सत्याग्रह डेस्क

भाजपा सरकार की महत्वाकांक्षी अरपा विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण यानी अरपा साडा पर अब स्थाई ग्रहण लग चुका है। नई सरकार ने आते ही हलाकि अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। अब अरपा विकास समिति की बैठक में अरपा साडा के विघटन के प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय ले लिया गया है इसे जहां भारतीय जनता पार्टी विरोध की राजनीति बता रही है वहीं कांग्रेस का कहना है कि ऐसा अरपा साडा किस काम का जिसके विकास के नाम पर एक ईंट भी ना रखी गई हो। 9 साल के दौरान 5 करोड़ रुपए फूंक दिए गए लेकिन जमीन पर कुछ भी नहीं हुआ। बिलासपुर की जीवनदायिनी अरपा नदी को टेम्स नदी की तरह संवारने की योजना के तहत बिलासपुर अरपा साडा का गठन किया गया था। साल 2014 में अरपा नदी के दोनों किनारों की 200- 200 मीटर की जमीन की खरीदी बिक्री पर भी इसी वजह से रोक लगा दी गई थी और प्रोजेक्ट की जद में कुल 22 गांवों को शामिल किया गया था ।

इस प्रोजेक्ट की लंबाई 27 किलोमीटर थी। प्रोजेक्ट के प्रथम फेस में पीपीपी मॉडल के तहत लोफंदी से दोमुहानी तक 15 गांव को शामिल करने की योजना थी। बताया जा रहा था कि टेम्स नदी की तरह अरपा को विकसित किया जाएगा और अरपा के दोनों किनारो पर पक्की सड़क के साथ शॉपिंग कॉन्प्लेक्स और अलग-अलग निर्माण होंगे। अरपा साडा का गठन साल 2010 में किया गया था। इसके तहत नदी के दोनों किनारे पर रिटेनिंग वॉल, सड़क, गार्डन, व्यावसायिक काम्प्लेक्स, नदी के बीच में एनीकट के निर्माण की योजना थी। कुल मिलाकर अट्ठारह सौ पचास करोड़ के इस प्रोजेक्ट में अब तक चार करोड़ पचास लाख रूपय खर्च किए जा चुके हैं। जिसमें से चार करोड़ के आसपास कंसलटेंट और मास्टर प्लान बनाने में खर्च हो चुके हैं जबकि डीपीआर की राशि 8 करोड़ 20 लाख रुपए बची हुई है। कांग्रेस सरकार का कहना है कि अब तक इसका डीपीआर भी तैयार नहीं हुआ है । सिंगल टेंडर के अलावा कोई कंसलटेंट भी सामने नहीं आया लेकिन इसकी जद में आने वाली जमीन पर प्रतिबंध प्रतिबंध लग जाने से हजारों लोग प्रभावित जरूर हुए। लिहाजा अब अरपा साडा को भंग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अरपा विकास समिति की बैठक में इस पर अनुमोदन कर दिया गया है । अब यह प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। हालांकि सत्ता परिवर्तन के साथ ही प्रोजेक्ट के बंद होने की संभावना बनने लगी थी ।

बिलासपुर के महापौर किशोर राय इसे बदले की राजनीति बता रहे हैं और उनका दावा है कि इसका डीपीआर बन चुका है। करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं। लिहाजा इसे सिर्फ राजनीतिक चश्मे से देखने की वजह से बंद नहीं करना चाहिए ।अगर कांग्रेस सरकार इसमें आंशिक परिवर्तन करना चाहती है तो वह अवश्य करें लेकिन इस बहुप्रतीक्षित और महत्वाकांक्षी परियोजना को समाप्त करना बिलासपुर की जनता के साथ छलावा होगा।

बिलासपुर की जीवनदायिनी अरपा नदी अब मृत प्राय है ।अरपा को बचाने की हर स्तर पर कोशिश की जा रही है लेकिन अरपा साडा के नाम पर ऐसी कोई कोशिश नहीं हुई जिससे अरपा नदी विकसित हो सके। अरपा को अगर अरपा ही रहने दिया जाता तो बेहतर होता। उसे टेम्स बनाने की कोशिश में करोड़ों रुपए फूंक दिए गए और हासिल कुछ भी नहीं हुआ । अब यह मांग भी उठ रही है कि जब इस प्रोजेक्ट के नाम पर एक ईट तक नहीं रखा गया तो फिर किस बात पर करीब 5 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। इसलिए दोषियों से यह रकम वसूली की भी वकालत हो रही है। अरपा साडा के गठन के 9 साल बाद इस का यूँ विघटन हो जाने से बिलासपुर को हासिल कुछ भी नहीं हुआ शासन की मंशा के अनुरूप अब अरपा साडा के विघटन का प्रस्ताव लिया जा चुका है, जिसके अनुमोदन के लिए इसे शासन को भेजा जा रहा है। इसके बाद अरपा को लेकर नयी सरकार क्या योजना बनाती है, यह देखने वाली बात होगी। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल कहते हैं कि उन्होंने बिलासपुर की भावी पीढ़ी को ध्यान में रखकर अरपा प्रोजेक्ट पर काम किया था लेकिन नयी सरकार ने इसे आगे बढ़ाने की जगह इस पर पूरी तरह अड़ंगा लगा दिया। वे यह चेतावनी भी दे रहे हैं कि इसका खामियाजा पूरे बिलासपुर को भुगतना पड़ेगा