
हरिशंकर पांडेय
मल्हार – भारत मे सनातन परम्परानुसार ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र भूमि के कण कण में देवी देवताओं का वास होता है। इसलिए यहां पत्थर भी पूजे जाते है और पेड़ पौधों की भी पूजा होती है। जिसका धार्मिक मान्यता के अलावा वैज्ञानिक आधार भी है कि ये पेड़ पौधे हमारे लिए कितने जरूरी है। पर्यावरणीय विशेषज्ञ मानते है कि बहुत से वृक्ष हमे 24 घण्टे आक्सीजन देती है जिसमे बरगद, पीपल, नीम,आम, आंवला प्रमुख रूप से माने जाते है जिसकी धार्मिक मान्यताए भी है कि इन वृक्षो को कभी काटा नही जाता।
बल्कि उनका संरक्षण कर पूजन पाठ कर मनवांछित फल की कामना करने से इच्छा पूरी होती है। यह परंपरा आज भी कायम है खासकर गावो में इन वृक्षो की पूजा बड़े ही श्रद्धा भाव से होती है। ऐसी ही हजारो किस्म की पेड़ पौधे है जो मानव जीवन के लिए अत्यंत ही जरूरी है जिनका संरक्षण अब अतिआवश्यक होता जा रहा है। हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी है जो इन वृक्षो की महत्ता को समझते हुए इनके संरक्षण व संवर्धन को लेकर बेहद गम्भीर है।
युवाओं के प्रेरणाश्रोत लक्ष्मीकांत…..
मल्हार के युवा लक्ष्मीकांत गंधर्व ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है कि आने वाली पीढ़ी वर्षो तक पर्यावरण को लेकर उनकी गम्भीरता को भुला नही पाएगी। लक्ष्मीकांत ने भले ही अब तक 15 पेड़ लगाया है पर सभी पेड़ बड़े होकर लोगो को छांव व पर्यावरण की शुद्ध हवा दे रहे है। उन्होंने यहां के मुक्तिधाम के आसपास 6 से ज्यादा व कई तालाबो के किनारे बरगद, पीपल व नीम के पेड़ लगाए। उनका मानना है कि भले ही कम पौधे लगाइए पर उनको बड़े होने तक सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि बिना देखरेख ये पौधे बड़े नही हो पाएंगे इसलिए सबसे जरूरी है कि पौधे लगाने के बाद से ही नियमित पानी डालने और मवेशियों से बचाने सुरक्षा जरूरी है। लक्ष्मीकांत बताते है कि इन वृक्षो को वे परिवार मानते है इसलिए उन्होंने आज तक शादी भी नही की है। 51 वर्षीय लक्ष्मीकांत ने कहा कि उनको पेड़ लगाने की प्रेरणा अपनी माँ की मृत्यु होने के दिन से मिली है, उन्होंने बताया कि 20 वर्ष पहले माँ की मृत्यु के बाद मुक्तिधाम में अंतिम क्रिया कर्म के दौरान देखा कि यहां आए लोग धूप से बचने छायादार जगह खोज रहे थे और उस समय कुछ बड़े वृक्ष ही थे जो मुक्तिधाम से दूर थे।
तब उनको विचार आया कि अब वे इस जगह पीपल बरगद व नीम के वृक्ष लगाकर बड़ा करेंगे जिससे यहां आने वालों को पेड़ की छांव मिल सके। इस तरह वे हर वर्ष 1 या 2 वृक्ष लगाते गए। गर्मी के दिनों में मोटरपंप किराया लेकर पेड़ो में पानी भी सींचा। इस तरह उनकी सेवा से मुक्तिधाम में आज कई पेड़ बड़े होकर लोगो को सुकून दे रहे है। इसी तरह उन्होंने ग्राम कटहा मोड़ के पास दो पेड़ लगाया जो ग्रामीणों को राहत दे रहा है। उन्होंने इस बार पर्यावरण दिवस के मौके पर युवाओं से अपील किया है कि इस बार के मानसून में कम से कम एक पौधा अवश्य लगावे और उनकी देखभाल बड़े होने तक करें। ऐसे ही नगर के पौराणिक महत्व के खैया तालाब के किनारे दो सौ वर्ष से ज्यादा समय से अवस्थित बरगद के पेड़ है जिनकी शाखाए यह बताने के लिए पर्याप्त है कि पहले के लोग पेड़ पौधों को लेकर कितने संजीदा थे। इस पुराने वृक्ष के नीचे आज भी मोहल्ले के लोग कई कार्यक्रम करते है व त्योहारों पर इनकी पूजा होती है,
इस तालाब के किनारे 10 से ज्यादा बरगद व पीपल के पेड़ है जहाँ भीषण गर्मी से बचने लोग यहां सुकून के पल बिताते हैं। पर्यावरणप्रेमी व जैविक पद्धति से नवाचार खेती करने वाले जदुनंदन वर्मा कहते है कि मल्हार के परमेश्वरा तालाब, शिवसागर तालाब, मोतीसागर, नैया, बरकुवा आदि तालाबो के किनारे पीपल, बरगद, नीम, आम के पेड़ लगे है। परन्तु अब वर्तमान के भीषण गर्मी व बेमौसम बारिस को ध्यान में रखते हुए सभी लोगो को वृक्षो को बचाने जिम्मेदारी लेने का समय आ गया है। खासकर युवा वर्ग को पेड़ लगाने अभियान चलाकर उनके संरक्षण व संवर्धन को लेकर जागरूकता संदेश देना चाहिए। दिव्या वर्मा कहती है कि प्रकृति प्रेमी बनकर जीना होगा। जनसंख्या मे नियंत्रण और जरूरतो को समेटना होगा। अती आधुनिकता से बाहर आकर पेड़ जल जमीन और हवा को बचाना होगा। अन्यथा विनाश बहुत जल्दी हमारे करीब होगा।