
रमेश राजपूत
बिलासपुर – रेलवे स्टेशन पर रोजाना लाखों लोग सफर करते हैं, लेकिन इसी भीड़भाड़ के बीच एक गरीब दंपती के आंसुओं में लिपटी दर्दनाक कहानी ने सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। बिलासपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-1 से दमोह मध्यप्रदेश से आए मजदूर दंपती मिथुन और बिजली प्रधान का डेढ़ साल का बेटा 29 अक्टूबर की रात रहस्यमय ढंग से गायब हो गया। थके-हारे माता-पिता अपने छोटे बच्चे के साथ प्लेटफार्म पर सो रहे थे। रात की खामोशी में जब सबकुछ सामान्य लग रहा था, तभी एक अज्ञात महिला उनके मासूम को गोद में उठाकर वहां से चली गई। दंपती की नींद खुली तो बच्चे का कोई अता-पता नहीं था। बेकाबू होकर वे रोते-बिलखते जीआरपी के पास पहुंचे, लेकिन उनकी फरियाद को सुनने की बजाय उन्हें एक थाने से दूसरे थाने भेजा गया। पीड़ित दंपती ने जीआरपी, तोरवा और तारबाहर थाने में गुहार लगाई, मगर कहीं सुनवाई नहीं हुई। कहा गया यह मामला हमारे थाने का नहीं है। अपने बच्चे की तलाश में दोनों ने रायपुर तक दौड़ लगाई, पर हर जगह निराशा ही हाथ लगी। तीन दिन तक बच्चे की एक झलक के लिए तरसते रहे ये माता-पिता, अंततः फिर स्टेशन लौटे। जब उन्होंने वहां हंगामे की चेतावनी दी, तब कहीं जाकर जीआरपी हरकत में आई।मीडिया के हस्तक्षेप के बाद स्टेशन के CCTV फुटेज खंगाले गए, जिनमें एक महिला बच्चे को गोद में उठाकर प्लेटफार्म से बाहर जाती और ट्रेन में सवार होती दिखी। यह दृश्य देख माता-पिता का कलेजा फट गया। तीन दिन बाद आखिरकार जीआरपी ने गुम इंसान की रिपोर्ट को अपहरण के प्रकरण में तब्दील किया और अज्ञात महिला के खिलाफ मामला दर्ज किया। हालांकि, बच्चे की हाल की तस्वीर न होने के कारण पहचान और खोजबीन में कठिनाई आ रही है।
सुरक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल
घटना ने रेलवे और जीआरपी की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। प्लेटफार्म पर हाईटेक कैमरे, चौकसी का दावा करने वाली जीआरपी और आरपीएफ की मौजूदगी के बावजूद ऐसी घटना होना चिंताजनक है। इससे भी ज्यादा दुखद यह है कि पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही के कारण एक गरीब परिवार को तीन दिन तक दर-दर भटकना पड़ा। अब जबकि मामला सार्वजनिक हुआ है, पूरे शहर में आक्रोश का माहौल है। लोग पूछ रहे हैं जब स्टेशन पर सुरक्षा नहीं, तो आम आदमी अपने बच्चों को कहां सुरक्षित माने? बिलासपुर रेलवे स्टेशन की यह घटना न केवल एक मासूम के अपहरण की दास्तान है, बल्कि यह उस सिस्टम की विफलता की भी सच्ची तस्वीर है, जो नागरिकों की सुरक्षा का दावा तो करता है, पर जिम्मेदारी निभाने में नाकाम साबित होता है।