मल्हार

लोक कला, लोक संस्कृति के सबसे पुराने मंच “मल्हार महोत्सव” के नही होने से क्षेत्रवासियों में मायूसी…उपेक्षा या बजट बन रही वजह

हरिशंकर पांडेय

मल्हार – लोककला, लोक संस्कृति, एकता और सामाजिक एकता की भावना को बलवती बनाने के लिए लोक गीत, लोक संगीत, लोक नृत्य को परिष्कृत तथा आमजन को छत्तीसगढ़ी गीत संगीत से जोड़ने के लिए त्रिदिवसीय लोकोत्सव तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा मल्हार में मल्हार महोत्सव 1986 में प्रारम्भ किया था।

परन्तु कुछ अवरोध व राजनीतिक लोगो की उदासीनता के कारण यह परंपरा कुछ वर्षों से बंद है। परन्तु छत्तीसगढ़ सरकार से स्थानीय लोगो को उम्मीद थी कि महोत्सव की परंपरा को मल्हार में फिर से शुरू कराएंगे।

क्योकि छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने छत्तीसगढ़िया परम्परा,संस्कृति को जागृत करने का काम किया है। पिछले वर्ष 7 जून 2022 को माँ डिडनेश्वरी देवी के 32 वे पुनर्स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव शामिल हुए थे जिसमे उन्होंने नगरवासियों व जनप्रतिनिधियों की मांग पर कहा था कि जल्द ही फिर से भव्य तरीके से बढ़े हुए बजट के साथ मल्हार महोत्सव का आयोजन होगा।

परन्तु 10 माह बीत जाने के बाद भी आयोजन समिति में किसी प्रकार की हलचल दिखाई नही दे रही है। इस बीच बताया जा रहा है पिछले वर्ष ही महोत्सव कराने 5 लाख रुपये की स्वीकृति हो गई थी। पर किसी कारण वश आयोजन नही हो पाया। इस संबंध में महोत्सव समिति के अध्यक्ष अमित पांडेय का कहना है कि पिछले दो कोरोना काल की वजह से महोत्सव नही हो पाया पर इस बार संस्कृति मंत्री से ज्यादा बजट की मांग की गई है उम्मीद है कि इस वित्तीय बजट में राशि स्वीकृत हो जाएगी और जल्द ही भव्य तरीके से आयोजन होगा। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुवात मल्हार से हुई थी तब के अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने मल्हार में “मल्हार महोत्सव” कार्यक्रम की शुरुवात की थी।जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश में हो रही थी। मल्हार के वरिष्ठ कांग्रेस नेता डॉ शंकर प्रसाद चौबे जिनकी सक्रियता से महोत्सव का भव्य कार्यक्रम पातालेश्वर मंदिर प्रांगण में हुआ था।

तब से यह महोत्सव की परंपरा प्रतिवर्ष होने लगा परन्तु पिछले 5 वर्षों से आयोजनकर्ताओ की उदासीनता के चलते नही हो पा रहा जिससे लोक संगीत प्रेमियों और लोक कलाकारों में मायूसी है। महोत्सव के कई वर्षों तक उदघोषक रहे शेषनारायण गुप्ता कहते है कि शुरुआती दौर के मल्हार महोत्सव की छटा ही कुछ और ही थी जिसमे छत्तीसगढ़ के चुनिंदा गायक व कलाकर अपनी प्रस्तुति देते थे जिसको लोग सपरिवार देखने जाते थे वैसे ही होना चाहिए। क्योंकि उस समय के कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ की पारंपरिक झलक दिखती थी जिसमे कलाकर दिल खोलकर प्रस्तुति देते थे। वरिष्ठ नागरिक ओमप्रकाश पांडेय कहते है कि अविभाजित मध्यप्रदेश में खुजराहो के बाद मल्हार में महोत्सव की शुरुवात हुई जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश में होती थी। उन्होंने कहा कि अब पुनः उसी अंदाज में महोत्सव होना चाहिए। यहा महोत्सव में पूरे छत्तीसगढ़ के ख्याति नाम लोक कलाकारों को देखने का मौका मिलता था।

इन कलाकारों ने दी है प्रस्तुति–

मल्हार महोत्सव कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक कलाकार जिनमे दुर्ग के बैतल राम साहू जो लोकगीत, ददरिया सहित अनेक विधाओं में पारंगत थे। इसी तरह “चंदैनी गोंदा” पार्टी के नाम से प्रसिद्ध दाऊ सिंग चन्द्राकर के लोकनाट्य की उस समय बड़ी ख्याति थी। इसके अलावा पंडवानी गायिका तीजनबाई व ऋतु वर्मा ने भी यहां प्रस्तुति दी है। और देवार गीत के लिए रेखा देवार को अब भी लोग याद करते है। साथ ही राजनांदगांव के पीसी लाल यादव, बिलासपुर जिले के प्रसिद्ध लोक गायक शिवकुमार तिवारी, लालजी श्रीवास, अल्का चन्द्राकर, सुरुज बाई खांडे ने भी कार्यक्रम दी है।

इसके अलावा सीमा कौशिक, नीलकमल वैष्णव, लक्ष्मण मस्तूरिहा, बद्री सिंह कटेलिहा, दलीप लहरिया, बालमुकुंद पटेल सहित स्थानीय कलाकारों ने मल्हार महोत्सव में धूम मचाई है। बस्तर के गेड़ी नृत्य, रायगढ़ के कर्मा नृत्य, संगीत सरिता बालको, केदार यादव दुर्ग के नवा बिहान, गंडई पंडरिया का दूध मोंगरा, उस्ताद इस्माइल दददू खान भोपाल का तबला, मिस्टर मोरिस फ्रांसीसी कलाकर लोक गीत, मोर मयारू माटी मस्तूरी, मोर नंगरिहा किसान लोहरसी, पंथी नाच पेंड्री, ने भी छत्तीसगढ़ी संस्कृति को अपने कला के माध्यम से जागृत करने लगे थे इन कलाकारों को एक बार फिर से देखने व सुनने क्षेत्र के लोग आतुर है।

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