
उदय सिंह
प्रदेश की बघेल सरकार गुड गवर्नेंस और किसान हितकारी सरकार होने का दावा करती है , लेकिन यही दावे मस्तूरी के उप पंजीयक कार्यालय में रोज ध्वस्त हो रहे है। यहां कर्मचारियों की लापरवाही और मनमानी से किसान परेशान है । सरकारी दफ्तर खुलने का कोई समय तय नहीं है। जब कर्मचारी आते हैं तभी यहां ताला खुलता है। शनिवार को भी ऐसे ही नजारे दिखे । बड़ी संख्या में किसान, मजदूरी पंजीयन कराने उप पंजीयक कार्यालय पहुंचे थे। बड़ी मुश्किल से सुदूर इलाकों से बारिश में भीगते हुए पहुंचे किसानों का माथा उस वक्त ठनका, जब 11:00 बजे कार्यालय पहुंचने पर भी कार्यालय में ताला जड़ा पाया।
उन्हें लगा कि आज कहीं दफ्तर बंद ना हो, लेकिन डेढ़ घंटे इंतजार करने के बाद यहां कर्मचारी आए और फिर ताला खुला। कर्मचारियों के इंतजार में किसान बाहर खुले में ही बारिश में भीग कर इंतजार करते रहे। जिस कारण उनमें भारी आक्रोश देखा गया। इस संबंध में रजिस्ट्रार को फोन भी लगाया गया मगर उन्होंने फोन उठाना भी जरूरी नहीं समझा। वहीं इसकी शिकायत मस्तूरी अनुविभागीय अधिकारी से भी की गई है । इस मामले में एसडीएम वीरेंद्र लकड़ा का कहना है कि पंजीयन कार्यालय के कर्मचारियों को जिले में डिमांड ड्राफ्ट वगैरह जमा करने जाना पड़ता है, जिस कारण उन्हें कई बार देर हो जाती है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि वहां हमेशा 3 से 4 कर्मचारी मौजूद रहते हैं । ऐसे में दफ्तर का ताला समय पर नहीं खुलना समझ से परे है। एसडीएम ने दफ्तर खोलने के मामले को गंभीरता से लेते हुए कर्मचारियों को नोटिस देने की बात भी कही है ।
जाहिर है मुख्यालय से दूर होने की वजह से उप पंजीयक कार्यालय, कर्मचारियों की मनमानी से चल रहा है। कार्यालय को उन्होंने अपनी बपौती समझ रखा है। इसलिए जब मर्जी आते हैं, जब मर्जी खोलते हैं और जब इच्छा होती है बंद कर चले जाते हैं। इससे क्षेत्र के ग्रामीणों, खासकर किसानों को भारी दिक्कत हो रही है, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते सुधार मुमकिन नहीं हो पा रहा। प्रदेश में किसान हितकारी सरकार बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि व्यवस्था में बदलाव आएगा, लेकिन सरकारी कर्मचारी अपनी कार्यशैली में इस तरह ढल चुके हैं कि वे किसी भी बदलाव को तैयार नहीं। इसलिए हर दिन मस्तूरी के उप पंजीयक कार्यालय में रजिस्ट्रार का इंतजार करते लोगों को पंजीयन कार्यालय के बाहर देखा जा सकता है , आरोप है कि पंजीयक कार्यालय कभी समय पर नहीं खुलता और ना ही कर्मचारी समय पर आते हैं। लोगों को उम्मीद थी कि सरकार बदलने के बाद हालात बदलेंगे , लेकिन सरकारी कर्मचारी पुरानी व्यवस्थाओं के इतने आदी हो चुके हैं कि वे किसी भी बदलाव को जैसे तैयार ही नहीं है और इसीलिए व्यवस्थाओ में सुधार मुमकिन नहीं हो पा रहा।