
अब इंतजार करना है उन आंकड़ों का जिनमें शराब पीने की वजह से अगले एक-दो दिनों में क्या कुछ दुर्घटनाएं घटती है
बिलासपुर प्रवीर भट्टाचार्य
वैसे तो होली रंगों का पर्व है और एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर होली मनाई जाती है। बहुत हुआ तो लोग मेहमानों को घर में बने पकवान खिलाते हैं , लेकिन इधर बीते कुछ दशकों से जैसे यह परिपाटी ही बदल चुकी है । होली की जरूरतों में शराब, मुर्गा ,मटन शामिल हो चुका है। इसीलिए होली से पहले मुर्गा और शराब दुकानों में मेले जैसी भीड़ नजर आयी। मदीरा प्रेमी सुबह से ही बिलासपुर के अलग-अलग देशी-विदेशी शराब दुकानों में पहुंच गए, क्योंकि गुरुवार को ड्राई डे है और इस दिन सभी शराब दुकाने बंद रहेंगे और बुधवार को भी शाम 7:00 बजे से दुकान बंद होने के आदेश जारी कर दिए गए थे। इसलिए सुबह से ही मदिरा प्रेमी अगले दिन के लिए स्टॉक करने की गरज से यहां पहुंच गए। भीड़ होने की वजह से लोगों को कतार में लगकर शराब खरीदते देखा गया। त्यौहार के मद्देनजर सबने आम दिनों से दुगनी तिगुणी शराब खरीदी। जिन जिन जगहों में शराब दुकानें हैं, वहां तो मेले जैसी भीड़ नजर आई। अकेले बिलासपुर जिले में ही आम दिनों में शराब की बिक्री 1 करोड़ 60 या 65 लाख के आस पास होती है, लेकिन होली के दौरान यह रकम बढ़कर सवा 2 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है। सरकार का खजाना शराबी खूब भर रहे हैं ,भले ही वे खुद कंगाल क्यों ना हो जाए।। शराब पीकर अगले एक-दो दिनों में क्या कुछ हंगामा नहीं किया जाएगा। न जाने कितनी लड़ाइयां होंगी, कितने एक्सीडेंट होंगे ,कितने घरों में शराब की वजह से ही झगड़े होंगे, कितने लोग सड़क किनारे या नालियों में पड़े मिलेंगे, लेकिन फिर भी शराब की खुमारी ऐसी है कि लोग अपने खून पसीने की कमाई इसी पर बड़े मजे से लूटा रहे हैं । रंग और पिचकारी से पहले लोग शराब खरीदने पहुंच गए ।भले ही बच्चों के लिए मिठाइयां ना ली हो लेकिन खुद के लिए पहले शराब का बंदोबस्त जरूर कर लिया। प्रदेश में शराबबंदी की बातें हातिम ताई की कहानियों की तरह बस सुनी और सुनाई जाती है, हकीकत तो यही है की शराब की बिक्री पहले भी हो रही थी और अब भी हो रही है। दुकानों की संख्या कम या अधिक होने से कोई फर्क नहीं पड़ा। सरकार भी दिखावे के लिए होली के दिन शराब दुकानें भले बंद करती हो पर उसे भी पता है शराबी अपने लिए स्टॉक जमा कर लेते हैं। खुद रंग में भंग डालने का काम सरकारी रजामंदी से हो रहा हो तो फिर समाज के जागरूक नागरिकों के शिकायतों का कोई औचित्य नहीं। एक वर्ग भले ही शराब पर हाय तौबा मचाता रहे लेकिन इससे मदिरा प्रेमियों और सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता। अब इंतजार करना है उन आंकड़ों का जिनमें शराब पीने की वजह से अगले एक-दो दिनों में क्या कुछ दुर्घटनाएं घटती है।