
डेस्क
रेलवे की कथनी और करनी में कोई तालमेल नहीं है। एक तरफ तो रेलवे के अधिकारी बारिश के इस मौसम में वृहद पैमाने पर वृक्षारोपण का दावा करते हैं, साथ ही रेलवे, रेल पटरियों के दोनों किनारों पर पेड़ लगाने की योजना पर भी काम कर रही है, लेकिन वही रेलवे द्वारा बिलासपुर में रेलवे कॉलोनी स्थित हरे-भरे दरख्तों को बेवजह काटा जा रहा है। नियम कायदों को ताक पर रखकर रेलवे के ठेकेदार पेड़ों की बलि ले रहे हैं। नगर निगम के वार्ड क्रमांक 65 स्थित रेलवे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विशालकाय और हरे-भरे पेड़ों को काटा गया है। रेलवे की जमीन पर मौजूद 30 से 50 साल पुराने इन पेड़ों को निर्माण के नाम पर आई ओ डब्लू विभाग द्वारा काटा जा रहा है और इस संबंध में रेलवे के अधिकारी, उच्चाधिकारियों के आदेश का हवाला दे रहे हैं । कायदे से बगैर कलेक्टर के परमिशन के पेड़ों को काटना कानूनन जुर्म है, लेकिन रेलवे वैसे भी कब खुद को जिला प्रशासन के नियम कायदों से बांधता है। रेलवे के अपने ही नियम कायदे और शायद संविधान भी है ,इसलिए रेलवे द्वारा अपने इलाके में नियम कायदों को ताक पर रखकर बेधड़क बड़े-बड़े पेड़ काटे जा रहे हैं। जबकि दुनिया भर में निर्माण के दौरान इंजीनियर इस तरह का नक्शा तैयार कर रहे हैं जिससे पेड़ों को काटना ना पड़े।
बिलासपुर का रेलवे क्षेत्र ही सर्वाधिक हरा-भरा क्षेत्र है। अब उसे भी तबाह करने की कोशिश नासमझ रेल अधिकारी कर रहे हैं ।इस संबंध में समाजसेवी और हिंदू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष हितेश तिवारी ने जब संबंधित ठेकेदार से बात की तो उसने बताया कि उसके द्वारा पेड़ों को काटने के बाद आरा मिल को बेच दिया जायेगा। ठेकेदार ने और भी कई चिन्हित पेड़ो को काटने की बात कही है।
बिलासपुर में जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है और यहां का तापमान भी निरंतर बढ़ता जा रहा है। ऐसे में पेड़ों की अहमियत अब यह शहर समझने लगा है, लेकिन बाहर से आकर कुछ वर्षों तक रेलवे में नौकरी कर वापस लौट जाने वाले अधिकारियों को बिलासपुर की आबोहवा से कुछ खास लेना-देना नहीं है । इसीलिए वे यहां के नफे नुकसान के प्रति भी संवेदनशील नहीं है। लेकिन पेड़ों को इस बेधड़क तरीके से काटे जाने का खामियाजा आखिरकार बिलासपुर वासियों को ही भोगना होगा। इसलिए जरूरी है कि जिला प्रशासन मामले में दखल दे और वस्तुस्थिति की जानकारी ले। ताकि हरे भरे और विशालकाय पेड़ो की हत्या रुक सके।