
जुगनू तंबोली
बिलासपुर – उत्तरप्रदेश के बलिया में जन्मा रामभक्त समरेंद्र सिंह राठौर मात्र 14 वर्ष की आयु में ही रामायण से इतना प्रभावित हुआ था कि उसे भगवान राम के अयोध्या से श्रीलंका तक कि पैदल यात्रा की तीव्र जिज्ञासा उत्सुक करने लगी थी, जिसने अब 22 वर्ष की आयु में आखिरकार अपनी यह यात्रा शुरू कर दी है, जिसनें रामनवमी के दूसरे दिन से अपनी पैदल यात्रा शुरू की जो राम गमन पथ पर धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है और अब वह बिलासपुर जिले के रतनपुर पहुँच चुका है जिसनें राम गमन पथ पर रतनपुर के राम टेकरी पहुँचकर यहाँ का भ्रमण किया और अन्य जानकारियां हासिल की। रामभक्त समरेंद्र सिंह राठौर ने बताया कि उन्होंने अब तक लगभग 6 महीनों का सफर कर लिया है और वह लगातार आगे बढ़ रहे है, वह उन जगहों पर पहुँच रहे है जहाँ भगवान श्रीराम पहुँचे थे,
अब उन स्थानों की स्थिति क्या है उन्हें सरंक्षित किया गया है या नही वहाँ देख रेख के लिए कोई उपलब्ध है या नही ऐसी सभी जानकारियां वह एकत्र कर रहे है, उनका कहना है कि इस यात्रा के माध्यम वह सनातन संस्कृति को करीब से महसूस कर रहे है और दुसरो को जागृत करने का प्रयास कर रहे है। उन्होनें बताया कि वह अपनी यात्रा के दौरान संतो के साथ विश्राम करते है जहाँ संतो का आश्रय होता है वहाँ रुक रुक कर अपनी यात्रा में गतिमान है, हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि उनकी प्रबल इच्छा होती है कि वह ऐसे ही संतो के साथ रहकर ज्ञान प्राप्त करते रहे और दूसरों को प्रेरित कर सके।
परिवार का मिला साथ….
समरेंद्र का कहना है कि उनकी इस यात्रा में लगभग डेढ़ से 2 वर्ष का समय लग सकता है, फिर भी वह इस पैदल यात्रा पर निकले है, जिसमें उनके पिता राजेन्द्र प्रसाद सिंह सहित अन्य परिजनों का भरपूर सहयोग मिला जिनके ही प्रोत्साहन से वह भगवान श्रीराम के गमन पथ पर आगे बढ़ रहे है। उन्होंने बताया कि वह इस यात्रा में भारत के विभिन्न हिस्सों का भ्रमण करते जा रहे है जिससे उन्हें भारत की विविधता से भी रूबरू होने का अवसर मिल रहा है, जब वह अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएंगे तो एक नए अनुभव को हासिल कर धार्मिक जागृति पर सभी सनातनियो को प्रेरित करेंगे। अब उनकी यात्रा का अगला पड़ाव शिवरीनारायण है, जहाँ श्रीराम ने माता शबरी के जूठे बेर खाये थे और माता सीता की खोज में आगे बढ़े थे।