बिलासपुर

बतौर महापौर प्रत्याशी क्या अपने बेटे पर दांव खेलने की तैयारी में है अमर अग्रवाल ?

डेस्क

बिलासपुर में निकाय चुनाव के मद्देनजर महापौर प्रत्याशी को लेकर अब भी सस्पेंस बरकरार है। दोनों ही प्रमुख पार्टी अपने पत्ते नहीं खोल रही, इसलिए यह कयास लगाना मुश्किल जान पड़ रहा है कि दोनों पार्टी किन्हे अवसर देगी । लगाकर नए नए नाम उभर कर सामने आ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी से दावेदारों की लंबी फेहरिस्त सामने आई है। अचानक इस मामले में डॉ विनोद तिवारी, अशोक विधानी, उदय मजूमदार और संजय मुरारका भी सक्रिय हो गए हैं। इनके समर्थक इनके पक्ष में हवा बांधने की कोशिश कर रहे हैं, तो वही दावा किया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में ब्राम्हण लॉबी की ताकत को देखते हुए उसे भुनाने दोनों प्रमुख दल ब्राह्मण कैंडिडेट मैदान में उतार सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा से प्रवीण दुबे और डॉक्टर विनोद तिवारी को अवसर मिल सकता है, तो वही कांग्रेस से डॉ विवेक बाजपेई या महेश दुबे टाटा को मौका दिया जा सकता है।

लोकतंत्र में प्रत्याशी अपने तौर पर दावा जरूर कर रहे हैं लेकिन सच यह है कि हम लोकतंत्र का कितना भी दावा करें आज भी सभी प्रमुख पार्टियों में परिवारवाद हावी है। राष्ट्रीय चुनाव से लेकर पार्षद चुनाव तक परिवारवाद, भाई भतीजावाद स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, इसलिए हैरान नहीं होना चाहिए कि यहाँ भी किंग मेकर अपनों को मौका दें। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार दोनों प्रमुख पार्टी मैं निर्णायक की भूमिका मैं मौजूद नेता खुद के स्थान पर अपने बेहद करीबी को अवसर दे सकते हैं । मुख्यमंत्री के बेहद करीब होने की वजह से माना जा रहा है कि बिलासपुर में कैंडिडेट के फैसले में अटल श्रीवास्तव की मुख्य भूमिका होगी । अगर अटल श्रीवास्तव चुनाव नहीं लड़ना चाहेंगे तो फिर मुमकिन है कि वे अपने स्थान पर अपने भाई अजय श्रीवास्तव को अवसर दें ।

तो वही भारतीय जनता पार्टी से एक चौंकाने वाला नाम सामने आ सकता है। जिस पर अब तक शायद ही किसी ने गौर किया है । कई बड़े-बड़े दिग्गज अपने लिए लॉबिंग कर रहे हैं लेकिन भाई भतीजावाद, परिवारवाद भारतीय जनता पार्टी में भी प्रवेश कर चुकी है। अगर पार्टी के मुख्यमंत्री बेटे को अवसर मिल सकता है तो फिर मंत्री के बेटे को क्यों नहीं ?

जब तक अमर अग्रवाल विधायक रहे उनके बंगले में रौनक बनी रही। विधायकी गई तो रौनक भी जाती रही। निकाय चुनाव में उन्हें प्रभारी बनाया गया है तो फिलहाल कुछ हद तक रौनक लौटी है, लेकिन वे जानते हैं कि यह चुनाव समाप्त होने के बाद बंगले में एक बार फिर वीरानी छा जाएगी। सत्ता का नशा भी अजीब होता है। जो लग जाए तो छूटता नहीं । अमर अग्रवाल का कद इतना ऊंचा है कि जाहिर तौर पर वे महापौर का चुनाव नहीं लड़ सकते। लेकिन वे अपने स्थान पर अपने परिवार के किसी सदस्य को तो यह अवसर दे ही सकते हैं । ऐसे में बहुत मुमकिन है कि इस बार पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल अपने इकलौते बेटे आदित्य अग्रवाल यानी कान्हा को भारतीय जनता पार्टी से महापौर का प्रत्याशी बनाए । पिछले 5 सालों में लोगों ने देखा भी है कि अमर अग्रवाल धीरे धीरे अपने बेटे आदित्य अग्रवाल के लिए राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे थे ।आदित्य अग्रवाल लगातार पिता के लिए चुनाव प्रचार करते रहे हैं। अपने अस्वस्थ रहने के कारण अमर अग्रवाल जब जब किसी आयोजन में शामिल नहीं हो पाए तब तक उनका प्रतिनिधित्व उनके पुत्र कान्हा ने हीं किया लोग तो यह कयास लगा रहे थे कि अगर अमर अग्रवाल की सेहत इजाजत नहीं देती है तो मुमकिन है कि विधायक के तौर पर आदित्य अग्रवाल बिलासपुर से चुनाव लड़े । या फिर अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती तो अमर अग्रवाल लोकसभा का चुनाव लड़ते और खाली हुई सीट से अपने बेटे आदित्य अग्रवाल को चुनाव लड़ाते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब सत्ता परिवार से दूर जा चुकी है । ऐसे में अगर आदित्य अग्रवाल महापौर बन जाते हैं तो फिर से एक बार बंगले में रौनक लौट आएगी ।

एक राजनेता के लिए यह रौनक किसी ऑक्सीजन से कम नहीं है। शायद ऐसे ही किसी अवसर के लिए पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल अपने बेटे को तैयार कर रहे थे। वैसे आदित्य अग्रवाल बेहद शर्मीले और इंट्रोवर्ट व्यक्ति है , जिन्हें राजनीति के लिए मिसफिट कहा जाता है , लेकिन राजनीति सब कुछ सिखा देती है। शायद राजनीति का यही ककहरा पढ़ाने के लिए अमर अग्रवाल अपने बेटे को अवसर दे सकते हैं। बड़े-बड़े दिग्गज नेता भी मेयर से केंद्रीय मंत्री तक बने हैं। इसलिए अगर पूर्व मंत्री अपने बेटे के राजनीतिक कैरियर की शुरुआत महापौर से करना चाहे तो किसी को हैरान नहीं होना चाहिए। कैंडिडेट के चुनाव का अधिकार पिता के पास हो तो बेटे के लिए अवसर की संभावना बढ़ जाती है। अमर अग्रवाल के पास चुनाव लड़ने के लिए पूरी टीम है। खर्च करने को पैसे की कोई कमी नहीं और बिलासपुर में राजनीति का केंद्र उनका बंगला ही है। ऐसे में अगर अंतिम मुहर भाजपा महापौर प्रत्याशी के रूप में आदित्य अग्रवाल के नाम पर लगे तो फिर यह फैसला चौंकाने वाला जरूर होगा लेकिन अप्रत्याशित नहीं। वैसे भी पार्टी में इस बार युवा प्रत्याशी की मांग उठ रही है और आदित्य अग्रवाल उस पैमाने पर भी खरा उतरते हैं ।आदित्य अग्रवाल को भले ही मिलनसार ना माना जाता हो लेकिन उनकी छवि सौम्य जरूर है। इसलिए पार्टी में भी उनकी स्वीकार्यता मुश्किल नहीं होगी ।पिता का लंबा अनुभव , पारिवारिक राजनितिक विरासत, बिलासपुर निगम क्षेत्र में उनकी ख्याति भी आदित्य अग्रवाल के पक्ष में जाती दिख रही है। इसीलिए भीतर खाने से खबर आ रही है कि भारतीय जनता पार्टी इस बार बिलासपुर महापौर प्रत्याशी के तौर पर पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल के बेटे आदित्य अग्रवाल को अवसर देगी । अगर कांग्रेस से अजय श्रीवास्तव का नाम आगे आता है तो पार्टी में अधिक बगावत नहीं होगी। कुछ यही स्थिति भारतीय जनता पार्टी के लिए आदित्य अग्रवाल के साथ है। अगर पार्टी उनके नाम का ऐलान करती है तो फिर उनके पिता अमर अग्रवाल की वजह से उनके खिलाफ जाने की हिम्मत कोई नहीं करेगा। चुनाव में जीत हार किसकी होगी और कौन महापौर बनेगा यह भविष्य का विषय है लेकिन फिलहाल तो यही लग रहा है कि दोनों पाले के सबसे बड़े दिग्गज इस बार अपने घर से ही कैंडिडेट मैदान में उतारेंगे।

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