
आलोक
भारत में संभावित आर्थिक मंदी से निपटने कई कदम उठाए जा रहे हैं। भारी अनियमितता के चलते तबाह हो रहे बैंकों के आर्थिक ढांचे को थामने के लिए सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं , जिसके तहत 27 बैंकों को आपस में मर्ज कर देश में राष्ट्रीय कृत 12 बैंक संचालित करने का निर्णय लिया गया है ।जानकार इसे बेहद महत्वपूर्ण कदम बता रहे हैं, लेकिन हमेशा की तरह बैंक कर्मचारी सरकार के इस फैसले का विरोध करते देखे जा रहे हैं। वैसे तो सरकारी बैंक कर्मियों का वेतन और सुविधाएं निजी बैंक कर्मियों से कई गुना बेहतर होती है फिर भी देखा यही गया है कि अक्सर अपने वेतन और सुविधाओं के साथ सरकारी बैंक कर्मी नाखुश रहते हैं और साल में कई मर्तबा उनके द्वारा हड़ताल आंदोलन किया ही जाता है । बैंकों के मर्ज होने के सरकारी फैसले के बाद भी वही नजारे एक बार फिर दिखे। वित्तमंत्री द्वारा 27 बैंकों को आपस मे मर्ज कर 12 बनाने के विरोध में यूनाईटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का निर्णय लिया । इसके तहत शनिवार को सभी बैंकर्स ने काले फीते लगाकर कार्य किया। यूनियन लीडर्स का दावा है कि
बैंकों के प्रस्तावित मर्जर से केवल बड़े कार्पोरेट को फायदा व आम जनता को नुकसान होने वाला हैं।
बिलासपुर की जनता ने स्टेट बैंक में उसके समूह व महिला बैंक के मर्जर से शाखाओ को बंद होते देखा हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक व विजया बैंक के मर्जर में भी कुछ शाखाओं को बंद करने की तैयारी चल रही हैं। ऐसा ही पीएनबी में ओबीसी व यूनाइटेड बैंक, इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक, कैनरा बैंक में सिंडिकेट बैंक, यूनियन बैंक में आंध्रा बैंक के मर्जर से अनेको शाखाएं बंद हो जाएगी। स्टॉफ की कटौती होगी, शाखाओ के बंद होने से उसके आसपास के होटल, फोटोकॉपी की दुकान आदि भी बंद हो जायेगे। बैंको में नई भर्ती भी बंद हो जाएगी। ग्राहकों को कम शाखाओ में कार्य निपटाने में ज्यादा समय लगेगा। बैंको में जमा आम जनता की पूंजी धन गरीबो के लिए हैं ना कि बड़े कारपोरेट के लूटने के लिए। आंदोलन कर रहे बैंक कर्मचारियों ने ग्राहकों से भी इस मर्ज का विरोध करने का आह्वान किया है उन्हें इस बात का भी डर है कि इस फैसले से बैंकों में नई भर्तियां नहीं होंगी लेकिन जब मर्ज बड़ा हो तो इलाज भी बड़ा ही करना पड़ता है । सरकारी बैंकों ने खैरात की तरह कर्ज बांटे और उनकी वसूली नहीं की। इसी कारण उनकी हालत बदतर हुई है लेकिन इसकी जिम्मेदारी लेने के बजाय सुविधा भोगी बैंक कर्मचारी हमेशा अपने ही हित की सोचते हैं ।उनके लिए राष्ट्रीय हित सेकेंडरी है । इसलिए आंदोलन की बजाय कोशिश यही होनी चाहिए की नए फैसले के साथ बैंकर्स सरकार का साथ दें और संभावित आर्थिक मंदी को दूर भगाएं।