
प्राचीन काल से ही, कोई बाहरी हमलावर हमें इतिहास में तबतक नहीं हरा पाया है, जब तक कि हमारे अपने देश में हमारे अपने टुकड़ों पर पलने वाले गद्दारों ने गद्दारी न दिखाई
टीम सत्याग्रह
पेपर पढ़ने की इच्छा नहीं हो रही है। व्हाट्सअप पर मैसेज पढ़ने की इच्छा नहीं हो रही है। फेसबुक खोलने का मन नहीं कर रहा है।
हुतात्माओं के परिवार वालों की रोती सूरतें और सुअरों की जश्न मनाती तस्वीरों ने दिमाग को एकदम जड़ कर दिया है, ठस्स कर दिया है।
संसार के किसी भी देश में जब भी कोई ऐसी “पुलवामा” जैसी वारदात हुई है, तो उस देश के प्रत्येक नागरिक ने अपने राजनीतिक नेतृत्व का साथ दिया है। चाहे वो इजराइल के नागरिक हों, अमेरिका या रूस इत्यादि के रहे हों।
उस समय, उस मुद्दे के लिए कोई भी राजनैतिक विरोध या प्रतिद्वंदिता नहीं रह जाती है। रह जाता है तो सिर्फ देश, और देश का आत्मसम्मान, गौरव, प्रतिष्ठा तथा हुतात्माओं के परिवार के साथ खड़े होने की चेष्टा।
लेकिन… लेकिन अपने देश में देखिए! झांकिये!
अपने सारे ही नेताओं के बयानों को ध्यान से देखिये। ध्यान से यह भी देखिए कि कौन इस हमले के बहाने क्या कहने की कोशिश कर रहा है?
फिर भी आपको यदि “भारत के मौजूदा सरकार” को कोसने का मन सिर्फ इसलिए कर रहा है क्योंकि यह आपकी “जाति” की सरकार नहीं है, तो याद रखिये कि आप दोगले हैं।
आप सबसे बड़े बुद्धिमान नहीं हैं। आप इजराइल, अमेरिका, रूस आदि के नागरिकों से अधिक योग्य नहीं हैं। लेकिन आपको फिर भी जाने किस बात का घमंड है! जाने किस बात की नफरत है देश से!
प्राचीन काल से ही, कोई बाहरी हमलावर हमें इतिहास में तबतक नहीं हरा पाया है, जब तक कि हमारे अपने देश में हमारे अपने टुकड़ों पर पलने वाले गद्दारों ने गद्दारी न दिखाई।
तुम, तुम और तुम सब दोगले हो, जो हृदय से इस समय “भारत सरकार” के साथ नहीं खड़े हो तो।