सत्याग्रह डेस्क
यह सोमवार विशेष रहेगा । एक साथ तीन पर्व का संयोग बन रहा है। जेष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या को जहां वट सावित्री का पर्व मनाया जाएगा, वहीं इसी दिन शनि जयंती भी है । सोमवार को अमावस की तिथि होने से सोमवती अमावस्या का विशेष संयोग भी इस दिन बन रहा है। इस तिथि पर चंद्रदेव रोहिणी नक्षत्र में होंगे , इसलिए शनिदेव के साथ चंद्र देव की उपासना भी की जाएगी ।
सोमवार होने की वजह से भगवान शिव और माता पार्वती का भी पूजन भक्त करेंगे। भारतीय परंपराओं में विवाह, जन्म जन्मांतर का संबंध है। अन्य भाषाओं में तलाक या डायवोर्स जैसे शब्द है, लेकिन हिंदी में इसका समानार्थी शब्द ना होना ही दर्शाता है कि विवाह को जन्म जन्मांतर का संबंध माना जाता है। यही कारण था कि देवी सावित्री अपने पति सत्यवान की अल्पायु को जानकर भी उनके साथ विवाह करने को तैयार हुई और उन्होंने यमराज को अपने पति के प्राण लौटाने को विवश कर दिए। उसी परंपरा का पालन करते हुए सोमवार को सभी महिलाएं वट सावित्री का पर्व मनाएंगी, क्योंकि यमराज ने सत्यवान के प्राण वटवृक्ष के नीचे हरे थे और वहीं से सावित्री यमराज का पीछा करते हुए यमलोक तक चली गई थी इसीलिए वट सावित्री पर वट वृक्ष की पूजा की जाती है। मान्यता है कि वटवृक्ष में ब्रह्मा , विष्णु और महेश , त्रिदेव का वास होता है, इसलिए महिलाएं वट वृक्ष की पूजा अर्चना कर दीपदान करती है ।
टोकरी की डलिया में पूजन सामग्री सजाकर सोलह सिंगार कर मिलाएं वटवृक्ष के नीचे इकठ्ठा होती है, जहां सत्यवान और सावित्री की मूर्ति स्थापित कर धूप, दीप, रोली और अन्य पूजन सामग्री से उनकी पूजा करते हुए कथा का श्रवण किया जाता है ।वहीं इसके पश्चात कच्चे सूत को वृक्ष में लपेटा जाता है । व्रत धारी महिलाएं वटवृक्ष का 108 परिक्रमा करते हुए पति के उज्जवल भविष्य और दीर्घायु की कामना करती हैं, साथ ही परिवार की सुख-समृद्धि की भी कामना उनके द्वारा की जाती है। पूजा अर्चना के साथ सुहाग की सामग्री अर्पित करने की भी परंपरा है। वट सावित्री व्रत, सुहागिन महिलाओं का प्रमुख पर्व है।
सोमवार को सुबह से लेकर शाम तक शहर के उन स्थानों पर सुहागिनों की भीड़ नजर आएगी जहां जहां वटवृक्ष है । वैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह व्रत वट वृक्ष की महिमा को स्थापित करने का संदेश भी देता है। भारतीय परंपराओं में वृक्षों के महत्व को, खासकर वटवृक्ष जैसे विशालकाय वृक्षों के महत्व को बहुत पहले समझ लिया गया था और ऐसे ही पर्वों के माध्यम से उनके प्रति कृतज्ञता जताने के साथ उनके संरक्षण के लिए पूजा अर्चना की परंपरा भी है।
सोमवार को सोमवती अमावस पर शनि जयंती का पर्व भी मनाया जाएगा। सूर्य देव के पुत्र शनि देव की महिमा अपरंपार है ।
जो जातक शनिदेव से पीड़ित हैं , जिनकी कुंडली में शनि की साढ़ेसाती , ढैया चल रही है या जिनकी कुंडली में शनि नीच का है, उनके लिए शनि जयंती महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन शनि मंदिरों में या शनि शिलाखंड पर तेल अभिषेक करते हुए विशेष पूजा-अर्चना किए जाने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और शनि की दृष्टि से मुक्ति मिलती है। सोमवार को बिलासपुर में स्थापित सभी शनि मंदिरों के साथ चिल्हाटी के शनि मंदिर में भी सुबह से ही विशेष अनुष्ठान संपन्न होंगे । एक ही तिथि पर त्रि संजोग और सर्वार्थ सिद्धि योग होने से इस बार वट सावित्री पूजा और शनि पूजन को विशेष फलदायी माना जा रहा है । अगर आपकी कुंडली में भी शनि कष्ट दायी है तो फिर आपको भी इस सोमवार को शनिदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए।