अगर ऐसा है तो फिर विधानसभा और लोकसभा चुनाव के परिणाम में इतना अंतर क्यों… ?
मेहमान की कलम से
अगर हम छत्तीसगढ़ राज्य की बात करें तो यहाँ हाल ही में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने 15 सालों से सत्ता पे बैठी भाजपा को उखाड़ फेंका। 90 विधानसभा सीटों में से 68 सीटों पर कांग्रेस ने कब्ज़ा किया, जबकि 15 सालों से सत्ता में रहने के बावजूद और मोदी लहर के बाद भी भाजपा को सिर्फ 15 सीटें ही मिलीं ..
.अब सोचने वाली बात ये है कि विधानसभा के महज़ 5 महीने बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद लोकसभा की 11 सीटों में से सिर्फ 2 ही सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की…बाकि 9 सीटों पर भाजपा ने अपना परचम लहराया…जबकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू सहित अन्य मंत्रियों के लोकसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस को हार का मुह देखना पड़ा जबकि 2014 में दुर्ग लोकसभा सीट से कांग्रेस के नेता ताम्रध्वज साहू सांसद थे जिसके कारण उनका राजनीतिक कद बढ़ गया था…
विधानसभा चुनाव भारी बहुमत से जीतने के बाद,लोकसभा में करारी हार से कार्यकर्ता भी सोचने को मजबूर हैं …?
आखिर बस्तर और कोरबा लोकसभा सीटों के अलावा भारतीय जनता पार्टी ने सभी सीटों पर जीत हासिल की है। अब सोचने वाली बात ये है कि बस्तर और कोरबा लोकसभा में क्या मोदी लहर काम नहीं किया…? अगर छत्तीसगढ़ के बाकी सीटों पर मोदी लहर का असर था तो इन दो सीटों पर कांग्रेस ने कैसे दर्ज की जीत…?
क्या कांग्रेस की लोकसभा चुनाव के हार का कारण अंतर्कलह और गुटबाजी तो नहीं…?
आपको बता दें कि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आला-कमान ने जो दो सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए थे उन्हीं सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है वहीं बाकी 9 सीटों पर छत्तीसगढ़ में प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और प्रदेश प्रभारी द्वारा उम्मीदवार घोषित किए गए थे…जिसका परिणाम… लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई…वैसे बड़ा दिल करते हुए हार की नैतिक जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने ली है …
*एक उम्मीद…जो बचा सकती है कांग्रेस की डूबती हुई कश्ती..!*
अभी भी कांग्रेस के पास मौका है कि वह कांग्रेस पार्टी की गिरती हुई छवि को सम्भालने के लिए कांग्रेस पार्टी में ऐसे लोगों को लेकर आए जो नि:स्वार्थ पार्टी के लिए काम कर रहे हैं कांग्रेस पार्टी से न जुड़े होने के बाद भी कांग्रेस के साथ खड़े हैं …ये लोग कांग्रेस चिंतक, कांग्रेस विचारक और काँग्रेस की विचारधारा को जीवंत रखने वाले लोग हैं।
खैर अंतिम निर्णय तो कांग्रेस आला-कमान को ही लेना है कि वे पार्टी में निकम्मे और चाटुकारों को रख कर पार्टी का बंटाधार करते हैं या फिर अमूलचूल परिवर्तन करते हुए नए चेहरों और बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को तर्जी देते हैं?