकारों के आधार पर मतदान करेगी, न कि केवल पोस्टर, प्रचार और पैसे की राजनीति पर।

रेवती यादव ने अपने संघर्ष की तुलना गुरु गोबिंद सिंह जी के सिद्धांतों से की, जिनके अनुसार उन्होंने बाज से चिड़ियों को लड़ाया और गीदड़ों को शेर बनाया। उन्होंने कहा, “मेरी स्थिति भी ऐसी ही है। एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए प्रचार कर रहे हैं, तो दूसरी ओर वर्तमान मुख्यमंत्री अपने उम्मीदवार के पक्ष में खड़े हैं। ऐसे में मैं एक छोटे पंछी की तरह संघर्ष कर रही हूं, लेकिन हार नहीं मानूंगी।”

रेवती यादव ने इस चुनाव में मूल ओबीसी वर्ग के हक की लड़ाई को प्रमुख मुद्दा बनाया है। उन्होंने कहा कि यह सीट मूल ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित है, लेकिन पार्टियां शायद सही प्रत्याशी नहीं उतार पाईं, जिसके कारण न्यायालय में बार-बार याचिकाएं दायर की जा रही हैं। उन्होंने जनता से अपील की कि वे किसी ऐसे उम्मीदवार को न चुनें जो बाद में ओबीसी प्रमाणित न हो पाए और चुनाव के बाद कानूनी उलझनों में फंस जाए। उन्होंने कहा, “जनता को जागरूक होकर मूल ओबीसी प्रत्याशी को जिताना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई समस्या न हो।” रेवती यादव ने सत्याग्रह आंदोलन के माध्यम से भी जनता को संदेश देने की कोशिश की। उन्होंने पूरे दिन मौन व्रत रखा, ताकि लोग सोचें कि क्या वे भी मूल ओबीसी मुद्दे पर चुप रहेंगे या अपने मत का प्रयोग कर सही निर्णय लेंगे। उन्होंने विश्वास जताया कि जनता इस बार बदलाव के लिए मतदान करेगी और तीर-कमान चुनाव चिन्ह पर मुहर लगाएगी। अपने संकल्प को दोहराते हुए उन्होंने कहा, “अगर जनता मुझे अवसर देती है, तो मैं बिलासपुर को सुव्यवस्थित और देश का नंबर वन स्मार्ट सिटी बनाने का हर संभव प्रयास करूंगी।” उन्होंने नारी सशक्तिकरण, मध्यमवर्गीय परिवारों के उत्थान और रामराज्य की स्थापना को अपनी प्राथमिकता बताया। बिलासपुर नगर निगम चुनाव में इस बार परिणाम चौंकाने वाले हो सकते हैं। जनता जागरूक है और अपने अधिकारों के लिए लड़ रही है। अब देखना होगा कि जनता की ताकत धनबल और प्रचार की राजनीति पर भारी पड़ती है या नहीं।