
पर्दे पर अपनी खलनायकी से लोगों के दिमाग़ में बुराई के प्रति नफ़रत को संजीदा करने वाले एक चरित्र खलनायक के अंतिम समय में कोई भी उनके साथ न था
बिलासपुर प्रवीर भट्टाचार्य
आम ज़िंदगी में हरेक बाहुबली, गुंडे, रॉबिनहुड के पीछे एक न एक शख्स ऐसा जरूर होता है जोकि उसे बराबर सुरक्षा-संरक्षा-भरोसा देता है, जिसे हम अक़्सर ‘राईट हैंड’ या ‘दाहिना हाथ’ कहते है। उसी तरह पर्दे के विलेन के पीछे भी एक शख्स ऐसा जरूर होता है जो उस के दाहिना बाजू के मानिंद होता है और उसके हर सिनेमाई पाप कर्मों में भागीदार होता है, वो अपने बॉस के लिए किसी को भी गोली मारने और स्वयं गोली खाने को तैयार रहता है।
महेश आनंद अस्सी-नब्बे के दशक में ऐसे ही रोल किया करते थे। खलनायक के मुख्य सहकर्मी के तौर पर हम उन्हें शहंशाह, गंगा-जमुना-सरस्वती, मजबूर, थानेदार, बेताज बादशाह, कूली नं 1 और लाल बादशाह आदि फिल्मों में देख सकते है। उस दौरान लोग इनका नाम भले न जानते हो मग़र इनका चेहरा देखते ही पहचान जाते थे कि अरे! ये लंबे शरीर वाला फलां मूवी में था और उन्हें अपनी स्मृति पटल पर अंकित किसी मूवी के किरदार के नाम के अनुसार याद कर लेते है।
मजबूत कद-काठी और दोहरे बदन वाले महेश आनंद उस समय कमोबेश सभी फिल्मों में छोटे से रोल में दिख जाया करते थे। महेश आनंद की ज़िंदगी का दूसरा फेज इक्कीसवीं सदी के आरम्भ में आता है जबकि इन्हें फिल्मों में काम मिलना बंद हो जाता है। ज़िंदगी से बेजार हो जाते है महेश और ख़ुद को शराब के नशे में झोंक देते है। ख़ैर! स्टारडम के बाद की मुफ़ीलसी की अक्सर शराब साथिन हो जाती है।
एक जमाने मे जब महंगी मर्सिडीज के शौकीन स्टार राजेश खन्ना को एंग्री यंग मैन ने उनकी सतत और एकछत्रीय सुपरस्टार की कुर्सी से प्रतिस्थापित किया था तो उनको भी शराब की भीषण लत लग गयी थी, जिसने न सिर्फ़ उनके फ़िल्मी कैरियर को प्रभावित किया बल्कि उसे चौपट ही कर दिया। मेनस्ट्रीम सिनेमा के सुपरस्टार अभिनेता को दूरदर्शन पर आने वाले एक कार्यक्रम में बाप के रोल वाले चरित्र अभिनेता का किरदार तक अदा करना पड़ा था।
ऐसे में एक चरित्र खलनायक कितने दिन तक ही सर्वाइव कर सकता था। हालांकि महेश ने एक लंबे समय तक ज़िंदगी से संघर्ष जारी रखा , लगभग 18 वर्षों तक प्रछन्न बेरोज़गार की भांति वो जीवनयापन करते रहें। अठारह वर्षों बाद इस बरस रिलीज़ हुई गोविंदा की रंगीला राजा में उन्हें छ: मिनट का रोल मिला था। जहाँ पर वो सेट पर भी अक्सर दारू पीकर आ जाते थे। इतना ही नहीं नशे में वो किसी को भी फोन मिला दिया करते थे।
पर्दे पर अपनी खलनायकी से लोगों के दिमाग़ में बुराई के प्रति नफ़रत को संजीदा करने वाले एक चरित्र खलनायक के अंतिम समय में कोई भी उनके साथ न था। अपने वर्सोवा स्थित फ़्लैट में वो दारू के गिलास कर साथ अकेले ही मर गए। दो दिन तक उनकी लाश वहीं पड़ी सड़ती रही। जब दो दिनों तक डोरबेल के बावजूद दरवाजा न खुला तो कल उनका दरवाजा तोड़कर लोग अंदर गए और तब जानकारी हुई की महेश आनंद अब ज़िंदगी की अनवरत उबकाई से हलकान होने के लिए महाप्रयाण कर चुके है।