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प्राचीन और धार्मिक नगरी रतनपुर में एक बार फिर आस्था का उफान नजर आने लगा है। पवित्र सावन मास में यहां हजारों की संख्या में कांवड़िए बूढ़ा महादेव के जलाभिषेक के लिए पहुंचने लगे हैं। वैसे तो रतनपुर की पहचान मां महामाया देवी के मंदिर के कारण हैं लेकिन यहां कई अन्य प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर भी हैं । जिनमें से वृद्धेश्वरनाथ या बूढ़ा महादेव का मंदिर भी एक है। इस स्वयंभू शिवलिंग को लेकर यहां कई किवदंतीया प्रसिद्ध है।
पुराने लोग बताते हैं कि सदियों से बांस के जंगलों के झुरमुट में स्वयंभू शिवलिंग मौजूद था। राजा वृद्ध सेन की एक गाय जंगल में चली जाती और एक विशेष स्थान पर जाकर अपने दूध से एक शिला का अभिषेक करती। जब चरवाहे ने राजा को घटना से अवगत कराया तो वे भी गाय का पीछा करते हुए उस स्थान पर पहुंचे और उस दृश्य को देखकर चमत्कृत हो गए। उसी रात उन्हें स्वप्न आदेश हुआ और फिर उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की। फिर अपने नाम के साथ जोड़कर महादेव की इस स्वरूप का नाम वृद्धेश्वर रखा जिसका अपभ्रंश धीरे-धीरे बूढ़ा महादेव हो गया ।
हर वर्ष यहां सावन के पवित्र महीने में बेलपान के नर्मदा कुंड से कांवड़िए जल लाकर भोले भंडारी का जलाभिषेक करते हैं। इसके लिए दूर-दूर से कांवरिये एक दिन पहले ही बेलपान नर्मदा कुंड पहुंच जाते हैं वहां से लंबी पदयात्रा कर वे बूढ़ा महादेव पहुंचते हैं रास्ते में उनकी सेवा, भोजन और चिकित्सा के लिए भी व्यवस्था की जाती है । सोमवार तड़के से ही यहां जलाभिषेक का क्रम आरंभ हो जाएगा। यहां शिवलिंग क्षरण के रूप में विद्यमान है । अद्भुत दावा यह किया जाता है कि इस शिवलिंग में अरबो घड़ा जल अर्पित कर देने के बाद भी कभी भी जल का स्तर बाहर नहीं आता और जल कहां लुप्त हो जाता है यह कोई नहीं जानता
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी यहां हजारों की संख्या में भोले के भक्त कांवड़िए जलाभिषेक के लिए पहुंचेंगे जिस तरह नवरात्र में माता के भक्त रतनपुर में उमड़ते हैं, उसी तरह सावन के महीने में भोले भंडारी के भक्तों से रतनपुर गुंजायमान होगा साथ ही हर तरफ ओम नमः शिवाय और बोल बम का नारा गूंज उठेगा ।