छत्तीसगढ़बिलासपुर

बच्चे ने निगल लिया हेयर पिन, एक महीने तक किसी को पता भी नहीं चला, अपोलो ने सफलतापूर्वक ऑपरेशन कर बचाई 18 माह के बच्चे की जान

शनिवार को पत्रकारों के साथ चर्चा करते हुए अपोलो के सी ई ओ डॉक्टर सजल सेन ने अपनी उपलब्धि मीडिया से साझा की

बिलासपुर प्रवीर भट्टाचार्य

बच्चे तो बच्चे ही होते हैं। उनमें हर चीज को जानने समझने की उत्सुकता होती है और चीजों को समझने के लिए वे उसे मुंह में डाल लेते हैं। वैसे मेडिकल टर्म्स में इसे बायका कहते हैं। बच्चों में कई खनिज तत्व जैसे आयरन, कैल्शियम, जिंक की कमी होने पर भी बच्चे इस तरह की हरकत करते हैं, लेकिन कभी-कभी यही हरकत बच्चों के लिए जानलेवा बन सकती है। ऐसा ही कुछ हुआ बलौदा क्षेत्र के गांव सलोनीकला निवासी 18 महीने के आशीष धृत लहरे के साथ। नन्हे आशीष के पिता दयाल धृतलहरे अब इस दुनिया में नहीं है। मां चंद्रिका बाई अकेली बच्चे की देखभाल करती है। इसी बीच पता नहीं कब बच्चे ने एक हेयर पिन निगल लिया। इसके बाद अक्सर आशीष को बुखार रहने लगा और वह हमेशा खांसता रहता। परिजनों ने समझा कि बच्चे को मामूली खांसी और बुखार है।

स्थानीय डॉक्टर भी इसे पकड़ नहीं पाए। वह तो पेंड्रा में जब आशीष की छाती का एक्सरे निकाला गया तो पता चला कि उसके बाएं फेफड़े के निचले हिस्से में एक हेयर पिन अटका पड़ा है।इस जटिल समस्या के बाद सबने आशीष के परिजनों को सलाह दी कि वे बिलासपुर जाए, वही आशीष का इलाज मुमकिन है। 8 अप्रैल को आशीष के परिजन आशीष को लेकर बिलासपुर अपोलो पहुंचे। जाँच के दौरान एक्स रे में साफ़ दिख रहा था कि आशीष के एक फेफड़े में कोई फॉरेन पार्टिकल अटका हुआ है, लेकिन पूरी तसल्ली के लिए उसका सीटी स्कैन किया गया। जिसके बाद पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि उसके बाएं फेफड़े के निचले हिस्से में एक हेयर पिन अटका हुआ है,जिसका नुकीला हिस्सा ऊपर की ओर था जिसे निकालने की कोशिश में घाव बनने की आशंका थी। वहीं करीब 1 महीने तक यह पिन आशीष आशीष के फेफड़े में रहने की वजह से फेफड़े में संक्रमण फ़ैलचुका था और आसपास भी गहरा घाव बन चुका था। लेकिन एक फेफड़ा सही सलामत होने की वजह से नन्ना आशीष सही तरीके से सांस ले पा रहा था ।लेकिन ऐसी स्थिति उसके लिए कभी भी जानलेवा बन सकती थी। जिसे देखते हुए बिलासपुर अपोलो ने एक टीम बनाया। जिसमें ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर पी पी मिश्रा, एनेस्थीसिया देने वाली डॉक्टर रसिका कनस्कर, डॉ विनीता और पीडियाट्रिक डॉक्टर इंदिरा मिश्रा इस टीम का हिस्सा बनाये गए। इनके लिए भी यह ऑपरेशन बेहद जटिल था, क्योंकि छोटे बच्चे को ऑक्सीजन देना भी मुश्किल भरा काम था। वही बेहोशी के लिए एनएसथीसिया का सटीक निर्धारण भी चुनौती भरा था। इसके लिए कुछ विशेष उपकरणों की भी आवश्यकता थी। लेकिन आशीष का सौभाग्य था कि बिलासपुर अपोलो में टेलीस्कोपिक बाय स्कोप, सीआर इंस्ट्रूमेंट जैसे कुछ बेहद अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध थे, जिनकी मदद से मॉनिटर पर देखते हुए करीब ढाई घंटे चले ऑपरेशन के बाद हेयर पिन को सफलतापूर्वक आशीष के फेफड़े से निकाल दिया गया।

इसके बाद आशीष को सामान्य होने में करीब 4 दिन का वक्त लगा। शनिवार को आशीष के परिजन नन्हे आशीष को लेकर जांच के लिए बिलासपुर अपोलो पहुंचे थे। जांच के बाद स्पष्ट हुआ कि अब आशीष पूरी तरह स्वस्थ है और खतरे से बाहर भी। इस उम्र के बच्चे अक्सर ऐसी गलतियां कर बैठते हैं ।चना, मूंगफली, मटर,सिक्के,छर्रे, कील के साथ आसपास जो कुछ भी मिले वे उसे मुंह में डाल लेते हैं। कई मर्तबा यह चीजें सांस की नली में फंस जाती है और यह मौत की वजह भी बनती है। डॉक्टर इंदिरा मिश्रा कहती है, इसलिए इस उम्र के बच्चों के परिजनों को विशेष एहतियात बरतने की जरूरत है। ताकि उनके बच्चे असावधानी वश ऐसा कुछ ना कर बैठे ।आशीष का भाग्य अच्छा था कि एक खतरनाक नुकीला हेयर पिन निगल लेने के बावजूद उसकी जान बच गई। सही समय पर वह अपोलो पहुंच गया जहां कुशल चिकित्सकों की टीम ने जोखिम लेते हुए नया प्रयोग किया और यह प्रयोग सफल भी रहा। इससे बिलासपुर अपोलो बेहद उत्साहित है। शनिवार को पत्रकारों के साथ चर्चा करते हुए अपोलो के सी ई ओ डॉक्टर सजल सेन ने अपनी उपलब्धि मीडिया से साझा की।

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