
हरिशंकर पांडेय
मल्हार – ऐतिहासिक,धार्मिक, पुरातात्विक पर्यटन स्थल व धर्मनगरी मल्हार स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल के अधीन दो स्मारको में से एक महत्वपूर्ण बस स्टैण्ड स्थित भीम-कीचक (देउर मंदिर) यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर सिर्फ जलहरी है। उस स्थान पर शिवलिंग नही है,
पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मंदिर छठवीं-सातवीं शताब्दी में निर्मित है पश्चिमाभिमुखी इस मंदिर के गर्भगृह में स्थापित जलहरी प्रमाणित करता है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित था। मन्दिर की द्वार शाखा पर गंगा व यमुना का सुंदर अंकन है।
द्वारशाखा पर ही अंदर की ओर शिव के गणों को विभिन्न भाव भंगिमाओं में दर्शाया गया है। इस जगह की खुदाई भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा सन 1979 से 1982 तक किया गया था। यह मंदिर सोमवंशी शासको के सबसे बड़े अवशेषो में से एक हैं। जब इस जगह की खुदाई हुई थी तब के लोगो के अनुसार पंचरत्न निर्मित कोई चमकदार शिवलिंग जैसे दिखाई दिया था
किंतु अधिकारियो ने शाम ढलने पर खुदाई रोक दिया था। दुसरे दिन उस जगह की खुदाई हुई तो जलहरी के अलावा कुछ नही मिला। तब से यह मंदिर बिना शिवलिंग मंदिर के नाम से जाना जाने लगा और यह रहस्य भी बरकरार है कि आखिरकार वह चमकती धातु अथवा शिवलिंग कहा गायब हो गई।
स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण….
मल्हार में सोमवंशी स्थापत्यकला का यह मंदिर एकमात्र महत्वपूर्ण उदाहरण है, लगातार शताब्दियों से उपेक्षित यह मंदिर ध्वस्त होकर टीले के रूप में परिवर्तित हो चुका था और इस जगह पर कई विशाल वृक्ष उग आए थे ग्रामवासी इस स्थल को देउर के नाम से जानते थे। इस टीले की खुदाई का काम 1979 से 1982 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों द्वारा कराया गया था। टीले की सफाई से मूल मंदिर का आकार स्पष्ट होने के साथ ही मंदिर के नीचे दबी हुई कई दुर्लभ कला कृतियां तथा अलंकृत स्तम्भ खण्ड भी मिला। इन पुरावशेषों से यह प्रमाणित हुआ कि यह आदिकाल में पश्चिमाभिमुख शिव मंदिर रहा है।
मंदिर का निर्माण बड़े बड़े पत्थरो को तराशकर किया गया है। नगर के पुरातत्व चिंतक व “मल्हार दर्शन” नाम के पुस्तक लेखक राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित स्व.रघुनंदन प्रसाद पांडेय ने अपनी सभी कृतियों में इस मंदिर के सम्बंध में विस्तार से जानकारी दी है जिसमे उन्होंने बताया है कि इस मंदिर के दक्षिण भाग में गरुणासीन विष्णु, लक्ष्मीनारायण एवम पश्चिम भाग में रति प्रीति सहित कामदेव की मूर्तियां विद्यमान है। इसके अलावा शिव विवाह एवम उमा महेश्वर का अत्यंत कलात्मक चित्र अंकित है। पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि आदिकाल में निर्मित यह मंदिर किन्ही कारणों से अपूर्ण रह गया होगा।
उद्यान की खूबसूरती से पर्यटक प्रभावित….
भारतीय पुरातत्व विभाग इस मंदिर परिसर को उद्यान के रूप में बहुत ही खूबसूरती के साथ सुसज्जित किया गया है जिसका भव्य नजारा देखकर पर्यटक बरबस ही कुछ समय परिवार के साथ बिताते हैं। आकर्षक रंगबिरंगी फूल व पौधों के अलावा लान घास से पूरा परिसर मनमोहक लगता है।
बरसात के इस मौसम में यहां चारो तरफ की हरियाली व प्राचीन काल के मंदिर के सुंदर दृश्य का संगम लोगो को खूब भा रहा है। सावन माह में श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुचकर प्राचीन मंदिर में पूजा भी कर रहे है।