
हरिशंकर पांडेय
मल्हार – सावन माह के चौथे व अंतिम सोमवार को हजारो लोगो ने भगवान पातालेश्वर महादेव का दर्शन व पूजन तथा जलाभिषेक कर मनवांछित फल की कामना की।
धार्मिक नगरी मल्हार में सावन माह शुरू होते ही शिवभक्तों के आने का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है जो कि पूरे माह भर शिवभक्ति में लगे रहते है, ऐसे ही इस बार भी बड़ी संख्या में भक्त पहुचे। विषेकर आज अंतिम सोमवार को स्थानीय लोगो के अलावा दूरस्थ अंचलो से भी यहां पहुचकर भोले नाथ को प्रसन्न करने विशेष पूजा की वही कांवड़ियों के कई जत्थे भी बोल बम का नारा लगाते पहुचे जिससे पूरे नगर में भक्तिमय माहौल बना रहा। सुबह से ही हर हर महादेव के जयकारे गूंज रहे थे,
इससे पहले सैकड़ो श्रद्धालुओ ने तो ब्रम्ह मुहूर्त में ही पूजन व जलाभिषेक कर लिया था। सबसे ज्यादा भीड़ युवतियों और महिलाओं की रही जो शिवजी को प्रसन्न करने पूजा की थाली में दूध, गंगाजल, पंचामृत, शहद, भांग, बेलपत्र, कनेर, धतूरा, चावल व अन्य प्रकार के पूजन सामग्रियों को लेकर मंदिर पहुचकर पूजा पाठ कर मनवांछित फल की कामना की। वैसे तो धर्मनगरी मल्हार के स्वयं भू भगवान पातालेश्वर महादेव की महिमा व उनसे मांगा गया आशीर्वाद कभी खाली नही गया है विशेषकर सावन माह में शिवजी कृपा अवश्य बरसाते है,
यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि सच्ची श्रद्धा व निःश्वार्थ भाव से मांगी गई कामना पूर्ण हुई है। क्योंकि भोले नाथ भाव के भूखे होते है। कहा जाता है देवी पार्वती ने घोर तपस्या से भगवान को यहां प्रगट किया है जो लोगो के कल्याणार्थ आज भी सभी की मनोकामना पूर्ण करते है। यहां पूर्व दिशा में माँ डिडिनेश्वरी विराजी है तो पश्चिम दिशा में स्वयं भोले बाबा। इस तरह इनकी कृपा सभी पर बरसती रहती है।
कई युगों से है शिवनगरी मल्हार
मान्यता है कि मल्हार कई युगों से शिव की नगरी रही है क्योंकि यहां के कण कण में शिवजी कई रूपो में विराजमान है। प्राचीन जमाने के अनेक प्रकार के पत्थर से बने शिवलिगो का दर्शन आसानी से कही भी हो जाता है। अंतिम सोमवार को शिवभक्तों ने मंदिर परिसर में प्रसाद का स्टाल लगाकर खीर पूड़ी, हलवा,लड्डू, फल, पानी आदि का विरतण कर हजारो लोगो की सेवा की।
पूर्वज बताते थे कि प्राचीन जमाने मे इस धर्मनगरी को कांशी की तरह की महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान बनाने की योजना थी पर नही हो पाया। यहां शिव जी की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां और शिवलिंग स्थापित है, यहां अघोर साधको का गढ़ रहा, साथ ही कई धर्मिक कारण थे।