मल्हार

कण- कण में है शिव…सावन के दूसरे सोमवार मल्हार के पातालेश्वर महादेव मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़…घण्टे घड़ियाल से गुंजायमान रहा अंचल

हरिशंकर पांडेय

मल्हार – प्रागैतिहासिक नगरी मल्हार के स्वयं भू भगवान पातालेश्वर महादेव मंदिर में सावन के दूसरे सोमवार 17 जुलाई को हजारो शिव भक्तों ने जलाभिषेक किया। इस बार सावन के दूसरे सोमवार को सोमवती अमावस्या तिथि पड़ने से शिवभक्तों ने जिसमे विशेषकर महिलाओ व युवतियों ने विशेष पूजन कर भोलेनाथ को प्रसन्न किया और मनवांछित फल की कामना की। मंदिर के पुजारी ताराचंद अवस्थी ने बताया कि सावन माह प्रारंभ होते ही भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है परन्तु पहले सोमवार की अपेक्षा आज दूसरे सोमवार को भक्तो की संख्या पांच गुना ज्यादा थी। जिसमे सबसे ज्यादा महिलाओ व युवतियों की थी।

सुहागिन महिलाए अपने पति की लंबी उम्र व युवतियों ने अपने लिए योग्य वर की कामना के साथ शिवजी को प्रिय फूलों व पूजन सामग्रियों से पूरे मनोभाव के साथ पूजा अर्चना की। तो वहीँ बोलबम हरहर महादेव का जयकारा लगाते विभिन्न नदियों से जल लाकर कांवड़ियों ने महादेव में अभिषेक किया। शिव नगरी मल्हार में भगवान पातालेश्वर मंदिर के अलावा विभिन्न स्थानों में स्थापित शिव लिंग की भी पूजा हो रही है। माँ डिडनेश्वरी मंदिर परिसर स्थित शिव मंदिर में भी आज दिनभर भक्तो की कतार लगी रही। सोमवती अमावस्या तिथि होने के कारण महिलाओ ने तालाबो के किनारे लगे बरगद वृक्ष के नीचे विधि पूर्वक पूजन किया। वही पौराणिक महत्व के परमेश्वरा तालाब में डुबकी लगाकर सैकड़ो लोगो ने बोलबम के जयकारे के साथ भगवान पातालेश्वर में जलाभिषेक किया।

कण कण में शिवजी व नाग देवता….

मान्यता है कि धर्मनगरी मल्हार शिव की नगरी है। उनके साथ उनका गले की हार माना जाने वाला नाग देवता भी भगवान शिव के साथ हमेशा रहते है इसीलिए तो यहां विभिन्न प्रजातियों के सर्प ज्यादा संख्या में दिखाई देते है परन्तु किसी को कोई नुकसान नही पहुचाते। नगर में जहां भी शिव लिंग है वहाँ इनके गण नाग देवता विराजते हैं। यहाँ के प्राचीन मूर्तियों में भी नागराज का चित्र सहज ही देखने को मिल जाता है। जानकारों के अनुसार यहां शैव व शाक्त परम्परा के मानने वाले भी अपनी सिद्धि के लिए जप तप करते थे व अघोर विद्या भी यहां मिलती थी। इन सबके देव भी महादेव है इसलिए यहां भगवान शिव के हजारो मूर्तियां व शिवलिंग आदिकाल से स्थापित है। बिना शिवलिंग के देउर मंदिर व बरबाँधा तालाब के पास स्थित स्थापित शिवलिंग के भग्नावशेष देखकर प्रतीत होता है कि यहां साधु संत सिद्धि प्राप्ति के लिए कठोर तप करते रहे होंगे।

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