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नवरात्र शुरू होने में मात्र 2 दिन शेष हैं और इससे पहले कोलकाता से खबर आ रही है कि यहां 50 किलो सोने से मां दुर्गा की मूर्ति तैयार की गई है, जिसकी कीमत 20 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इस मूर्ति को मध्य कोलकाता के एक पंडाल में अंतिम स्वरूप दिया जा रहा है।
कोलकाता में हर साल भव्य तरीके से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। संतोष मित्र स्क्वेयर दुर्गोत्सव समिति ने अबकी बार मां दुर्गा की मूर्ति सोने की बनवाई है। इस मूर्ति की ऊंचाई 13 फीट है। इसमें 50 किलो सोना लगा है। जिसकी कीमत तकरीबन 20 करोड़ रुपये है। आयोजकों ने उम्मीद जताई है कि इस भव्य मूर्ति के दर्शन के लिए न सिर्फ कोलकाता से बल्कि देश-विदेश से भी भक्त पहुंचेंगे। इस मूर्ति को पंडाल में 4 अक्टूबर से स्थापित किया जाएगा। यहां 4 दिनों तक दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन किया जाएगा।संतोष मित्र स्क्वेयर दुर्गोत्सव समिति के अध्यक्ष प्रदीप घोष ने बताया, ‘इससे पहले कभी किसी ने सोने की मां दुर्गा की कल्पना भी नहीं की होगी। यह हमारी कनक दुर्गा हैं, जो ऊपर से नीचे की ओर 50 किलो सोने की लागत से बनी है।
बता दें कि दो साल पहले भी 2017 में कोलकाता में मां दुर्गा की मूर्ति को सोने की साड़ी पहनाई गई थी। ऐसे वक्त जब सोना 40000 हजार रुपये का प्रति 10 ग्राम बिक रहा है, 50 किलो सोने से मां दुर्गा की मूर्ति बनाया जाना सबसे बड़ा आश्चर्य है। यही नहीं पिछले साल एक पंडाल में मां दुर्गा को चांदी के रथ पर भी बैठाया गया था।हालांकि, ऐसा नहीं है कि आयोजकों ने मूर्ति के लिए अपनी जेब से खर्च किया है। मूर्ति बनाने के लिए सोने को उपलब्ध कराने के लिए एक से अधिक आभूषण ब्रांड आगे आए हैं। मूर्ति विसर्जन के बाद उन्हें सोना वापस मिल जाएगा। सामुदायिक पूजा के सचिव सजल घोष ने कहा, ‘हमने बड़ी संख्या में मल्टी नैशनल कॉरपोरेट्स को भी अपने साथ जोड़ा है जिन्होंने मूर्ति के लिए फंड मुहैया कराया है और त्योहार की ज्यादातर लागतें पूरी की हैं।मूर्ति के अलावा, पूजा में दर्शन के लिए आने वालों के लिए अन्य आकर्षण यहां का पंडाल भी है जो काफी शानदार बनाया जा रहा है। नादिया जिले के मायापुर में वैष्णव हिंदू मंदिर इंटरनैशनल सोसायटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस यानी इस्कॉन के निर्माणाधीन चंद्रोदय मंदिर की तरह ही इस बार संतोष मित्र स्क्वेयर का पूजा पंडाल बन रहा है। पंडाल के अंदरूनी हिस्सों को शीशमहल बनाने के लिए कई टन कांच का उपयोग किया जा रहा है। लगभग 200 कारीगर और कार्यकर्ता आयोजकों की योजनाओं को आकार देने के लिए पिछले ढाई महीनों से मेहनत कर रहे हैं।देवीभागवत पुराण के अनुसार देवी की प्रतिमा मिट्टी होनी चाहिए। जिसमें अलग-अलग स्थानों की मिट्टी का प्रयोग होना चाहिए। मिट्टी के अलावा सोने की प्रतिमा बनाकर भी देवी की पूजा की जा सकती है। स्वर्ण प्रतिमा पूरी तरह से शुद्ध होती है। इनको मंत्र विसर्जन करके फिर से चाहें तो आगे भी पूज सकते हैं।