बिलासपुरस्वास्थ्य

कैंसर से जंग जीत चुकी योद्धाओं ने बचा ली 18 महीने की बच्ची की जान, देवदूत बनकर अपोलो ने की मदद

प्रवीर भट्टाचार्य

आमतौर पर अपोलो अस्पताल की छवि फाइव स्टार हॉस्पिटल की है और आम धारणा है कि यहां सभी सुविधाओं के लिए मोटी रकम चुकाने की जरूरत पड़ती है। आमतौर पर अपोलो अस्पताल का मानवीय पक्ष दिखता नहीं, लेकिन एक बार फिर बिलासपुर अपोलो ने अपना यह उजला पक्ष न सिर्फ दिखाया, बल्कि अपनी कोशिशों से डेढ़ साल की बच्ची की जान बचाने में भी कामयाबी पायी। इस मामले में सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि कैंसर पीड़ित इस बच्ची की मदद के लिए जो तीन महिलाएं आगे आई, वो खुद कैंसर से जंग लड़कर उसे परास्त कर चुकी है ।

मुंगेली क्षेत्र के एक गांव में रहने वाले दिलबाग साहू की इकलौती लाडली बेटी यामिनी को एक दिन नहलाने के दौरान दिलबाग को उसके पेट के पास एक बड़ा सा गांठ महसूस हुआ। जिसे उन्होंने स्थानीय चिकित्सकों को दिखाया। सीटी स्कैन करने के बाद पता चला कि बच्ची की किडनी के ऊपर एक बड़ा सा गांठ बन चुका है। जिसके बाद चिकित्सकों ने उन्हें बड़े शहर में दिखाने की बात कही। जब बिलासपुर में कुछ निजी अस्पतालों में यामिनी की जांच कराई गई तो पता चला कि यामिनी को कैंसर है और सभी अस्पतालों ने बच्ची के बचने की संभावना से इनकार कर दिया। कुछ लोगों की सलाह से दिलबाग साहू अपनी बेटी को लेकर रायपुर भी गए। वहां भी निजी अस्पतालों ने या तो इलाज करने से साफ मना कर दिया या फिर इलाज के लिए सात आठ लाख रुपए के भारी-भरकम खर्च होने की बात कही। साथ ही कहा कि इसके बाद भी बच्ची के बचने की कोई उम्मीद नहीं है। थक हार कर दिलबाग अपनी बेटी को लेकर घर लौट आए। इसी दौरान उन्हें पता चला कि गनियारी के जन स्वास्थ्य अस्पताल में कैंसर का इलाज होता है । उन्हें यहां उम्मीद की एक किरण नजर आई। गनियारी के अस्पताल में जब यामिनी की जांच हुई तो पता चला कि यामिनी को न्यूरोब्लास्टोमा नाम का कैंसर है, जो उसकी दाहिनी किडनी में भी प्रवेश कर चुका है और लीवर से चिपका हुआ है। गनियारी के चिकित्सकों ने पहले तो कीमोथेरेपी से ट्यूमर को छोटा किया और फिर एक सर्जरी कर उसको बाहर निकाला ,लेकिन फिर भी ट्यूमर का काफी बड़ा हिस्सा बच्ची के पेट में रह गया ।

बच्ची की जान बचाने चिकित्सकों ने ऑपरेशन कर बच्ची की एक कैंसर प्रभावित किडनी निकाल दी, लेकिन फिर भी दोबारा कैंसर की संभावना बनी रही। ऐसे में गनियारी के चिकित्सकों ने दिलबाग साहू को सलाह दी कि रेडियोथैरेपी से बच्ची का इलाज संभव है । लेकिन ऐसा सिर्फ अपोलो कैंसर हॉस्पिटल में ही संभव था। इसलिए उन्होंने अपोलो की डॉक्टर प्रियंका सिंह से मिलने की सलाह दी। जब दिलबाग़ अपनी बेटी यामिनी को लेकर अपोलो कैंसर अस्पताल पहुंचे और प्रियंका सिंह से मुलाकात की तो उन्होंने कहा कि यामिनी रेडियोथैरेपी से पूरी तरह स्वस्थ हो सकती है, लेकिन साथ ही यह भी बताया कि बच्ची के इलाज पर करीब 3 लाख रुपये का खर्च हो सकता है। बच्ची के बचने की आशा जगते ही पिता के चेहरे पर चमक तो आ गयी लेकिन दो से 3 लाख रुपए जुटाना उनके बस की बात नहीं थी। एक मजबूर पिता के चेहरे से ही संवेदनशील डॉ प्रियंका सिंह ने उनकी व्यथा समझ ली और उन्हें पूरी मदद का आश्वासन दिया। एक तरफ तो उन्होंने, अपोलो प्रबंधन से बात कर यामिनी के इलाज के लिए तमाम रियायतें मांगी ।

वही अपोलो अस्पताल में ही कैंसर का सफल इलाज कराकर स्वस्थ जीवन जी रही कुछ कैंसर सरवाइवर से भी मुलाकात की और उन्हें यामिनी की कहानी सुनाई। कैंसर से जंग जीत चुकी बहादुर महिलाओं ने मानवता के उच्च आदर्शो का परिचय देते हुए एक जरूरतमंद बच्चों की मदद का निर्णय लिया ।अज्ञेय नगर की रहने वाली आराधना त्रिपाठी, दयालबंद आदर्श कॉलोनी की विनी सलूजा और रिसदा की बबीता सिंह ने यामिनी की मदद की ठानी और स्वयं के प्रयास और कुछ दानदाताओं की मदद से करीब 45 हज़ार रुपये इकट्ठा कर लिए । दिलबाग साहू के लिए यह बड़ी मदद थी। वही उनकी शुरू से मदद करने वाले व गनियारी अस्पताल के डॉक्टरों ने भी ₹ उन्हें 10,000 रुपये की आर्थिक मदद प्रदान की। इससे यामिनी का इलाज काफी आसान हो गया ।हालांकि इस इलाज में ढाई से तीन लाख रुपये लगने थे और दानदाता महिलाओं से केवल 50-60 हज़ार रुपये ही इकट्ठा हुआ था। यानी दो से ढाई लाख रुपए का बंदोबस्त करना अभी भी बाकी था। जिसे अपोलो के सीईओ डॉ सजल सेन ने इंसानियत का तकाजा दिखाते हुए माफ किया और संपूर्ण इलाज में केवल मशीनों की लागत लेने का ही वादा किया।इतना ही नहीं दवाई और अन्य खर्च भी खुद उठाया।

यामिनी की उम्र कम होने की वजह से इलाज के दौरान उसे स्थिर रखना भी आसान नहीं था । ऐसे में एनेस्थीसिया विभाग की डॉ परिणीता मददगार बनकर सामने आई और उन्होंने एनेस्थीसिया देकर बच्ची को इलाज के दौरान मदद की। इतना ही नहीं इलाज के दौरान आखिरी सप्ताह में जब यामिनी को बुखार हो गया तो शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुशील कुमार ने भी बच्ची का निशुल्क इलाज किया। किसी भी चिकित्सक ने एक रुपए की फीस नहीं ली। अपोलो की ओर से दवाइयां निशुल्क प्रदान की गई ।ऐसा लगने लगा था ,जैसे यामिनी अपोलो रेडियोथैरेपी विभाग की अपनी बेटी हो। हर कोई उसका ख्याल रखता था। उसके खाने पीने के लिए तरह तरह की चीजें लेकर सब आते । कोई खिलौने लाता तो कोई कपड़े । इलाज के यह कठिन दिन कैसे बीत गए किसी को पता ही नहीं चला। यामिनी को उसकी मां ने एक बार जन्म दिया था और दूसरा जन्म कुछ और नयी मांओं ने दिया। आराधना, विनी और बबीता के साथ इस मामले में डॉ प्रियंका सिंह और परिणीता की भूमिका भी किसी मां से कम नहीं है। वैसे अपोलो अस्पताल भी ने भी एक मां की तरह ही यामिनी को नई जिंदगी दी है। मंगलवार को पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद यामिनी साहू को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई ।हालांकि अब भी यामिनी को नियमित जांच के लिए अपोलो आना होगा और अभी उसका लंबा इलाज चलना है। महंगी दवाइयों की भी उसे जरूरत पड़ेगी। इस मामले में बिलासपुर अपोलो के साथ मददगार बनकर सामने आई कैंसर सरवाइवर फिर से मदद कर सकती हैं। बिलासपुर अपोलो ने भी कहां है कि बच्ची की दवाओं का खर्च वे स्वयं उठाएंगे और नियमित जांच भी निशुल्क करेंगे । मंगलवार को यामिनी और उसके परिवार को खुशी खुशी विदा करते हुए इस पल को बिलासपुर अपोलो ने मीडिया के साथ भी साझा किया। वहीं उन्होंने अपेक्षा की कि मीडिया कैंसर को लेकर आम लोगों को जागरूक करें, ताकि लोग आरंभिक दौर में ही कैंसर का इलाज कराने अस्पताल पहुंच सके। इस विषय में डॉक्टर सुशील कुमार कहते हैं कि शरीर में किसी भी तरह के गांठ के दिखने, हड्डियों में दर्द होने ,पेट या अन्य स्थानों में सूजन होने , दर्द रहित गठान , बिना वजह वजन कम होने जैसी अवस्थाओं के दिखते ही तुरंत कैंसर की आशंका को लेकर जांच करानी चाहिए। डॉक्टर प्रियंका सिंह का कहना है की शुरुआती दौर में अगर कैंसर की पहचान हो जाए तो उसका इलाज संभव है और आसान भी। इसलिए कैंसर संबंधी कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत जांच करने की सलाह चिकित्सक देते हैं। वही यामिनी को नवजीवन देने वाली टीम की एक और विशेषता भी है। इसमें कई ऐसे चिकित्सक भी हैं जिनका कोई बेहद करीबी इस दर्द से गुजरा है या गुजर रहा है। शायद यही वजह है कि उन्हें यामिनी के रूप में अपने करीबी के दर्द का एहसास हुआ हो । इस मामले में बिलासपुर अपोलो और उनकी चिकित्सकों ने तो मानवता की अनूठी मिसाल पेश की ही है। वही खुद कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की शिकार होने के बाद पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी महिलाओं का भी इस मामले में आगे आकर बच्ची की जान बचाना एक नई परंपरा को जन्म दे रही है। इस पूरी टीम ने नई संभावनाओं को जन्म दिया है । हालांकि ऐसा दिल्ली और महानगरों में पहले भी हुआ है, लेकिन बिलासपुर के लिए ऐसा प्रयास पहली बार देखा गया ,जहां अस्पताल और कुछ सक्षम लोगों ने मिलकर जरूरतमंद बीमार मरीज की इस तरह आर्थिक मदद की हो। कभी कैंसर के आगे पूरी तरह हार मानने वाला दिलबाग साहू का परिवार, मंगलवार को विजेता की तरह हंसते-हंसते घर लौट गया, क्योंकि अपोलो कैंसर हॉस्पिटल में- हारना मना है ,और इस बार तो जीत पक्की थी, क्योंकि टीम में सारे खिलाड़ी विजेता जो थे।

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