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भारतीय हिंदू संस्कृति में प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा का स्वरूप भले बदल गया हो लेकिन आज भी गुरु की गरिमा, उच्च आदर्श के साथ प्रतिष्ठित है। भारतीय संस्कृति में गुरु को हमेशा ईश्वर से भी एक दर्जा ऊपर का स्थान दिया गया है। गोविंद से बेहतर गुरु माने गए हैं और गुरु को त्रिदेव से भी बढ़कर बताया गया है। ऐसे ही गुरुजनों का पूजन दिवस है गुरु पूर्णिमा। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है ।चतुर्मास के इस काल खंड में प्राचीन काल में गुरु एक ही स्थान पर ठहरते थे और यही समय उनके सानिध्य में शिष्यों के लिए ज्ञान प्राप्ति का अवसर लेकर आता था। संस्कृत में गू का अर्थ अन्धकार या अज्ञान है। और रु का अर्थ उस का विलोम है। इसीलिए गुरु अज्ञान के अँधेरे को दूर कर प्रकाश आलोकित करने वाला माना जाता है। अंधकार से हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ही गुरु कहते हैं। वेदों से लेकर कबीर तक ने गुरु की महिमा का वर्णन किया है। गुरु पुर्णिमा ही महर्षि वेदव्यास का जन्म दिन भी है जिन्हें आदि गुरु माना जाता है। छत्तीसगढ़ी परंपरा में भी गुरु को महत्वपूर्ण स्थान हासिल है और यहां एक लोक उक्ति विख्यात है कि पानी पियो छान के और गुरु बनाओ जान के। संसार में जितने भी महान व्यक्तित्व हुए हैं, सब के पीछे उनके गुरुओं का योगदान है ।आदिकाल में अर्जुन हो या फिर चंद्रगुप्त मौर्य या वर्तमान में सचिन तेंदुलकर और उनके गुरु के किस्से से सभी परिचित है । आजाद भारत में भले ही 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में गुरु को नमन किया जाता है लेकिन हिंदू परंपराओं में आज भी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर ही गुरु पूजा का विधान है ।
व्यक्ति की प्रथम गुरु माता होती है तो वही ईश्वर सभी के गुरुजन है। इसीलिए गुरु पूर्णिमा पर जहां माता पिता की पूजन वंदना की गई वहीं मंदिरों में भी आयोजन कर ईश्वर की साधना की गई। बिलासपुर के श्री वेंकटेश्वर मंदिर, सीताराम मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर सहित अन्य मंदिरों में भी गुरु पूर्णिमा पर विशेष पूजा अर्चना कर ज्ञान रस प्रवाहित की गई।
संसार का सत्य यही है कि गुरु के चरणों में ही उपस्थित होकर शिष्य को ज्ञान , शांति ,भक्ति और योग शक्ति की प्राप्ति होती है । गुरु पूर्णिमा पर ईश्वर के साथ आध्यात्मिक गुरुओं की भी पूजा अर्चना उनके शिष्यों द्वारा की गयी। इसी कड़ी में रामकृष्ण मिशन से लेकर साईं बाबा के मंदिरों में भी महत्वपूर्ण आयोजन हुए।