
आप अगर ये कहें कि इस धारा के चलते जम्मू कश्मीर की स्थिति हमारे देश के भीतर एक अन्य देश की है तो ये कहना गलत नहीं होगा
सत्याग्रह
धारा 370, संविधान की सबसे विवादित और सबसे विभेदकारी धारा, इसे कश्मीर समस्या के प्रमुख कारणों में से एक कहा जा सकता है। इसके चलते कश्मीर की स्थिति देश के अन्य राज्यों से अलग हो जाती है। यहाँ तक कि इसके चलते संविधान ही के बहुत से प्रावधान सीधे कश्मीर पर लागू नहीं हो पाते। यहाँ का अपना अलग संविधान है जो 26 जनवरी 1957 को लागू हुआ और अपना अलग झंडा भी है। देश के राष्ट्रपति भी अगर चाहें तो यहाँ के संविधान को बर्खास्त नहीं कर सकते। 356, 360 जैसे आपात उपबन्ध भी यहाँ लागू नहीं होते। देश के राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान यहाँ अपराध नहीं होता। देश के अन्य राज्यों में 5 सालों के लिए चुनी जाने वाली विधायिका की अपेक्षा यहाँ 6 साल के लिए विधायक चुने जाते हैं। अल्पकालिक प्रावधान के रूप में शेख अब्दुल्ला और नेहरू की कुटिलता से 1956 में इसे लागू कर जम्मू और काश्मीर को उसकी अज्ञात विशिष्टता के लिए विशेष राज्य बना दिया गया। जम्मू कश्मीर के स्थायी नागरिको को छोड़ भारत का कोई भी नागरिक वहाँ पर सम्पत्ति नहीं खरीद सकता, भले ही वो अपना पूरा जीवन यापन वहीं रहकर ही क्यों न करे। आप अमेरिका की किसी महिला से विवाह कर के वहाँ के नागरिक बन सकते हैं पर किसी कश्मीरी महिला से विवाह करने पर आपको वहाँ की नागरिकता प्राप्त नहीं होती बल्कि उस महिला की नागरिकता भी समाप्त हो जाती है, जबकि कश्मीरी महिला/पुरुष के किसी पाकिस्तानी नागरिक से विवाह करने पर उसे जम्मू कश्मीर का नागरिक मान लिया जाता है। न सिर्फ जम्मू कश्मीर का बल्कि भारत का भी, क्योंकि यहाँ के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, आरटीआई और सीएजी यहाँ लागू नहीं होते। महिलाओं पर शरिया कानून लागू होते हैं।
आप अगर ये कहें कि इस धारा के चलते जम्मू कश्मीर की स्थिति हमारे देश के भीतर एक अन्य देश की है तो ये कहना गलत नहीं होगा। साथ ही इस कानून के विशेष प्रावधानों के चलते यहाँ के नागरिकों और नेताओं ने अपने को सदा इस देश से पृथक और विशेष मानना प्रारम्भ कर दिया। वो कभी इस देश की संस्कृति में घुल मिल नहीं पाए। उनके लिए उनका कश्मीरी होना पहले है। प्रश्न उठता है कि सरकार इसे हटा क्यों नहीं देती। पर प्रश्न करने से पहले जान लीजिए कि ये कैसे हट सकती है।
धारा 370 भारत के संविधान को जम्मू कश्मीर के संविधान से जोड़ती है, सीधे कोई भी कानून बनाना भारतीय संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं इसलिए सबसे पहले इस आशय का प्रस्ताव जम्मू एन्ड कश्मीर की विधानसभा में बहुमत से पारित हो उसके बाद ही भारतीय संसद इस पर कानून बना सकती है। इस कानून का संसद में 2/3 बहुमत से पास होना और आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं से भी अनुशंसा प्राप्त होना अनिवार्य है। यदि ये सम्भव हो तो इस संशोधन कानून पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही ये धारा हट जाएगी। पर तब क्या कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हो जाएगा ? उत्तर है नहीं। क्योंकि 1956 के विलय पत्र की शर्तों के अनुसार धारा 370 के हटते ही तात्कालिक राजनीतिक स्थिति को पुनर्जीवित मान कर काश्मीर राज्य का भविष्य यहाँ की जनता द्वारा जनमत संग्रह से किया जाएगा। वो बताएंगे कि उन्हें भारत के साथ रहना है अथवा पाकिस्तान के साथ, और तो और उन्हें स्वतन्त्र रहने का विकल्प भी उपलब्ध रहेगा। कहने की आवश्यकता न होगी कि अगर जनमत संग्रह हो तो कश्मीरी लोग क्या चुनेंगे।
कश्मीर मुस्लिम बहुल है, और जम्मू में हिंदू -सिख बहुलता है, तो लद्दाख बौद्ध बाहुल्य क्षेत्र है। कुल जनसँख्या की दृष्टि से मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और यहीं पेच अटक जाता है।
आज़ादी के बाद से लगातार हमारे टैक्स की गाढ़ी कमाई का अरबों-खरबों रुपया जे&के में फूंका जा चुका है। अब भी वहाँ की जनता की सुरक्षा के लिए भारत को हर साल हजारों करोड़ खर्च करने पड़ते हैं। तिस पर वहाँ के लोगों का रवैया ये है की वो उसी सुरक्षा सेना पर पत्थर बरसाते हैं, फिदायीन हमले करते हैं। आप कश्मीर जाइए, चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बल मिलेंगे। अगर थोड़ी भी बुद्धि लगाएं तो जान जाएंगे कि अगर ये बल न हो तो यहाँ के पत्थरबाज विद्रोही होने में कोई समय न लेंगे। यहाँ जरूरत चीन जैसी ढिठाई से की गई सैनिक कार्यवाही की है। जिसके आगे सभी धाराएँ स्वतः गौण हो जाएं। जिस तरह आज तिब्बत में चीनी हान लोगों के घुस आने से तिब्बती अल्पसंख्यक होकर रह गए हैं, वहाँ की भाषा, संस्कृति सब अंतिम सांसे ले रही है, आज हमें वही इतिहास कश्मीर में भी दोहराने की आवश्यकता है। यकीन जानिए, अगर ये हुआ तो काश्मीर समस्या , यहाँ का आतंकवाद नाम की कोई चीज आपको सुनने को भी कभी न मिलेगी।