
सड़क को फॉर्मूला वन रेस का मैदान बनाते इन युवाओं को जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए क्या करना है , यह पूरे समाज को सोचना होगा
ठा.उदय सिंह
नई पीढ़ी इन दिनों अजीब सी खुमारी में में जी रही है । मोबाइल, खासकर स्मार्टफोन ने ना जाने कितनों को निगल लिया है। स्मार्टफोन ने टेलीफोन, कैमरा, घड़ी, कैलेंडर ,चिट्ठी टेप रिकॉर्डर और भी कितने अहम चीजों को निगल लिया और अब यह ज़िन्दगियाँ निकल रही है । नई पीढ़ी जैसे मोबाइल के साथ ही पैदा हो रही है ।मोबाइल और इंटरनेट की यह आभासी दुनिया उसे जुनूनी बना रही है। इन दिनों युवा वर्ग में इंस्टाग्राम, विगो वीडियो, म्यूजिकली, टिक टॉक जैसे सोशल मीडिया को लेकर पागलपन की हद तक जूनून है। इस उम्र में युवा खुद को साबित करने का संघर्ष करता है। सोशल मीडिया ने उसे जैसे एक मंच दे दिया है ।इस मंच पर वह हर उस नामुमकिन को मुमकिन बना देने की कोशिश की लड़ाई लड़ रहा है जिससे वह इंसान से सुपरमैन बन जाए। टिक टॉक और विगो वीडियो जैसे साइट्स पर एक तरफ लड़कियां अपनी खूबसूरती और डांस स्केल का प्रदर्शन कर रही है तो वही लड़के या तो कॉमेडी करते हैं या फिर खुद को माचो दिखाने स्टंट का सहारा लेते हैं ।मर्द बनते युवाओं के लिए खुद को बेहतर प्रदर्शित करने के लिए किसी भी हद तक गुजरने का जुनून युवा वर्ग में दिखा जा रहा है ।कुछ युवा यहाँ बेहद खतरनाक स्टंट करते नजर आते हैं तो कई युवा रफ्तार के दीवाने हैं ।तेज रफ्तार जैसे उनके इरादों को पंख लगाने का एहसास कराता है ।इसी रफ्तार ने असमय एक उम्मीद का अंत कर दिया। शहर के वरिष्ठ पत्रकार सितेश द्विवेदी का 25 वर्षीय होनहार बेटा शीतांशु द्विवेदी भी रफ्तार का दीवाना था। तेज रफ्तार में मोटरसाइकिल और कार चलाना तो उसकी हॉबी थी ।इंस्टाग्राम पर भी उसने ऐसे कई वीडियो अपलोड कर रखे थे जिसमें उसके इस जुनून को साफ देखा जा सकता था । इंस्टाग्राम पर उसकी एक वीडियो अपलोड है जिसमें उसे 125 किलोमीटर की रफ्तार से बाइक चलाते देखा जा सकता है। गुरुवार रात भी वह ऐसा ही एक वीडियो बनाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन शायद उसे भी नहीं पता था कि यह उसका आखिरी वीडियो साबित होगा ।
इस कदर आखिरी शायद वह उसे अपलोड भी ना कर पाए ।जिस वक्त शीतांशु के परिजन घर पर चैन की नींद सो रहे थे उस वक्त उनका लाडला शीतांशु इस रफ्तार से सड़क पर भाग रहा था कि अपनों से वह हमेशा के लिए दूर चला गया । घर वाले उसे प्रिंस मानते थे तभी तो उसे प्रिंशु कहकर पुकारा जाता था। पारिजात कॉलोनी रिंग रोड नंबर 2 में रहने वाले सितेश द्विवेदी का छोटा बेटा शीतांशु इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद ऑनलाइन ट्रेडिंग का काम करता था। सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड करने का उसे बहुत शौक था। हर वक्त अपनी तस्वीर और वीडियो अपलोड करने वाला शीतांशु गुरुवार रात को अपने कुछ दोस्तों के साथ जन्मदिन की पार्टी मना कर घर लौटा और उसके बाद अपने दोस्तों को स्टेशन छोड़ने जाने की बात कह कर अपनी हौंडा सिटी कार घर से निकाल ली। जब वह घर से निकला तो अपने दोस्तों को इंप्रेस करने के लिए इंस्टाग्राम पर लाइव वीडियो बनाना शुरू कर दिया और दोस्तों को दिखाया कि किस तरह कार ने 120 की रफ्तार पकड़ ली।वह लगातार वीडियो सूट करता चल रहा था, लेकिन मंगला चौक से पहले सिद्ध शिखर अपार्टमेंट के ठीक सामने सड़क पर मोड़ के दौरान उससे रफ्तार सम्भली नहीं और कार एक तरफ पलट गई। शीतांशु को तो बाहर निकलने तक का मौका नहीं मिला। शायद उसके सर पर गहरी चोट लग गई थी। प्रत्यक्षदर्शियों का तो मानना है कि उसकी मौत मौके पर ही हो चुकी थी। बड़ी मुश्किल से उसे निकालकर सिम्स पहुंचाया गया लेकिन होनी ने अपना काम कर दिखाया था। परिजन तो घर पर सोए हुए थे जिन्हें तड़के 4:30 बजे यह सूचना मिली कि उनके घर का दीपक रात में ही बुझ गया है । घर वालों को भी पता था कि उनका बेटा तेज रफ्तार बाइक और कार चलाता है लेकिन आज के माता पिता अपने बच्चों को अधिक टोका टोकी नहीं करते क्योंकि ऐसा करना बच्चे पसंद भी नहीं करते। युवा बेटा भला क्यों माता पिता की सुनता ।उसे तो रफ्तार पसंद था। उसे लगता था कि वह सुपरमैन है। कोई दुर्घटना उस का बाल बांका नहीं कर सकती। भूल गया था शीतांशु कि वह भी हाड़ मांस का बना एक इंसान है और हर इंसान की तरह दुर्घटना में उसकी भी जान जा सकती है, लेकिन रफ्तार की दीवानी नई पीढ़ी यह बात नहीं समझती।
उनके लिए तो यह रफ्तार जिंदगी का हिस्सा है ।पता नहीं इस पीढ़ी को किस बात की हड़बड़ी है। हर चीज में जल्दी। तेज रफ्तार जिंदगी को कहीं नहीं ले जा सकती, सिवाय मौत के दरवाजे तक ले जाने के। सड़कों पर आप भी इस पीढ़ी को तेज रफ्तार गाड़ी चलाते देखकर कांप जाते होंगे। यकीन नहीं होता कि कैसे यह लोग इस रफ्तार को संभाल पाते हैं। ऐसा लगता है इन्होंने कोई ड्रग्स लिया है, तभी सड़क पर इस जानलेवा रफ्तार से वाहनों को दौड़ाते हैं। आसपास के लोग भले ही सिहर उठे लेकिन इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता और जब हादसे हो जाते हैं, तो फिर फर्क परिवार को पड़ता है ।उस समाज को पड़ता है ,जो अपने युवाओं के खून से सड़कों को लाल होता देख रहा हैं। इन पर कानून या अनुशासन से अंकुश लगाना मुमकिन नहीं। पश्चिमी सभ्यता और सोशल मीडिया की आभासी दुनिया से यह जो कुछ सीख रहे हैं उसी को आजमाने की हर पल कोशिश करते हैं ।खुद को दूसरे से श्रेष्ठ दिखाने की इस होड़ में सकारात्मक चीजें क्षितिज में गुम हो रही है ।जो कुछ सामने है वह सिर्फ विध्वंसक है और आज की पूरी पीढ़ी विस्फोटक बन चुकी है ।सड़कों पर तेज भागता हर युवा जैसे आत्मघाती दस्ते का सदस्य ही हो ।इस फिदायीन पीढ़ी की रफ्तार से इस लगाव को जब तक खत्म नहीं किया जाएगा, तब तक सड़कों पर ऐसे हादसे रोज होंगे। रोज कोई नया शीतांशु अपनी जान देगा। सड़क को फॉर्मूला वन रेस का मैदान बनाते इन युवाओं को जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए क्या करना है , यह पूरे समाज को सोचना होगा, क्योंकि नई पीढ़ी खुद सोचे, इस काबिल वह कतई नहीं है ,होती तो ऐसा नहीं करती।