सत्याग्रह डेस्क
भारत की संस्कृति और हिंदू परंपरा में रिश्तो को जो अहमियत दी जाती है वह किसी और देश में, किसी और संस्कृति में ,दुर्लभ है ।यहां रिश्तों को ताकत देने, इस गांठ को और मजबूत करने वर्षभर कई व्रत और उत्सव मनाए जाते हैं ,जिनमें से एक वट सावित्री का पर्व सोमवार को धूमधाम से मनाया गया। इस पर्व के पीछे सती सावित्री, सत्यवान और यमराज की विश्व प्रसिद्ध कथा है , जिसमें यह संदेश विद्यमान है कि सतीत्व और दृढ़ इच्छाशक्ति से स्त्री चाहे तो अपने पति के हर संकट को हर सकती है, यहां तक कि मौत को भी मात दे सकती है।
ऐसा ही किया था देवी सावित्री ने। सावित्री प्रसिद्ध राजर्षि अश्वपति की एकमात्र कन्या थी, जिसने अपने वर के रूप में राजा धुमत्सेन के पुत्र सत्यवान को स्वीकार किया था। उस समय देवर्षि नारद ने उन्हें ज्ञान कराया कि सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष ही शेष है, लेकिन सावित्री अपने सती धर्म से नहीं डिगी।
सावित्री जानती थी कि उस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन है। जब वे लकड़ियां काटने जंगल जा रहे थे। इसलिए सावित्री भी उनके साथ जंगल चली गई। वृक्ष पर चढ़कर लकड़ी काट
ते समय अचानक सत्यवान को चक्कर आया और वे कुल्हाड़ी फेंक कर नीचे उतर आए। पति का सर अपने गोद में रखकर सावित्री उन्हें आंचल से हवा करने लगी। थोड़ी देर में ही भैंसे पर सवार यमराज प्रकट हुए और सत्यवान के शरीर को फांसी की डोरी में बांधकर बलपूर्वक खींचते हुए ले जाने लगे। लेकिन सावित्री भी पति के पीछे पीछे चलने लगी। बार-बार मना करने के बाद भी सावित्री यमराज के पीछे चलती रही ।
यमराज ने सावित्री को एक एक कर कई वरदान दिए। उनके अंधे सास-ससुर को आंखें दी, खोया हुआ राज्य दिया ,उसके पिता को 100 पुत्र दिए और उन्हें लौट जाने को कहा, लेकिन अपने प्राणों से प्रिय पति को छोड़कर वो लौटने को तैयार नहीं हुई।
तब देवी सावित्री ने यमराज से वरदान मांगा कि मुझे सत्यवान से 100 पुत्र प्रदान करें। यमराज ने बिना सोचे ही प्रसन्न भाव से तथास्तु कह दिया। तब सावित्री ने पूछा, मेरे पति को तो आप ले जा रहे हैं, फिर मुझे 100 पुत्र कैसे होंगे । मैं पति के बिना सुख, स्वर्ग और लक्ष्मी, किसी की भी कामना नहीं करती। वचनबद्ध यमराज को सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को पाश मुक्त करना पड़ा ।तभी से सावित्री सभी सुहागिन भारतीय महिलाओं की आदर्श बन गई । इसीलिए सत्यवान के प्राण हरने वाले उस तिथि पर हर वर्ष वट सावित्री का पर्व मनाया जाता है। यमराज जिस पेड़ के नीचे से सत्यवान को ले जा रहे थे वह पेड़ भी वट का था, इसलिए यह पूजा वटवृक्ष के नीचे की जाती है। इस वर्ष सोमवती अमावस्या, सर्वार्थसिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग के साथ त्रि ग्रही योग में , बेहद शुभ तिथि में मनाया गया ।
अपनी सुहाग की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के साथ महिलाओं ने वट सावित्री पूजन किया। सोलह सिंगार कर ,हाथों में थाल सजाकर महिलाएं वटवृक्ष के पास पहुंची और सती माता की पूजा के साथ वृक्ष की पूजा करते हुए भीगे हुए चने , आटे से बनी मिठाई , कुमकुम, रोली, फल ,धूप, दीप , पंखा,जल आदि अर्पित किया। इसके पश्चात भगवान से पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए पेड़ के चारों ओर परिक्रमा करते हुए कच्चे धागे या मौली का सूत्र लपेटा।
बिलासपुर और आसपास के अंचल में सुबह से ही वट सावित्री पूजन की धूम देखी गई वट सावित्री की पूजा करने के पश्चात सुहागिनों ने पति के चरण धोकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। संतान, सुख, समृद्धि और सौभाग्य की कामना के साथ किए जाने वाले वट सावित्री पर्व से जहां पति पत्नी के अटूट रिश्ते में प्रगाढ़ता बढ़ती है और समर्पण का भाव परिलक्षित होता है वही यह पर्व पेड़ों की महत्ता का भी संदेश देता है। प्रकृति पूजन की परंपरा के ही तहत इस पर्व में विशालकाय वट वृक्ष की पूजा अर्चना कर उनके प्रति आभार जताया जाता है। वटवृक्ष शीतलता प्रदान करती है और ऑक्सीजन प्रदान करने का भी बड़ा माध्यम है। भारतीय परंपराओं में ही संभव है कि इस तरह प्रकृति की पूजा कर उन्हें पूजनीय बना दिया जाता है। सोमवार को सुबह से लेकर शाम तक वट सावित्री पूजन में महिलाएं शामिल दिखी।