स्वास्थ्य

जेड सुरक्षा में चिकित्सा

सतविंदर सिंह अरोड़ा

जब यह विषय चुना तो समझ नहीं आया की शुरुआत कहाँ से करूँ. खुद के भी अच्छे बुरे अर्थात हर तरह के अनुभव हैं चिकित्सकों से साथ के. किन्तु जब विश्लेष्ण किया तो समझ आया की हर क्षेत्र में अच्छे या बुरे व्यक्ति होते हैं. बुरे से आशय यह की जिस कार्य हेतु उन्होंने स्वयं को चुना है तथा अपनी आजीविका का साधन बनाया है उस कार्य को कर्तव्यनिष्ठा से कार्यान्वित न करना व् उसमें कदाचार करना. किन्तु इससे उस कार्यक्षेत्र के सभी व्यक्ति भ्रष्ट अथवा सामान्य शब्दों में कहें तो बुरे नहीं हो जाते.

एक चिकित्सालय में मैंने देखा की एक धनाड्य व्यक्ति पैसों का रोना रोते हुए अपने बच्चे के इलाज हेतु प्रार्थना की. वह चिकित्सक अत्यंत विनम्र हैं और उन्होंने उनसे रुपयों का प्रबंध करने को कहा. लेकिन उक्त व्यक्ति ने बैंक बंद होने का हवाला दिया और कहा की बैंक खुलते ही वह आवश्यक रकम चुका देगा. उसके बच्चे का इलाज सफलतापूर्वक किया गया तथा इस हेतु बाहर से विशेषज्ञ चिकित्सक को भी बुलाना पड़ा जो उन्होंने किया. इस प्रक्रिया में करीब डेढ़ लाख रूपए का खर्चा आया जो की उस व्यक्ति को पहले ही बता दिया गया था. किन्तु बैंक खुलने के बाद भी उस व्यक्ति ने न तो शुल्क जमा की और न ही ऐसी कोई इच्छा जताई.

अब वह अपने बच्चे को डिस्चार्ज करने की बात करने लगा. शुल्क की मांग करने पर मीडिया, पुलिस, नेता, तोड़फोड़ आदि की धमकी देने लगा. उसके हंगामे से चिकित्सालय का माहोल ख़राब होने लगा. 80 वर्षीय चिकित्सक ने अपने हिस्से से उक्त रकम की भरपाई की और उस व्यक्ति से पीछा छुड़ाया. यहाँ सवाल यह उठा की चिकित्सकों की छवि क्या इतनी ख़राब हो गई है की यदि कोई चिकित्सकों के खिलाफ उत्पात मचा रहा है तो चिकित्सक के सही होने के बावजूद उसके साथ कोई खड़ा नहीं होता? आज चिकित्सालय में शुल्क माफ़ी हेतु कई नेता, पत्रकार अथवा अन्य प्रभावशाली लोग आकर हंगामा करते हैं अथवा बात करते हैं लेकिन कोई भी व्यक्ति किसी चिकित्सालय के बकाया वसूली हेतु खड़ा क्यों नहीं होता? क्यों नहीं ऐसे व्यक्ति के घर जा कर उससे बात करता और चिकित्सालय के पैसे वसूलने में मदद करता? आज संकट की घडी है और ऐसे मूढमति लोगों के कारण ही यह संकट आया है. अब एक चिकित्सक किसी का इलाज करने में डरेगा. फीस पहले जमा करवाएगा. या सीधे शासकीय चिकित्सालय में भेज देगा. और ऐसा करना भी चाहिए. हर व्यवसायी अपनी आय को पहले देखता है और यह सुनिश्चित करता है की वह अपने माल का मूल्य प्राप्त करेगा. तो एक चिकित्सालय प्रबंधन का ऐसा सोचना बिलकुल भी गलत नहीं है. करोड़ों रूपए का निवेश एक सर्वसुविधायुक्त चिकित्सालय में होता है फिर कार्यरत कर्मचारियों का वेतन, बिजली का भुगतान आदि का व्यय पूरा करने का एकमात्र साधन ही है मरीजों से प्राप्त शुल्क. फिर चिकित्सक बनने में भी अथाह उर्जा व् धन का निवेश होता है. अब ऐसे में यदि चिकित्सकों पर आक्रमण होंगे, चिकित्सालय की संपत्ति को नुक्सान पहुंचेगा तो आने वाले समय में अपने नाम के आगे से डॉक्टर शब्द हटाना ही उचित लगेगा चिकित्सकों को. या चेहरा देखकर ही इलाज होगा. ऐसे समय में जब शासकीय चिकित्सा तंत्र बेहाल है और उसका कोई माईबाप नहीं हैं तो एकमात्र आपातकालीन और आशान्वित स्थान निजी क्षेत्र के चिकित्सालय ही बचते हैं. ज़रा सोचिये की कौन साफ़ करेगा आपका घाव, और कौन बताएगा की उस घाव को सूखने या ठीक होने हेतु किस दावा का सेवन करना है. आपके बच्चे को ज़रा सा बुखार हो तो किसके पास जायेंगे उसे लेकर. किसी मीडियाकर्मी के पास, किसी नेता के पास या किसी बड़े गुंडे के पास? थोडा तो कृतज्ञ बनने की आवश्यकता हैं हमें. वैसे तो कृतघ्नता हमारे भीतर घुली हुई है लेकिन एक दिन यही कृतघ्नता हमें ही खा जाएगी ठीक वैसे ही जैसे भस्मासुर वर प्राप्ति के पश्चात् कृतघ्न हो महादेव के ही पीछे पड़ा और उसे उसकी कीमत अपनी ही जान से चुकानी पड़ी.

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