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टीवी पर एक पुराना विज्ञापन चलता है, जिसमें संडे हो या मंडे रोज अंडे खाने की बात कही जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इन दिनों अंडा, विवाद और राजनीति का विषय बन कर रह गया है। प्रदेश में मुर्गी के अंडे की राजनीति चोटी पर है । दरअसल राज्य सरकार बच्चों का कुपोषण दूर करने मध्यान भोजन में बच्चों को अंडा देना चाहती है लेकिन सरकार के इस फैसले का कई सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है ।असल में लोग इसे धर्म से जोड़कर देख रहे हैं । उनके इसी चश्मे की वजह से विरोध की राजनीति शुरू हो चुकी है।
बच्चा अंडा खाएगा या नहीं , यह पूरी तरह उसके और उसके परिवार के विवेक पर निर्भर है। सरकार ने बच्चों के अंडा खाने को अनिवार्य नहीं किया है, लेकिन फिर भी सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध किया जा रहा है । यह सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ के बच्चे कुपोषण की मार झेल रहे हैं। वहीं अंडे में विटामिन ,प्रोटीन के अलावा कई खनिज लवण की मौजूदगी होती है और अंडा पोषक तत्वों का सस्ता साधन है। इसीलिए सरकार ने बच्चों में कुपोषण दूर करने और भोजन के प्रति उनकी दिलचस्पी जगाने मध्यान भोजन में अंडा देने का फैसला किया है, लेकिन कई राजनीतिक संगठन बच्चों के हित को नजरअंदाज कर इसका विरोध कर रहे हैं । अहम बात यह है कि मध्यान्ह भोजन में अंडे परोसे जाने का विरोध अधिकतर वह लोग कर रहे हैं , जिनके बच्चे संभवत सरकारी स्कूलों में पढ़ते ही नहीं और विरोध करने वालों में वह लोग भी शामिल हैं जिनके बच्चे बड़े मजे से अंडे खाते हैं।
मुंगेली में भी कबीर पंथ द्वारा मिड डे मील में अंडा वितरण को लेकर विरोध दर्ज कराया गया। समाज के प्रतिनिधियों ने विरोध रैली निकालकर प्रदर्शन किया और कलेक्ट्रेट पहुंचकर कलेक्टर सर्वेश्वर पूरे को राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपकर मिड डे मील में अंडा वितरण नहीं करने की मांग की। कबीर पंथ समाज के जिला अध्यक्ष हेमेंद्र गोस्वामी की दलील है कि शासन यह बात बेहतर जानता है कि कबीर पंथी शुद्ध शाकाहारी होते हैं और आंगनवाड़ी केंद्रों में कबीर पंथ समाज के बच्चे बड़ी संख्या में मौजूद है। अंडा परोसे जाने का उन्होंने पुरजोर विरोध किया है ।उन्होंने कहा है कि अंडा पड़ोस कर सरकार उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रही है। विरोध दर्ज कराने वालों ने दावा किया है कि प्रदेश में कबीरपंथीओं की संख्या 35 लाख के करीब है, जो सरकार के इस फैसले से प्रभावित होंगे, इसलिए उन्होंने सभी मंत्रियों और अधिकारियों से मध्यान भोजन में अंडा देने के इस फैसले को वापस लेने का निवेदन किया है ।
वही हेमेंद्र गोस्वामी यह भी कहते हैं कि अंडे के विकल्प के रूप में सोयाबीन, मूंग जैसे प्रोटीन के शाकाहारी विकल्प भी मौजूद है। सरकार को उस पर चिंतन करना चाहिए ।हालांकि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अंडा खाना है या नहीं, यह फैसला बच्चे को ही करना है लेकिन इसके विरोध में हेमेंद्र गोस्वामी यह दलील दे रहे हैं कि छोटे बच्चों को अंडे और आलू में अंतर करना नहीं आएगा और उनके विवेक पर भी फैसला नहीं छोड़ा जा सकता। कुल मिलाकर सरकार शाकाहारी अंडे परोसाना तो चाहती है लेकिन कई स्तरों पर उसका विरोध शुरू हो चुका है
। जिससे योजना पर संकट के बादल गहराने लगे हैं । वही कबीर पंथ समाज ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का हवाला देते हुए अंडा वितरण बंद नहीं करने पर आंदोलन जारी रखने की बात कही है।