
आकाश दत्त मिश्रा
वैसे तो रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का पर्व है, लेकिन इस बार इस पर्व पर देशप्रेम हावी दिख रहा है। और ऐसा हो भी क्यों ना भला क्योंकि इस बार रक्षाबंधन का अद्भुत संजोग स्वतंत्रता पर्व से भी हो रहा है । यही कारण है कि इस बार रक्षाबंधन पर देश प्रेम का रंग चढ़ा नजर आ रहा है। पिछले कुछ सालों में भारतीय पर्वों पर इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों पर चीनी उत्पादों की गहरी पकड़ नजर आ रही थी, लेकिन इस बार बाजार से चीन के बने उत्पाद पूरी तरह गायब है और दुकानों पर भारत में बनी राखियां नजर आ रहे हैं । भाई बहन के असीम प्यार को रेशम की डोरी में पिरो कर अटूट रिश्ते के साक्षी बनने के पर्व रक्षाबंधन के लिए हर बार की तरह इस बार भी मुंगेली में पुराना बस स्टैंड से लेकर सदर बाजार और गोल बाजार के पूरे क्षेत्र में राखियों की दुकाने सजी नजर आने लगी है। बाजार राखियों से सज कर तैयार है और इस सजावट पर देश प्रेम का भी रंग काफी गहरा चढ़ा नजर आ रहा है। हैरान करने वाली बात यह है कि इस बार इन दुकानों में राखियां तो सजी है, लेकिन उनमें चीनी राखियां लगभग गायब है। खास बात यह भी है कि अगर किसी दुकान में चीनी राखी उपलब्ध भी है तो लोग उन्हें खरीदना पसंद नहीं कर रहे।
दरअसल पिछले कुछ समय से देश पर राष्ट्रवाद हावी हो रहा है और राष्ट्रवाद की भावना का ही असर है कि लोग स्वस्फूर्त चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर रहे हैं। भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद हो या फिर अन्य क्षेत्रों में सीमा विवाद। पाकिस्तान और आतंकवाद को चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिए जा रहे समर्थन से भी राष्ट्रवादी आग बबूला है और इसीलिए सोशल मीडिया पर चीनी सामानों के विरोध की बात कही जा रही है । और अब यह बातें सोशल मीडिया तक ही सीमित नहीं रह गई है। व्यवहारिक जिंदगी में भी यह प्रभावी होती नजर आ रही है । मुंगेली में भी यह प्रभाव गहरा दिख रहा है। मुख्य बाजार समेत अन्य स्थानों पर भी लगने वाले राखी दुकानों में दुकानदार खुद बाजार का रुख पहचान कर चीनी उत्पाद नहीं रख रहे हैं। दिवाली पर झालर, होली पर रंग और रक्षाबंधन पर चीनी राखी के बहिष्कार में खुद दुकानदार भी शामिल हो चुके हैं। उन्हें पता है कि आजकल खरीददार चीन की वस्तुएं खरीदने से इंकार करते हैं। यहां तक कि बच्चे भी चीन में बनी राखियों को सिरे से नकार रहे हैं। बाजार में चीनी उत्पादों की घटती मांग की वजह से ही दुकानदार भी बेवजह अपनी पूंजी नहीं फंसाना चाहते और इसलिए उन्होंने भी चीन में बनी राखियो के स्थान पर भारत में बनी राखियों को ही प्राथमिकता दी है। इस बार बाजार देशी राखियो से पटा नजर आ रहा है । पहले स्पंज की बड़ी बड़ी भारी राखियां चलन में हुआ करती थी। लेकिन आजकल रेशम की डोरियो का चलन अधिक है। वहीँ स्टोन वाली राखियां भी खूब पसंद की जा रही है। 50 रु से लेकर 400 तक की स्टोन की राखियां इस बार सर्वाधिक डिमांड में है। इन नग वाली राखियों में सफेद के अलावा अन्य रंग के भी स्टोन जड़े है।जिनके खूबसूरत रंग और डिजाइन खूब पसंद किए जा रहे हैं । खासकर नग वाले ब्रेसलेट स्टाइल की राखियां सर्वाधिक मांग में है । शादी के बाद पहली बार अपने भाई को राखी बांधने वाली बहने ब्रेसलेट वाली राखियों को खूब पसंद कर रही है। जिनके भाई दूसरे शहरों में अपनी नौकरी या फिर पढ़ाई आदि के लिए रह रहे हैं उनके लिए भी बहने खूबसूरत और महंगी राखियां खरीदती देखी जा रही है ।
वैसे तो बाजार में राखियों की कीमत 2 रु से शुरू हो रही है , जो 5000 रू तक भी पहुंच जाती है। आम तौर पर 10 रु से लेकर 50 रुपये तक की राखियों की अधिक मांग है । मोतियों में पिरोये धागे की राखियां भी बाजार में उपलब्ध है। तो वही लकड़ी के गुटके और रुद्राक्ष की राखियां भी बहने पसंद कर रही है। इन सबसे अलग बच्चों को कार्टून वाली राखियां सर्वाधिक लुभा रही है, जिनमें छोटा भीम से लेकर डोरेमोन और अन्य कार्टून कैरेक्टर मौजूद है। कुछेक दुकानों पर चीनी राखियां भी मौजूद है लेकिन इस बार इन्हें कोई लेना पसंद नहीं कर रहा। दुकानदार भी कह रहे हैं कि उन्होंने पिछले साल जो चीन की राखियां लाई थी वह ही नहीं बिकी और इस बार भी चीन के माल की बिल्कुल डिमांड नहीं है। बाजार का मूड समझकर ही उन्होंने इस बार चीन की बनी राखियां बिल्कुल नहीं खरीदी ,क्योंकि देश भर में कहीं भी चीन की राखियों की बिक्री ही नहीं हो रही। ग्राहकों के मूड को सबसे बेहतर बाजार समझता है। कुछ साल पहले जिस बाजार पर चीन की बनी राखियां पूरी तरह कब्जा जमा चुकी थी, आज राष्ट्रवाद ने उन्हीं राखियों को कहीं दफन कर दिया है। बड़े बुजुर्गों से लेकर छोटे-छोटे बच्चों में भी यही राष्ट्रवाद और देश प्रेम की भावना भर चुकी है और वे समझ चुके हैं कि जो देश हर कदम पर उनके देश को नुकसान पहुंचाता हो, ऐसे देश के उत्पाद खरीद कर उनकी आर्थिक व्यवस्था मजबूत करना देशद्रोह की श्रेणी में जाता है और इसी भावना का असर बाजार पर भी दिखता है। बच्चे इस बार भी हर बार की तरह डोरेमोन, पोकेमोन ,एंग्री बर्ड, छोटा भीम, मोटू पतलू जैसे कार्टून कैरेक्टर्स वाली राखियों को खरीद रहे हैं ,लेकिन खास बात यह है कि वे चीन में बनी राखियों को नहीं ले रहे। केवल देसी राखियों को ही पसंद किया जा रहा है। राखी खरीदने आई एक बहन ने कहा कि उन्होंने पिछले साल गलती से चीनी राखी खरीदी थी, लेकिन इस बार वह या गलती नहीं करेंगी, इसलिए देश में ही बनी इस्टोन, जरी वाली राखी खरीदना को प्राथमिकता दी जा रही है। रक्षाबंधन को अब वैसे तो गिनती के दिन ही शेष रह गए हैं लेकिन बाजार में खास उठाव् नहीं है। पिछले कुछ सालों में बाजार का ट्रेंड बदला है और लोग पर्व के एक दिन पहले ही खरीददारी करना पसंद करते हैं इसलिए उम्मीद की जा रही है कि रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर बाजार में बूम आएगा और लोग बड़ी संख्या में खरीदारी करने निकलेंगे । फिलहाल जो छुटपुट खरीदारी हो रही है वह उन्हीं बहनों द्वारा की जा रही है जिन्हें अन्य शहरों में मौजूद भाइयों को डाक के माध्यम से राखियां भेजनी है । राखी के कारोबार में जूटे खुदरा व्यापारी उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में राखी बाजार में बिक्री बढ़ेगी । और इस बार उन्हें घाटा नहीं सहना पड़ेगा। दिल्ली से लेकर मुंगेली तक हर तरफ देश प्रेम का रंग दिख रहा है । वैसे भी इस बार स्वतंत्रता दिवस के ही दिन सावन पूर्णिमा है । यानी 15 अगस्त को रक्षाबंधन भी मनाया जाएगा। इसलिए उन राखियों की भी खूब डिमांड है जिनमें राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के प्रतीक या अन्य राष्ट्रीय प्रतीक मौजूद है। यानी कुल मिलाकर इस बार स्वतंत्रता दिवस और भाई-बहन के स्नेह का पर्व रक्षाबंधन को सम्मिलित रूप से मनाया जाएगा इसलिए भाई बहन का प्रेम और देश प्रेम एकाकार होता भी दिखेगा फिलहाल तो बाजार में यही रंग हावी है भाई बहन का निश्चिंत में है निश्छल स्नेह तो है ही साथी देश प्रेम की भावना भी हिलोरे मार रही है