
जुगनू तंबोली
रतनपुर – सुबह का समय, आसमान में हल्की सुनहरी धूप, हवा में तिरंगे की खुशबू और ढोल-नगाड़ों की थाप गूंज। कोटा ब्लॉक के वनांचल क्षेत्र के गांव खसरिया में आज का दिन किसी त्योहार से कम नहीं रहा। तिरंगा लिए छोटे-छोटे कदम जब गलियों में बढ़ते हैं, तो हर घर का आंगन मंदिर बन जाता है। महिलाएं थाल में दीप, चावल और फूल लिए खड़ी हैं, बुजुर्ग आशीर्वाद के लिए आगे बढ़ते हैं, और नन्हें देशभक्तों के पैर धोकर, माथे पर चंदन-टीका लगाकर उनका स्वागत करते हैं। यह नजारा 15 अगस्त और 26 जनवरी को यहां का वर्षों पुराना सच है। चपोरा संकुल अंतर्गत खसरियापारा की प्राथमिक शाला से निकली बच्चों की तिरंगा रैली आज भी उसी आत्मीयता और श्रद्धा के साथ पूरे गांव में घूमी, जैसे दशकों पहले होती थी।
स्कूल की शिक्षिका ज्योति थवाईत ने भावुक होकर बताया, “हमारे यहां राष्ट्रीय पर्व के दिन घर-घर से लोग निकलकर बच्चों का स्वागत करते हैं। यह केवल सम्मान नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों में देशभक्ति का बीज बोने का तरीका है।”पूरे गांव में रैली के स्वागत का यह क्रम किसी एक घर पर नहीं रुकता। हर दरवाजे पर वही श्रद्धा, वही मुस्कान, वही तिरंगे के लिए उमंग। महिलाएं गीत गाती हैं, बुजुर्ग आशीर्वाद देते हैं और बच्चे, जिनके पैरों पर जल चढ़ाया जाता है, गर्व से आगे बढ़ते जाते हैं।
खसरिया ही नहीं, बल्कि आसपास के कई गांवों में भी यह परंपरा आज भी जीवित है। आधुनिकता की तेज रफ्तार में भी यह सांस्कृतिक धरोहर गांवों के दिल में गहराई तक बसी हुई है। यहां राष्ट्रीय पर्व सिर्फ एक सरकारी अवकाश नहीं, बल्कि एक सामूहिक उत्सव है, जिसमें हर कोई शामिल होता है।गांव के बुजुर्ग रामलाल मानिकपुरी कहते हैं, “हमने अपने बचपन में भी यही देखा था, और आज हमारे पोते उसी सम्मान के साथ तिरंगा लेकर निकलते हैं। यह परंपरा हमारी पहचान है।”
गांव की धड़कनों में गूंजता है देशप्रेम :- प्रधान पाठक
आज जब दुनिया में देशभक्ति कई बार केवल भाषणों में सिमट जाती है, खसरियापारा और उसके आसपास के गांव यह साबित करते हैं कि सच्चा देशप्रेम जुलूसों और नारों से आगे, लोगों के दिल और कर्म में बसा होता है। यहां हर राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगा सिर्फ लहरता नहीं, बल्कि पूरे गांव की धड़कनों में गूंजता है।