
उदय सिंह
मस्तूरी – ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य के भरोसे ही लोग रहते है, जिन्हें भरोसा होता है कि स्वास्थ्य केंद्र पहुँचने से उन्हें उचित स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है, लेकिन जैसे ही वहाँ पहुँचना होता है तो पता चलता है कि कोई भी डॉक्टर नही है तब उन्हें मजबूर होकर शहर की ओर रुख करना पड़ता है,
जो सरकारी अस्पताल की लचर व्यवस्था का सामना करते है या निजी अस्पताल में उपचार कराकर कमर तोड़ने वाली आर्थिक समस्या से जूझते है। ऐसा ही कुछ हालात मस्तूरी विकासखंड के दर्रीघाट और लोहर्सी स्वास्थ्य केंद्र का है, जहाँ डॉक्टर सहित मेडिकल स्टॉफ के सेटअप को तैनात तो किया गया है, लेकिन एक दो कर्मचारियों को छोड़कर न तो डॉक्टर उपलब्ध होते है और न ही अन्य स्टॉफ। ऐसे में जब खासकर गर्भवती महिलाओं को जांच या उपचार के लिए स्वास्थ्य केंद्र पहुँचना होता है तो उन्हें मस्तूरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेज दिया जाता है या और कही जिससे उन्हें उस स्वास्थ्य केंद्र की सुविधाओं का लाभ नही मिल पाता।
जब इस शिकायत पर दोनों ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का जायजा लिया गया तो पता चला कि दर्रीघाट में तैनात एक डॉक्टर को ट्रेनिंग में भेज दिया गया है वही दूसरी महिला डॉक्टर सहित लोहर्सी में तैनात महिला डॉक्टर को मस्तूरी स्वास्थ्य केंद्र में अटैच कर दिया गया है। अब ऐसे में इन दोनों स्वास्थ्य केंद्रों के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो रहे है।
केंद्र और राज्य सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कई योजनाएं और करोड़ो रूपये खर्च करती है लेकिन क्या यह वास्तविक रूप से जरूरतमंदों को मिल पाती है यह बड़ा सवाल है?