प्रकृतिमुंगेली

मुंगेली के आगर नदी पर संकट के बादल , गंदे नाले में तब्दील हो चुकी नदी को बचाने नहीं हुआ इस बार भी कोई प्रयास, कब सबक लेंगे हम

आकाश दत्त मिश्रा

इतिहास गवाह है कि सारी सभ्यताओं का विकास नदी तटों पर ही हुआ है। सभी विख्यात शहर किसी ना किसी नदी के तट पर ही बसाये गए है। दरअसल मानव जीवन के लिए जल की आवश्यकता को हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले समझ लिया था , इसीलिए उन्होंने विकसित नदियों के आसपास ही शहरों को बसाया और नदियों को ईश्वर का दर्जा दिया ।

अगर हम बात मुंगेली जिले की करें तो यहां भी निस्संदेह किसी और भी परिस्थितियों से कहीं अधिक प्रभावशाली आगर नदी की मौजूदगी थी, जिस वजह से यहां आस-पास पहले गांव ,फिर कस्बा और फिर एक मझोला सा शहर विकसित हुआ। लेकिन विडंबना देखिए कि आज उसी नदी को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ रहा है । मानवीय आकांक्षाओं, लोभ और अदूरदर्शिता की वजह से आज आगर नदी अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है , जबकि असल में यह लड़ाई मुंगेली निवासियों के भविष्य से जुड़ी हुई है। लेकिन फिर भी इसे लेकर वह संवेदनशीलता नजर नहीं आती जिसकी वास्तव में आवश्यकता है। मुंगेली की लाइफ लाइन रही आगर नदी को मौजूदा पीढ़ी ने भी हमेशा बहते देखा था लेकिन अब तो यह नदी किसी बरसाती नाले की तरह नजर आती है। बरसात के कुछ महीने इसमें पानी भले नजर आ जाए लेकिन वर्ष भर एक सूखे नाले से अधिक आगर नदी नजर नहीं आती। आगर के साथ अगर -मगर किए जाने का ही यह असर है और मुंगेली इसकी कीमत भी चुका रहा है। लगातार मुंगेली में कम होती बारिश की वजह से भूगर्भ जल पाताल की ओर जा चुका है। पुराने सारे बोरवेल इस साल ध्वस्त हो गए। कभी 30 और 40 फीट की गहराई में मुंगेली को पानी उपलब्ध होता था लेकिन आज 400 फीट की खुदाई में भी पानी का अता पता नहीं होता । नदी के संरक्षण के प्रति उदासीनता का ही यह असर है। विकास के नाम पर यहां विनाश को जिस तरह आमंत्रित किया गया, उसका नतीजा आज पूरा शहर भुगत रहा है। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर जिला प्रशासन ने सड़क के दोनों और लगे 100 वर्ष से भी अधिक पुराने 300 से अधिक अर्जुन के पेड़ों की बलि दे दी और अब तो उसके ठूंठ भी उखाड़ दिए गए। मुंगेली से रायपुर, नवागढ़, कवर्धा, लोरमी और बिलासपुर दिशा के सभी मार्गों में अंधाधुंध पेड़ों की कटाई की गई और उसकी जगह नए पेड़ लगाए भी नहीं गए। यही कारण है कि पास में ही लोरमी क्षेत्र में वन होने के बावजूद यहां की हरियाली लगभग गायब हो चुकी है। हर शाम यहां बादल उमड़ते-घुमड़ते तो हैं लेकिन बिना बरसे ही बादल लौट जाते हैं । पास में ही लोरमी क्षेत्र में लगभग हर दिन वनों की वजह से बारिश होती है लेकिन मुंगेली क्षेत्र वर्षा छाया क्षेत्र बनता जा रहा है । पिछले कुछ सालों में मुंगेली के लोगों ने अच्छी बारिश देखी नहीं और मुंगेली जिला लगातार सूखाग्रस्त घोषित होता रहा। लेकिन योजना कारों की आंख फिर भी नहीं खुली। ना तो आगर नदी को बचाने की कोई गंभीर कोशिश हुई और ना ही वृक्षारोपण के कोई बड़े प्रयास किए गए ।नुमाइशी प्रयास से ना तो परिवर्तन संभव था और ना ही हो सका।

एक समय आगर नदी के उत्थान के नाम पर कई सामाजिक संगठनों और जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ जन प्रतिनिधियों ने भी जलकुंभी हटाने के नाम पर एक अभियान जरूर किया था लेकिन उसमें गंभीरता का नितांत अभाव था। इसी वजह से इसका कोई प्रभाव धरातल पर नजर नहीं आया ।अलबत्ता कुछ तस्वीरें अखबारों में नुमाया हो गई, कई लोगों की बाइट टीवी स्क्रीन पर चलती दिखी, लेकिन आगर की रफ्तार वैसी की वैसी ही रही । इस वर्ष बिलासपुर में अरपा नदी को लेकर गंभीर प्रयास शुरू हो चुके हैं । पिछले दिनों जिला प्रशासन और नगर निगम द्वारा जन सहयोग से श्रमदान किया गया और अरपा से जलकुंभी निकाली गई लेकिन पडोसी मुंगेली जिले ने इससे भी कोई प्रेरणा नहीं ली और यहां वैसे कोई प्रयास नहीं हुए ,जबकि आगर नदी को भी उसी तरह के प्रयास की आवश्यकता है । पेड़ों का अभाव, सुखी नदी, नदी में चेक डैम का ना होना जैसी वजहों से एक तरफ तो बारिश कम हो रही है और वही भूजल स्तर लगातार नीचे गिर रहा है। यही हालात रहे तो अगले कुछ सालों में मुंगेली मानव जीवन के लिए प्रतिकूल बन चुका होगा, लेकिन फिर भी रणनीतिकार और योजनाकारों के माथे पर अब भी बल नजर नहीं आ रहे। मुंगेली की हरियाली और आगर नदी को लेकर अभी भी कोई स्पष्ट नीति योजना कारों के पास नहीं है। ऐसे में लोगों की आखिरी उम्मीद वे खुद ही बन सकते हैं। यहां आम लोगों को ही आगे आकर अपने भविष्य के लिए लड़ाई लड़नी होगी। इस लड़ाई में स्वयंसेवी संगठन और प्रकृति के संरक्षण के लिए समर्पित स्टार ऑफ टुमारो जैसी संस्थाएं भी सहयोगी बन सकती है, लेकिन मूल प्रयास तो नागरिकों को ही करना होगा, क्योंकि जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से की गई उम्मीदों से हमेशा हाथ खाली ही नजर आए हैं। इस बरसात से पहले अगर लोगों ने जन प्रयास से कोई गंभीर समाधान नहीं निकाला तो फिर आने वाला वर्ष इस वर्ष से भी कठिन होंगे। इस साल मुंगेली में भी पानी के लिए अभूतपूर्व संकट उत्पन्न हुआ है। लगभग सभी वार्डों में पानी की किल्लत है। आधे से अधिक बोरवेल फेल हो चुके हैं। नए बोरवेल से पानी मुश्किल से मिल रहा है । ऐसे में केवल अंडर ग्राउंड वाटर रिचार्ज ही एकमात्र विकल्प है। इसके लिए एक तरफ जहां नदी की सफाई और नदी में पानी रोकने की व्यवस्था करनी होगी, वही सभी घरों में अनिवार्य रूप से वाटर हार्वेस्टिंग को लागू कराना होगा। साथ ही मुंगेली के आसपास के तालाबों की भी सफाई कर उस में जलभराव सुनिश्चित करनी होगी। इसके साथ यह भी प्रयास करना होगा कि बरसात का जल व्यर्थ ना बहे । ऐसा नहीं किया गया तो खेती किसानी तो दूर की बात यहां लोगों को आने वाले सालों में पीने को पानी तक नसीब नहीं होगा और यह बात यहां के लोग जितनी जल्दी समझ ले, उनके लिए उतना ही बेहतर होगा । अब जनप्रतिनिधियों की ओर मुंह ताकने से अच्छा है कि अपने और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए वे स्वयं भागीरथी की भूमिका में आ जाये।

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