
जब विकास भवन पहुंचे लोगो का सामना बंद लिफ्ट से होता है ,जाहिर तौर पर ऐसे में विकास पर सवाल तो उठेंगे ही

बिलासपुर प्रवीर भट्टाचार्य
नगर निगम बिलासपुर की कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क है। अब कहने को तो नगर निगम का दफ्तर जिस भवन से संचालित होता है उसे विकास भवन कहते हैं, लेकिन व्यवस्था यहां भी इस कदर जर्जर है कि विकास का कोई अस्तित्व यहां नजर नहीं आता। रोजाना हजारों की संख्या में लोग अपना काम लेकर विकास भवन पहुंचते हैं। इस मल्टी स्टोरी बिल्डिंग के ऊपर मार्ले में पहुंचने के लिए लिफ्ट मौजूद है लेकिन आरंभ से ही यह लिफ्ट चलता कम है और ख़राब अधिक होता है । फिलहाल पिछले चार-पांच महीनों से यह लिफ्ट बंद है ।लिफ्ट के नाम पर हाथी का वह दांत पेश किया गया है जो खाने के कुछ और है,और दिखाने के कुछ और। लिफ्ट तो है मगर चलती नहीं । यहां बड़ी संख्या में बुजुर्ग और विकलांग भी रोजाना आते हैं । लिफ्ट बंद होने की वजह से उन्हें सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर जाना पड़ता है । ज़ाहिर तौर पर यह उनके लिए बेहद कठिन काम है । कई बार लिफ्ट बंद होने की वजह से ऐसे लोग ,वापस लौट जाते हैं लेकिन बिलासपुर में विकास की अवधारणा को अंजाम तक पहुंचाने वाले अधिकारी और कर्मचारी जिस भवन से अपना कार्य निष्पादित करते हैं उसी भवन की बिल्डिंग के लिफ्ट का अक्सर बंद रहना ,चिराग तले अंधेरा वाली उक्ति को सही साबित करती है।

इसकी शिकायत लगातार की जाती रही है, तो जवाब में लिफ्ट सुधार करने वाले इंजीनियर को तलब करने और उनके जल्द ही आकर सुधारने का हवाला दिया जाता है । विडंबना यह है कि लिफ्ट अगर सुधर भी जाए तो वह कुछ ही दिनों तक सुचारू रूप से काम करता है फिर वही स्थिति होती है। बेहतर होगा इससे निपटने लिफ्ट को बदला जाए और ऐसा लिफ्ट लगाया जाए जो सही तरीके से काम करें। बिलासपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के दावे उस समय बड़े हास्यास्पद लगते हैं जब विकास भवन पहुंचे लोगो का सामना बंद लिफ्ट से होता है ,जाहिर तौर पर ऐसे में विकास पर सवाल तो उठेंगे ही।