
रमेश राजपूत
महासमुंद – धान खरीदी व्यवस्था की कमजोरियों ने एक बार फिर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। बागबाहरा थाना क्षेत्र के सेनभाठा गांव में शनिवार सुबह 65 वर्षीय किसान मनबोध गांडा द्वारा आत्महत्या का प्रयास इसी बदहाल व्यवस्था की एक और कड़ी मानी जा रही है। धान बेचने के लिए टोकन न मिलने से परेशान मनबोध ने खेत के पास ब्लेड से अपने गले पर वार कर लिया। लहूलुहान अवस्था में पड़े किसान को ग्रामीणों और 112 टीम की मदद से पहले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बागबाहरा, फिर महासमुंद मेडिकल कॉलेज और अंततः गंभीर हालत के कारण रायपुर रेफर किया गया।

परिजनों का कहना है कि मनबोध तीन दिनों से लगातार चॉइस सेंटर के चक्कर काट रहे थे, लेकिन टोकन न मिलने से अत्यधिक तनाव में थे। उनका परिवार 11 सदस्यों वाला है और कृषि भूमि भी महज एक एकड़ 40 डिसमिल। बेटे के अनुसार, पिताजी बहुत परेशान थे, बोल भी नहीं पा रहे थे। सुबह गाय चराने निकले और खेत में जाकर गला काट लिया। घटना के बाद प्रशासन भी सक्रिय हुआ। जिसमें बताया गया कि टोकन चॉइस सेंटर, किसान ऐप या समिति तीनों माध्यमों से कट सकता है, लेकिन किसान सोसायटी में टोकन कटवाने पहुंचा ही नहीं था। चॉइस सेंटर संचालक ने पुष्टि की कि वह सुबह उनके यहां आया था, जबकि शनिवार को टोकन जारी नहीं किए जाते।

यह भी संभावना जताई गई कि मोबाइल ऐप की लिमिट पूरी होने से टोकन नहीं बन पाया होगा। लेकिन सवाल यह है कि यदि टोकन जारी करने के इतने विकल्प मौजूद हैं, तो किसान तीन दिनों तक भटकता क्यों रहा? क्या व्यवस्था इतनी जटिल है कि एक वृद्ध किसान उसकी परतों को समझ ही न सके? ग्रामीणों में इस बात को लेकर भारी नाराज़गी है कि धान खरीद प्रक्रिया के डिजिटल और केंद्रित सिस्टम ने जमीनी स्तर पर किसानों को और उलझा दिया है। सेनभाठा की यह घटना प्रशासनिक संवेदनशीलता, ग्रामीण जागरूकता और धान खरीदी तंत्र की कार्यकुशलता तीनों पर गंभीर प्रश्न छोड़ जाती है।