
रमेश राजपूत/जुगनू तंबोली

रतनपुर- पूरे देश में लॉक डाउन लागू है, जिसकी वजह से सभी परिवहन साधन भी रद्द है, जिलों की सीमाएं सील है, लोगों को घरों में रहने निर्देश है, लेकिन इस बीच हजारों मजदूर वर्ग के लोग यहाँ वहाँ फंसे हुए है, 14 अप्रैल तक लॉक डाउन रहने के बाद राहत मिलने की उम्मीदें थी, लेकिन एक बार फिर 3 मई तक लॉक डाउन बढ़ने से सबसे ज्यादा परेशानी इन मजदूर वर्ग के लोगो को ही हो रही है, जिन्हें न तो उनका मालिक राहत पहुँचा रहा है और स्थानीय न होने की वजह से सरकारी मदद भी इनको नही मिल पा रही है, लिहाज़ा अपने घरों को लौटने के अलावा दूसरा कोई रास्ता इनके पास जिंदा रहने नही बचा है। ऐसे ही 16 मजदूरों का एक झुंड गुरुवार की रात रायपुर से झारखंड होते हुए बिहार जाने सायकल से निकला था जो देर रात रतनपुर पहुँचा था,

इन दूसरे प्रान्तों के असहाय मजदूरों को पहले तो अवश्य भोजन पानी की सहायता की गई फिर उनसे उनके घर लौटने की वजह पूछी गई, तब पता चला कि वो सभी रायपुर के सिलतरा के पास एक फैक्ट्री में काम करते थे, जहाँ काम बंद होने के बाद उन्हें वापस लौटने कह दिया गया और कोई मदद नही मिली, लिहाज़ा अब उन्हें खाने पीने के लाले पड़ने लगे थे, जिसके बाद उन्होंने सायकल से ही सफर करते हुए घर पहुँचने का निर्णय किया और निकल गए, उनका कहना था उनकी मजबूरी है कि उन्हें नियमों का उल्लंघन करना पड़ रहा है, लेकिन वह ऐसा नही करेंगे तो मरने की नौबत आ जायेगी। भले ही उनकी मंजिल 500 किलोमीटर से दूर है लेकिन अब यही रास्ता दिख रहा है।
इनकी चिंता कौन कर रहा…

लॉक डाउन का सबसे बड़ा असर इसी वर्ग पर पड़ा है, स्थानीय स्तर पर तो राशन आदि की मदद लोगों को मिल जा रही है, लेकिन अन्य प्रांतों के मजदूरों और उनके परिवारों के लिए यह समय किसी बड़ी मुसीबत से कम नही है, इन हालातों में जो नियोक्ता या मालिक है अपने मजदूरों का साथ छोड़ रहे है उनके ऊपर भी कार्रवाई होनी चाहिए जो मुनाफा कमाने के बाद उन्हें बेसहारा छोड़ रहे है, साथ ही स्थानीय स्तर पर प्रशासन को ऐसे सभी फैक्ट्रियों, संस्थानों में सर्वे कर आंकड़े जुटा उन्हें राहत पहुँचाने की व्यवस्था करनी चाहिए वरना वायरस के संक्रमण से पहले ही भूख और बदहाली इन्हें बेहाल कर देगी।